खंडित जनादेश में नेताओं की सौदेबाजी

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राजनीति में कब क्या हो जाए कुछ नहीं कहा जा सकता। इस क्षेत्र में पल भर में शत्रु दोस्ताना हो जाते हैं और दोस्त शत्रु दिखने लगते हैं। महाराष्ट्र में जिस तरह 29 दिनों बाद भाजपा के मुख्यमंत्री और एनसीपी के अजीत पवार ने उप-मुख्यमंत्री की शपथ ली है यह अनुमान से परे का घटनाक्रम है। 24 घंटे पहले जहां एनसीपी, कांग्रेस, शिवसेना सरकार गठन के लिए एकमत हो घोषणा कर चुके थे वहीं रातों-रात सारा ताना-बाना बिखर गया। एनसीपी नेता अजीत पवार ने अपने सगे चाचा व राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी शरद पवार को एहसास भी नहीं होने दिया कि सुबह होते ही क्या होने वाला है। इस खेल में एक बार फिर राज्यपाल के संवैधानिक पदWA का दुरुपयोग होने की राजनीतिक बहस छिड़ गई है।

देश में यह एकदम स्पष्ट है अगर राज्य में जनादेश खंडित है तब केंद्र में सत्ताधारी पार्टी संबंधित राज्यपाल के मार्फत राजनीतिक मर्यादाओं को उलटती-पलटती है। महाराष्ट्र में सरकार बनाने में रोड़ा अटकाने के खेल की शुरूआत शिवसेना ने की थी लेकिन इस रोड़ा अटकाने के खेल में अजीत पवार ने मौके का फायदा उठाया अंत में खेल भाजपा ने खत्म कर दिया। अब इससे आगे जो होने वाला है वह भी बहुत उठापटक का मंजर बनने वाला है।

अजीत पवार किस तरह से अपने चाचा की पार्टी में से सरकार के बहुमत लायक विधायक तोड़ते हैं यह देखना दिलचस्प होगा। चूंकि शरद पवार काफी विश्वस्त दिख रहे हैं कि अजीत पार्टी तोड़कर विधायक नहीं ले जा सकते। लेकिन शरद पवार को यह शिकस्त जेहन में रखनी चाहिए कि जो भाजपा उनके भतीजे को उनके अपने खून को उनके विरुद्ध खड़ा करने में कामयाब हो गई है वह उन विधायकों को भी हासिल कर लेगी जो शरद पवार के पीछे सिर्फ राजनीति करने के लिए खड़े हुए हैं।

मुख्यमंत्री व भाजपा के शीर्ष नेता देवेंद्र फडणवीस बड़े ही आत्मविश्वास से कह रहे हैं कि सरकार पूरे 5 साल तक चलेगी। अत: 26 दिन भाजपा ने यूं ही नहीं गुजार दिए, जरूर भाजपा ने अपना खेल खेल दिया है। अब यहां देश के आदर्श राजनीतिक विचारकों व व्यवहारिक राजनीतिक विचारकों के लिए एक नया अध्याय बन गया है कि कैसे मतदाताओं की इच्छाएं अवसरवादी राजनेताओं के लिए महज एक सौदा बनकर रह जाती हैं।

अब यहां कोई भाजपा को कोसेगा तो कोई अजीत पवार को कोसेगा लेकिन इस सबमें शिवसेना की भूमिका निहायत ही ओच्छी साबित हुई है। शिवसेना ने अपनी कट्टर हिंदूवादी छवि को भी खो दिया है और सत्ता तो उससे बहुत दूर चली गई है। यूं भी किसी प्रदेश, क्षेत्र के लिए यह महत्वपूर्ण होना चाहिए कि खंडित जनादेश में सबसे बड़े दल को ‘पवित्र’ माना जाना चाहिए, क्योंकि खिचड़ी दल कौनसा बिना सौदेबाजी के साथ जुटते हैं।

अत: जनता के लिए यही अच्छा है छोटे-छोटे सौदों से अच्छा एक बड़ा, स्पष्ट सौदा हो ताकि रोज-रोज के विवाद एवं बर्बादी से बचा जा सके। कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना को अब अगर कुछ काम नहीं बचा है तो वह अपनी हार की समीक्षा के साथ-साथ अजीत पवार के द्वारा लिए गए निर्णय पर कुछ विचार-मंथन कर सकते हैं। राजनीति में करने को आखिर है ही क्या।

 

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