दिल्ली की अनाज मंडी क्षेत्र में घटित भयानक अग्निकांड ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि सरकारों ने पुरानी घटनाओं से कोई सबक नहीं लिया। दिल्ली में हुए हादसे में 43 जानें चली गई हैं। अब मुआवजा देने की बात चलेगी फिर जांच होगी, ये ड्रामा हर दुर्घटना होने के बाद होता है और फिर इन घटनाओं को भुला दिया जाता है।
2017 में बटाला (पंजाब) में एक गैर-कानूनी तरीके से चल रही आतिशबाजी की फैक्ट्री में आग लगी थी और एक कर्मचारी की मौत हो गई। यदि उस घटना से सबक लिया होता तो बटाला में दो साल बाद एक फैक्ट्री में दोबारा हादसा न होता। जब 23 जानें चलीं गई, फिर भी जांच और कार्रवाई इतनी पेचीदा रही कि घटना से 75 दिनों बाद तीन कर्मचारियों को निलंबित किया गया।
रिहायशी क्षेत्र में गैर-कानूनी तरीके से फैक्ट्रियां लगाने से बड़े हादसे होते हैं। दिल्ली में अनाज मंडी के अलावा भीड़भाड़ के इलाकों में हजारों फैक्ट्रियां लगी हैं, जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। विदेशों और हमारे देश में सरकारों की कार्यशैली में बुनियादी अंतर यही है कि वहां कानून कायदे लागू होते हैं और जरा सी भनक लगने पर कार्रवाई होती है। हमारे देश में लोग पुलिस या सबंधित विभाग को शिकायतें दे देकर थक जाते हैं। मीडिया में खबरें भी प्रकाशित होती है, फिर भी कार्रवाई के लिए कोई कदम नहीं उठाया जाता और हादसा हो जाता है।
फिर खानापूर्ति के लिए बड़ी-बड़ी घोषणाएं होती हैं। सरकारों को कार्यशैली बदलने की आवश्यकता है। इसी प्रकार जनता या फैक्ट्रियों में कार्यरत कर्मचारियों व मजदूरों को भी सुरक्षा के नियमों के प्रति लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। नियमों का पालन हमारी मानसिकता का अंग होना चाहिए। कई बार नियमों का उल्लंघन करने को ही लोग अपनी शान समझने लगते हैं। सरकारें मुआवजा देकर संतुष्ट होने की बजाय इस मामले का स्थायी समाधान निकाले। फैक्ट्रियों को रिहायशी क्षेत्र से बाहर निकालने के लिए कोई राष्ट्रीय स्तर पर योजना बनाई जाए। इस हादसे को बीते समय में हुए हादसों की भांति भूलना खतरनाक होगा, क्योंकि जनसंख्या ने भी बढ़ना है और फैक्ट्रियां भी जरूरी हैं।
Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करे।