सेंटर फॉर साइंस एण्ड एनवायरमेंट की हालिया रिपोर्ट बेहद चेताने वाली है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में उपजाऊ भूमि निरंतर कम होती जा रही है वहीं बंजर भूमि का दायरा बढ़ता जा रहा है। इससे पहले 2017 में वार्षिक रिपोर्ट में 32 फीसदी भूमि के बंजर होने की चेतावनी पहले ही आ चुकी है। दरअसल समूची दुनिया में खेती योग्य उपजाऊ भूमि का दायरा कम होता जा रहा है। एक और दुनिया के देशों में सामने भुखमरी से निजात दिलाने की बड़ी चुनौती है। हालिया रिपोर्टों में दुनिया के देशों में भुखमरी और कुपोषण के आंकड़े बढ़ने के समाचार हैं वहीं यह अवश्य संतोष की बात है कि देश में सरकारी और गैरसरकारी प्रयासों से कुपोषण में कमी आई है। पर कुपोषण में कमी के बावजूद जंक फूड और खान-पान की तरीकों में बदलाव से सेहत के लिए नुकसान दायक मोटापा और अन्य बीमारियों का दायरा बढ़ना अपने आप में चिंतनीय है। हांलाकि सरकार किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ रही है।
किसान और खेती को प्रोत्साहित करने के उपाय किए जा रहे हैं। रसायनों के अत्यधिक प्रयोग से होने वाले नुकसान से जनजागृति लाई जा रही है वहीं अभियान चलाकर किसानों को जैविक खेती अपनाने को प्रेरित किया जा रहा है। अब तो जीरो बजट खेती की बात की जाने लगी है। किसानों को खेती के साथ ही पशुपालन अपनाने को प्रेरित किया जा रहा है पर जो रिपोर्ट आई है वह निश्चित रुप से चिंतनीय है।
रिपोर्ट के अनुसार देश में 32 प्रतिशत भूमि बंजर होने के कगार पर माना जा रहा है। देश के 26 राज्यों में भूमि के बंजर होने का खतरा बढ़ता जा रहा है। राज्यों में 2007 से 2017 के दौरान भूमि के बंजर होने के जो संकेत मिल रहे है और जो इजाफा हो रहा है वह गंभीर संकट की और इशारा करता है। भूमि की बंजरता के प्रमुख कारण प्रर्यावरणीय है। पर्यावरणीय प्रदूषण के परिणाम सामने आने लगे हैं। स्थिति की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि दुनिया के देशों के कॉप सम्मेलन में स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2.6 करोड़ हैक्टयर भूमि का उपजाऊ बनाने का लक्ष्य रखा है। दरअसल यह लक्ष्य बढ़ाया गया है। इससे पहले यह लक्ष्य कम था। देखा जाए तो भूमि के अनउपजाऊ होने के कई कारणों में से जहां कुछ कारण किसानों और अधिक पैदावार के चक्कर में रसायनों के अत्यधिक प्रयोग के लिए किसानों को प्रेरित करने को जाता है। आज पंजाब जो सबसे अधिक उत्पादन देने वाला प्रदेश रहा है वहां के खाद्यान्न को उपयोग में लेने से डर लगने लगा है। इसका कारण अत्यधिक रसायनों का निरंतर उपयोग रहा है। पंजाब में उत्पादन भी सेचुरेशन की स्थिति में आ गया है।
वहां के किसानों में भी तेजी से निराशा बढ़ती जा रही है। वहीं बिना किसी भावी योजना के अंधाधुध शहरीकरण से खेती की जमीन कम होती जा रही है। परिवारों के बंटवारें के चलते खेत छोटे होते जा रहे हैं। आपसी बारहमासी नदियां व पानी के स्रोत अब बीते जमाने की बात होते जा रहे हैं। देश के 86 जल निकायों को गंभीर रुप से प्रदूषित बताया जा रहा है। कर्नाटक, तेलगांना और केरल की स्थिति भी गंभीर मानी जा रही है। अतिवृष्टि व अनावृष्टि के चलते भूमि बंजर होने लगी है। दुनिया के देशों में मरुस्थल का विस्तार होता जा रहा है। शहरीकरण, रसायनों के उपयोग से भूमि के लाभकारी तत्वों और लाभकारी वनस्पतियों के विलुप्त होने, परंपरागत लाभकारी पेड़ों को काटने के कारण समस्या उभरने लगी है।
एक और अत्यधिक बारिश से भूमि में कटाव, दूसरी तरफ धूलभरी आंधी तूफानों से मरुस्थल का विस्तार, भूगर्भीय जल के अत्यधिक दोहन, प्लास्टिक, पेर्टेकेमिकल के अत्यधिक उपयोग व इसी तरह के अन्य कारणों से भूमि बंजर होती जा रही है। यह तो तब है जब आंकड़े यह कहते है कि देश में जंगलों का विस्तार हुआ है। इसके साथ ही पानी का खारापन बढ़ने, वातावरण में हवा-पानी ही नहीं सभी तरह से फैल रहा प्रदूषण आज भूमि के उपजाऊपन को प्रभावित कर रहा है। यही नहीं एक समय केवल मलेरिया ही सबसे अधिक प्रभावित करता था पर आज मलेरिया के ही कई रुप डेंगू, चिकनगुनिया व ना जाने कितने ही रुप में सामने आ गए हैं और दुनिया के देशों को हिलाकर रख दिया है।
दरअसल सरकार को एक साथ कई मोर्चो पर काम करने की जरुरत हो गई है। एक और बढ़ती आबादी पर अंकुश लगाया जाना जरुरत बन गई हैं वहीं देश के प्रत्येक नागरिक को दो जून की रोटी उपलब्ध कराना चुनौती है। असल में हम एक ही राह पर अंधाधुंध बढ़ने लगते है तो उसके परिणाम इसी तरह के सामने आते हैं।अधिक उत्पादन के लिए रसायनों का जरुरत से ज्यादा उपयोग, शहरीकरण के नाम पर गांवों के अस्तित्व को मिटाने, पेड़-पौधों व वनस्पतियों को बिना सोचे समझे नष्ट करने, पानी का अत्यधिक दोहन और सबसे महत्वपूर्ण जल संरक्षण की परंपरागत व्यवस्था को तहस नहस करने का परिणाम सामने हैं। शहरीकरण के चक्कर में पानी के बहाव व जमाव क्षेत्र की अनदेखी करने से आज पानी खासतौर से भूगर्भीय पानी का संकट सामने है।
वाटर हार्बेस्टिंग सिस्टम किस तरह के बने हैं वह जगजाहिर है। यदि यह सिस्टम सही होते तो मामूली बरसात में ही पानी भरने और शहरों के थम जाने की स्थितियां नहीं आती और भूजल का स्तर तो निश्चित रुप से एक स्तर पर तो रह ही जाता। आज सरकार ने गंभीर होकर जल शक्ति मंत्रालय बनाया है। हमारी सोच ही देखिए कि इस तरह से एनिकट पर एनिकट और इतने अवरोध बना दिए कि बांधों तक पानी पहुंचना ही असंभव हो गया। ऐसे में अब बंजर होती भूमि को उपजाऊ बनाने और भावी प्रभावों को देखते हुए कार्ययोजना बनाने की आवश्यकता है नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब गंभीर खाद्यान्न संकट के साथ ही अन्य संकटों से रुबरु होना पड़ेगा।
-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
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