हरियाणा के गांव देसूजोधा में छापेमारी करने पहुंची बठिंडा पुलिस के साथ मारपीट से प्रमाणित होता है कि नशा तस्करी सरकार व पुलिस के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। भले ही हरियाणा पंजाब और राजस्थान की सरकार ने नशा रोकने के लिए तालमेल गठित करने के लिए बैठक की लेकिन वास्तविक्ता वायदों से कोसों दूर है। नशा तस्करों के साथ-साथ पुलिस में भी कुछ काली भेड़ों की भी पहचान करने की जरूरत है, जो नशा तस्करों के लिए सोने के अंडा देने वाली मुर्गी बने हुए हैं। पंजाब में दर्जनों पुलिस अधिकारी और कर्मचारी नशे के मामलों में धमकी देने के आरोप में गिरफ्तार हो चुके हैं।
पुलिस की गाड़ी में नशे की बरामदगी और मौके पर कर्मचारी को निलंबित करने जैसी घटनाएं यह साबित करती हैं कि नशे के खिलाफ मुहिम चलाने से पहले पुलिस में भ्रष्टाचार का खात्मा जरूरी है। कई स्थानों पर पुलिस छापेमारी का ग्रामीणों ने विरोध किया है। यह बात भी सच नहीं कि हर जगह ग्रामीण नशा तस्करों के समर्थक हैं बल्कि कई गांवों में ग्रामीणों ने नशा बेचने आए व्यक्तियों की भी जमकर पिटाई की और पुलिस को सौंपा। कई स्थानों पर लोगों के नशा तस्करी की शिकायत देने के बावजूद पुलिस कार्रवाई नहीं होने के कारण ग्रामीणों ने पुलिस प्रशासन विरुद्ध नाराजगी जाहिर की है।
दरअसल नशा विरोधी मुहिम को केवल नशा तस्कर की गिरफ्तारी तक सीमित कर दिया गया है जिससे कानून व्यवस्था की समस्या पैदा हो रही है। नशा तस्कर भी दिन-ब-दिन शातिर दिमाग हो रहे हैं, जिन्हें पुलिस की गलतियां रास आ रही हैं। प्रदेश स्तर पर पंजाब व हरियाणा सरकार मीटिंग करती हैं लेकिन आप्रेशन के दौरान पंजाब पुलिस ने हरियाणा पुलिस को सूचित करना भी उचित नहीं समझा, जिसका परिणाम खूनी झड़प के रूप में सामने आया। दरअसल जहां नशों की रोकथाम के लिए तालमेल जरूरी है वहीं शहर से लेकर गांव स्तर तक नशा विरोधी जागरूकता की लहर चलानी होगी ताकि नशा तस्करों को सामाजिक तौर पर कमजोर किया जा सके। नशा तस्कर स्थानीय लोगों का समर्थन लेने में कामयाब न हों, इसीलिए सामाजिक संगठनों द्वारा पुख्ता कदम उठाने की आवश्यकता है।
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