राजनीतिक दलों के अध्यक्ष: चयन द्वारा चुनाव

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कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी के त्यागपत्र के बाद नए अध्यक्ष की तलाश की प्रक्रिया को देखते हुए देश के हर नागरिक को पार्टी अध्यक्ष पद का महत्व समझ में आ गया होगा। 150 वर्ष पुरानी कांग्रेस पार्टी का लिखित संविधान है तथा पार्टी संगठन और पार्टी के कार्यकरण को संचालित करने के लिए नियम और प्रक्रिया हैं साथ ही पार्टी की अपनी परंपराएं, पद्वतियां और परिपाटियां हैं। अनेक अन्य राजनीतिक दलों में भी ऐसी ही स्थिति है किंतु कांग्रेस के आंतरिक मामलों के बारे में अधिक चर्चा की जाती है और उनकी अधिक आलोचना की जाती है क्योंकि देश की सबसे पुरानी पार्टी होने के नाते लोगों की इससे अपेक्षाएं अधिक होती हैं और स्वतंत्रता के बाद इस पार्टी ने देश में सर्वाधिक समय तक राज किया है।

राहुल गांधी ने 3 जुलाई को कांग्रेस अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया था और उनकी मां तथा पूर्व कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी को 10 अगस्त को पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष नियुक्त किया गया। बीच की इस अवधि में राहुल गांधी को अपने निर्णय को बदलने के लिए मनाने और इस पद के लिए समुचित उत्तराधिकारी ढूंढने में व्यतीत हुआ। 9 अगस्त को कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षों, विधायी दलों के नेताओं और महासचिवों के साथ बैठक की और कहा गया कि कुछ दिन में पार्टी के नए अध्यक्ष की नियुक्ति की जाएगी।

एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा कि कांग्रेस कार्य समिति को तुरंत अंतरिम अध्यक्ष नियुक्त करना चाहिए और उसके बाद चुनाव करवाने चाहिए। उस नेता के अनुसार कार्यकतार्ओं द्वारा चुना गया नेता अधिक शक्तिशाली होता है और उसकी विश्वसनीयता अधिक होती है और इस बीच पार्टी अध्यक्ष पद के लिए कई नाम उछले। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी कांग्रेस में निर्णय लेने का केन्द्रीय निकाय है जिसमें प्रदेश कांग्रेस समितियों के निर्वाचित सदस्य, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य होते हैं और प्रदेश कांग्रेस कमेटियां पार्टी अध्यक्ष और कांग्रेस कार्य समिति के सदस्यों का चुनाव करती है।

प्राप्त खबरों के अनुसार कांग्रेस में इस बात पर सर्वसम्मति नहीं थी कि नए अध्यक्ष का चुनाव कांग्रेस कार्य समिति के 53 सदस्यों के हाथों में छोड दिया जाए जिसमें 24 सदस्य, 19 स्थायी आमंत्रिकी और 10 विशेष आमंत्रिकी हैं। यह भी सुझाव दिया गया कि कांग्रेस कार्य समिति को समाप्त कर पार्टी अध्यक्ष के चुनाव के लिए प्रदेश कांग्रेस कमेटियों के 10 हजार शिष्टमंडलों को आमंत्रित किया जाए। प्रदेश इकाइयों के साथ अनौपचारिक परामर्श को हुए प्रत्यक्ष चुनाव मानने के लिए तैयार नहीं थी और इस तरह पार्टी अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया के बारे में पार्टी में आंतरिक मतभेद थे और यह मतभेद चुनाव द्वारा चयन या चयन द्वारा चुनाव के मुद्दे पर था। कांग्रेस कार्य समिति के निर्णय के अनुसार सोनिया गांधी तब तक पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनी रहेंगी जब तक पूर्णकालिक अध्यक्ष का चुनाव नहीं होता। कांग्रेस पार्टी लंबे समय तक सत्ता में रही है और इसलिए उसे सरकार की शक्तियों का पता है और पार्टी और सरकार के संबंधों के चलते पार्टी नेतृत्व और पदाधिकारियों की भूमिका से भी वह अवगत है।

2004 के चुनावों के बाद कांग्रेस नीत गठबंधन को आठ साल के अंतराल के बाद शासन करने का अवसर मिला और कांग्रेस पार्टी सरकार और पार्टी के बीच पार्टी की भूमिका को सुदृढ करने में भी सफल रही। गठबंधन के नेता के रूप में कांग्रेंस को शासन करने का जनादेश मिलने से पार्टी में न केवल पुराने नेताओं की भूमिका बढ़ी अपितु सरकार में पार्टी की भूमिका भी बढ़ी। 2004-2014 के दौरान पार्टी और सरकार में अंदरूनी और बाहरी लोगों पर ध्यान दिया जाता रहा।

जबकि यह 1950 और 60 के दशक की स्थितियों के विपरीत था जब सरकार की भूमिका सर्वोच्च होती थी। सरकार और पार्टी के बीच नेतृत्व के विभाजन का यह राजनीतिक बदलाव 1978 में इंदिरा गांधी द्वारा शुरू किया गया था। उसके बाद राजीव गांधी और नरसिम्हा राव पार्टी अध्यक्ष और प्रधानमंत्री दोनों रहे। किंतु बाद में इसमें विभाजन होने का कारण 2004 में कांगे्रस अध्यक्ष सोनिया गांधी का प्रधानमंत्री न बन पाना था हालांकि पार्टी की जीत में उनकी मुख्य भूमिका रही थी।

इस विभाजन के कारण पार्टी अध्यक्ष सर्वाधिक महत्पूर्ण व्यक्ति बन गया और वह प्रधानमंत्री से भी महत्वपूर्ण बन गया क्योंकि उसे गठबंधन की जटिलताओं का प्रबध्ांन करना था और राष्ट्रीय न्यूनतम साझा कार्यक्रम, राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् आदि जैसे निकायों का प्रबंधन करना था। फलत: पार्टी अध्यक्ष की शक्तियां और प्रभाव बढेÞ और पार्टी और सरकार में वह सर्वेसर्वा हो गया। जिसके चलते पार्टी अध्यक्ष का पद महत्वपूर्ण बन गया। अनेक क्षेत्रीय पार्टियों के अनुभव से इस बात की पुष्टि होती है कि सफल नेता वे रहे जिन्होंने पार्टी के नेतृत्व पर कब्जा किया चाहे 1969 में करूणानिधि हों या 1987 में जयललिता या 2012 में अखिलेश यादव।

राजनीतिक दलों के पंजीकरण के लिए चुनाव आयोग के पास पार्टी संगठन, पार्टियों के घटकों की शक्तियां और कार्य, पार्टी के विभिन्न पदाधिकारियों की नियुक्ति की विधियों और उनके चुनाव की प्रक्रिया आदि के बारे में दस्तावेज प्रस्तुत करने होते हैं। पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र के बारे में कोई विनियमन नहीं हैं। भाजपा में पार्टी अध्यक्ष को कम से कम 15 साल से पार्टी का सदस्य होना चाहिए और उसका चुनाव पार्टी के निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है।

जिसमें पार्टी के राष्ट्रीय और प्रादेशिक परिषदों के सदस्य होते हैं। किंतु व्यवहार में पार्टियों के किसी वरिष्ठ सदस्य को आम सहमति से पार्टी अध्यक्ष बना दिया जाता है। पार्टी अध्यक्ष का कार्यकाल तीन वर्ष का होता है और कोई व्यक्ति दो कार्यकाल से अधिक पार्टी का अध्यक्ष नहीं बन सकता है। पार्टी अध्यक्ष सामान्यतया सरकार में पद धारण नहीं करता है। वर्तमान में अमित शाह सरकार में मंत्री भी हैं किंतु यह राज्य विधान सभा चुनों के मद्देनजर एक अस्थायी व्यवस्था है।

कांग्रेस में पार्टी अध्यक्ष के कार्यकाल की कोई सीमा न होने के कारण पार्टी में 1998 से 2017 तक एक ही व्यक्ति अध्यक्ष बना रहा। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी छह-छह वर्ष तक अध्यक्ष बने रहे। किसी एक व्यक्ति के लंबे समय तक पार्टी का नेतृत्व संभालने के चलते पार्टी की लोकतांत्रिक सोच कमजोर हो जाती है। क्या यह पार्टी में आ रहे युवाओं के अनुकूल होगा? कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी में नेतृत्व का चुनाव ऐसी पार्टी का आंतरिक मामला नहीं कहा जा सकता है जिससे देश के आम नागरिक प्रभावित न होते हों। कुल मिलाकर पार्टी का भविष्य नेतृत्व के चुनाव या चयन पर निर्भर करेगा।

डॉ. एस. सरस्वती

 

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