नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर भूचाल मचा हुआ है, देश की संसद से लेकर सड़क तक संघर्ष की स्थिति बन गयी है और इस विधेयक को मुसलमानों के खिलाफ करार दिया जा रहा है। क्या यह विधेयक सही में मुसलमानों के खिलाफ है, क्या इस विधेयक से समता के अधिकार का उल्लंघन होता है, क्या इस विधेयक से भाजपा सरकार अपने हिन्दू वोट बैंक का फिर से एकीकरण करना चाहती है, क्या कांग्रेस भी भाजपा की देखा-देखी अपने मुस्लिम वोट की चिंता में जिहादी भूमिका में खडी हुई है, क्या कम्युनिस्ट राजनीतिक पार्टियां भी इस विधेयक को लेकर अपनी हिन्दू विरोधी मानसिकता पर ही कायम है? क्या इस विधेयक से जातिवादी और क्षेत्रीयवादी राजनीतिक पार्टियों के जनाधार में कोई कमी आयेगी?
क्या यह विधेयक देश में आबादी आक्रमण को रोक पायेगा, क्या यह विधेयक भारत को घुसपैठिओं के लिए धर्मशाला समझने की मानसिकता को जमींदोज करेगा, क्या यह विधेयक विदेशी घुसपैठियों को संरक्षण देने वाली सभी मानसिकताओं का समाधान कर पायेगा? क्या नरेन्द्र मोदी सरकार विदेशी घुसपैठियों को देश से बाहर करने की वीरता सुनिश्चित कर पायेंगे? क्या नरेन्द्र मोदी सरकार की छवि एक हिन्दू सरकार के तौर पर बन रही है, क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक कटटरवादी हिन्दू नेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं, क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एक हिन्दू नेता के रूप में स्थापित होने के खतरे भी देश के सामने हैं, क्या इन खतरों पर कोई गंभीर विचार प्रवाह चल सकता है? क्या कांग्रेस और ओवैसी की एक ही भाषा कांग्रेस के लिए नुकसान के संकेत हैं?
यह विधेयक पूरी तरह से समता मूलक सिद्धांत पर आधारित है। नरेन्द्र मोदी की सरकार के तर्क भी हवाहवाई हैं। दुनिया यह जानती है कि इस्लामिक आधार पर शासन वाले देशों में संविधान भी बर्बर होता है, कानून भी बर्बर होता है, मजहबी आधार पर गैर इस्लामिक धर्मों के लोगों की धार्मिक आजादी लूटी जाती है, जमींदोज की जाती है। निश्चित तौर पर पाकिस्तान और अफगानिस्तान तथा बांग्लादेश एक घोर और लोमहर्षक रूप से इस्लामिक देश हैं। धर्म के नाम पर पाकिस्तान बना था, भाषा के आधार पर बांग्लादेश बना था।
पाकिस्तान जब मजहब के आधार पर बना था तब लगभग बीस प्रतिशत आबादी गैर मुस्लिम थी, लेकिन आज पाकिस्तान के अंदर गैर मुस्लिम की आबादी दो प्रतिशत तक भी नहीं रही है, अधिकतर लोगों को इस्लाम स्वीकार करने के लिए बाध्य होना पड़ा या फिर भारत जैसे देशों में पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। बांग्लादेश के निर्माण के समय हिन्दुओं की आबादी लगभग एक तिहाई थी पर आज लगभग चार प्रतिशत हिन्दू ही वहां बचे हुए हैं, अधिकतर हिन्दू अपनी जान बचा कर भारत भाग कर आ गये। तसलीमा नसरीन की पुस्तक लज्जा इसकी सबूत है। अफगानिस्तान भी घोर मजहबी और लोमहर्षक मानसिकता वाला देश है जहां पर तालिबान और अलकायदा ने अल्पसंख्यकों पर कैसी हिंसक मानसिकताएं कायम की हैं, यह भी जगजाहिर है।
हमें देखना यह होगा कि जिन हिन्दुओं, ईसाइयों, जैनों, बौद्धों और पारसियों की नागरिकता सुरक्षित करने की बात करता है यह नागरिक संशोधन विधेयक , उसकी सच्चाई क्या है? पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भाग कर आयी हिन्दू, बौद्ध, जैन, ईसाई तथा पारसी आबादी को आबादी आक्रमण के तौर पर नहीं देखा जा सकता है। ये पीड़ित थे और पीड़ित होने के कारण भारत में आए हैं।
पाकिस्तान से कई हजार हिन्दू प्रताड़ना से गुजरते हुए भारत आये हैं पर इन्हें नागरिकता का अधिकार नहीं मिला है और न इन्हें संविधान का संरक्षण मिला है। अब नागरिकता संशोधन विधेयक लोकसभा में पास हो गया है तब देश में रह रहे लाखों हिन्दुओं, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों के नागरिकता मिलने के अधिकार का संरक्षण होना भी संभव है। खास कर राष्टÑीय नागरिकता रजिस्टर के प्रावधान से असम की स्थिति बहुत ही नाजुक है।कई लाख हिन्दू जो नागरिकता रजिस्टर में आने से वंचित हो गये थे उन्हें नागरिकता के अधिकार मिलने में सहुलियत होगी।
क्या देश में पाकिस्तान, अफगानिस्तान या फिर बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ कर आयी मुस्लिम आबादी किसी प्रताड़ना का शिकार हुई है? इस प्रश्न पर राजनीतिक बहस की जरूरत है। सरकार को यह बताना चाहिए कि देश के अंदर में अवैध रूप से पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से कितनी मुस्लिम आबादी भारत में रह रही है। कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक दलोें और नेताओं को भी यह बताना होगा कि पाकिस्तान, बांगलादेश और अफगानिस्तान से आयी मुस्लिम आबादी क्या किसी राजनीतिक षडयंत्र का शिकार होकर आने के लिए विवश हुई, क्या किसी राजनीतिक उत्पीडन का शिकार होकर भारत में आने के लिए विवश हुई है?
इस प्रश्न पर कांग्रेस और अन्य समर्थक संवर्ग के पास कौन सा तर्क होगा? भारत में जो मुस्लिम आबादी पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आ रही है वह किसी राजनीतिक षडयंत्र का शिकार हो कर नहीं आ रही है, किसी राजनीतिक प्रताडना व उत्पीडन का शिकार होकर नहीं आ रही है। फिर क्यों और कैसे आ रही है, इस प्रश्न का भी खुलासा होना चाहिए। सही तो यह है कि भारत पर मुस्लिम आबादी आक्रमण जारी है। मुस्लिम आबादी आक्रमण के माध्यम से भारत को एक इस्लामिक मजहबी राज में तब्दील करने की एक गहरी साजिश है। भारत का एक बार मजहब के आधार पर बंटवारा हो चुका है। मुसलमानों को आबादी के अनुसार भूभाग बना कर दे दिया गया और मजहब के आधार पर पाकिस्तान बना था। देश का बहुसंख्यक वर्ग और देश के बहुसंख्यक वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाली नरेन्द्र मोदी की सरकार फिर से भारत का बंटवारा नहीं होने देना चाहती है, भारत को एक मजहबी राज में तब्दील नहीं होना देना चाहती है, इस तर्क को स्वीकार किया जाना चाहिए।
भारत सरकार को शरणार्थियों को नागरिकता का अधिकार देने जैसे कार्य तो करने ही चाहिए पर अवैध रूप-आपराधिक ढंग से सीमा के अंदर प्रवेश कर रह रही आबादी को भी देश से बाहर निकालने की वीरता दिखानी चाहिए। केन्द्रीय गृहमत्री अमित शाह ने अवैध घुसपैठियों को बाहर निकालने का जो संकल्प व्यक्त किया है वह देश की अस्मिता और सुरक्षा की ही गांरटी देता है। निश्चित तौर पर नागरिकता संशोधन बिल का विरोध कांग्रेस और अन्य विरोधी राजनीतिक दल के लिए घाटे का राजनीतिक जिहाद है।
-विष्णुगुप्त
Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करे।