कर्मों की मार से बचने के लिए प्रभु नाम एक संजीवनी

Saint Dr MSG

पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि उस परमपिता परमात्मा, उस रब्बी शक्ति को, जीव जितनी श्रद्धा, जितनी भावना से याद करता है, उतनी ही जल्दी जीव के गम, दुख-दर्द, चिताएं मिट जाया करती हैं और वह जीवात्मा, परमपिता परमात्मा के दर्शन करके दोनों जहान की खुशियां इसी जहान में पाना शुरू कर देती है।

सोचिए! जिस आदमी को कोई दुख-दर्द, चिंताएं न हों। क्या उस जीव से सुखी कोई और हो सकता है? आप जिस को मर्जी देख लो। कोई न कोई दुख, कोई न कोई परेशानी, कोई न कोई गम आदमी को खाए जा रहा है। सुखी वही हैं जो मालिक से जुड़े हुए हैं। सुखी वही है जो अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब का नाम जपते हैं। जीव जो भी कर्म करते हैं, फल की चिंता नहीं करते, संतुष्ट हो जाते हैं। सुमिरन करते हैं, बुरे कर्म नहीं करते। जो जीव मालिक पर छोड़कर अच्छे कर्म करते हैं, तो मालिक भी उन जीवों की तकदीरें बदल देता है।

पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि सिर्फ मनुष्य को ही यह अधिकार है कि वो नए कर्म बना सकता है और नए कर्मों में अल्लाह, वाहेगुरु, मालिक की भक्ति-इबादत करना है। इन्सान शरीर ही एक मात्र शरीर है जो इस मृत्युलोक में उस सुप्रीम पॉवर ओउम, हरि, अल्लाह, राम को देख सकता है। बाकी के सभी शरीर गुलाम हैं। किए कर्मों का फल पाते हैं। किए कर्मों को भोगते रहते हैं।

मनुष्य को तमाम अधिकार मिले हैं कि वह मालिक का नाम जपे। आवागमन से अपने आप को आजाद करवाले और वो उन तमाम खुशियोंं को, जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की जा सकती हासिल कर लेता है।

आप जी ने फरमाया कि कर्मों की मार से बचने के लिए मालिक का नाम संजीवनी है। मालिक का नाम फिर से इन्सान को जिंदा कर देता है। मालिक फिर से उस जीव के गम, दुख, दर्द, चिंताएं मिटाकर उसे नया जीवन जीने के काबिल बना देता है और इन्सान सारे दुख, दर्द, चिंताएं भूलकर मालिक के प्यार में, उसकी रहमत से मालामाल हो जाता है।

 

 

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