प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिना लागलपेट अपनी खरी बातों के लिए जाने जाते है। मोदी ने देश की विभिन्न जवलंत जनसमस्याओं से देशवासियों को रूबरू कराते हुए साफ साफ कहा कि जनता को हर समस्या के निवारण के लिए सरकार की और देखना बंद कर अपने स्तर पर कदम उठाने होंगे तभी हम नए भारत के निर्माण की तरफ आगे बढ़ पाएंगे। स्वाधीनता दिवस पर लाल किले से दिए प्रधानमंत्री के भाषण में चिंता और चेतावनी दोनों का मिश्रण था।
प्रधानमंत्री ने देशवासियों को जनसँख्या विस्फोट, जल संकट और प्लास्टिक के दुष्परिणामों से अवगत कराया। मोदी ने कहा इन चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार के साथ जनता को आगे आना होगा तभी मिलजुलकर आगे बढ़ पाएंगे। प्रधानमंत्री ने घोषणा कि हम आने वाले दिनों में जल जीवन मिशन को लेकर आगे बढ़ेंगे। इसके लिए केंद्र और राज्य साथ मिलकर काम करेंगे और इसके लिए साढ़े 3 लाख रुपये से ज्यादा रकम खर्च करने का संकल्प है। मोदी ने बूँद बूँद पानी के संचय पर जोर दिया।
प्रधानमंत्री की चिंता जायज है क्योंकि देश इस समय भीषण जल संकट से गुजर रहा है और इस आसन्न संकट पर जल्द काबू नहीं पाया गया तो हालत बदतर होने की सम्भावना है। नीति आयोग द्वारा जारी जल प्रबंधन सूचकांक के अनुसार भारत अब तक के सबसे बड़े जल संकट से जूझ रहा है। आयोग द्वारा जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि देश के करीब 60 करोड़ लोग पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। करीब 75 प्रतिशत घरों में पीने का पानी उपलब्ध नहीं है। साथ ही, देश में करीब 70 प्रतिशत पानी पीने लायक नहीं है।
आयोग का कहना है कि इस संकट के चलते लाखों लोगों की आजीविका और जिंदगी खतरे में है। आयोग ने चेतावनी भी दी है कि हालात और बदतर होने वाले हैं। उसके मुताबिक साल 2030 तक देश में पानी की मांग मौजूदा आपूर्ति से दोगुनी हो सकती है। साफ और सुरक्षित पानी नहीं मिलने की वजह से हर साल करीब दो लाख लोगों की मौत होती है। रिपोर्ट में कहा गया है प्रदूषण के मुद्दे पर लोगों को जागरूक करने के लिए जिस तरह मीडिया कैंपेन चलाए गए हैं, समय आ गया है कि पानी के मुद्दे पर भी उसी तरह कैंपेन चलाए जाएं । गौरतलब है जल गुणवत्ता सूचकांक में भारत दुनिया के 122 देशों में 120वें स्थान पर है।
प्रधान मंत्री ने जनसँख्या विस्फोट पर देशवासियों को आइना दिखाया और कहा हमारे यहां बेतहासा जनसंख्या विस्फोट हो रहा है। यह आने वाली पीढ़ियों के लिए अनेक संकट पैदा करता है। प्रधानमंत्री की चेतावनी जाहिर करती है कि जनसँख्या विस्फोट ने हमारा जीना दूभर कर दिया है। हमारी आबादी में अभी भी हर दिन पचास हजार की वृद्धि हो रही है। 137 करोड़ की आबादी को भोजन मुहैया कराने के लिए यह आवश्यक है कि हमारा खाद्यान्न उत्पादन प्रतिवर्ष 54 लाख टन से बढे जबकि वह औसतन केवल 40 लाख टन प्रतिवर्ष की दर से ही बढ़ पाता है। जनसंख्या वृद्धि के दो मूल कारण अशिक्षा एवं गरीबी है। लगातार बढ़ती आबादी के चलते बड़े पैमाने पर बेरोजगारी तो पैदा हो ही रही है, कई तरह की अन्य आर्थिक और सामाजिक समस्याएं भी पैदा हो रही हैं। एक अरब भारतियों के पास धरती, खनिज, साधन आज भी वही हैं जो 50 साल पहले थे परिणामस्वरूप लोगों के पास जमीन कम, आय कम और समस्याएँ अधिक बढ़ती जा रही हैं।
मानव द्वारा निर्मित चीजों में प्लास्टिक थैली एक ऐसी वस्तु है जो जमीन से आसमान तक हर जगह मिल जाती है। पर्यटन स्थलों, समुद्री तटो, नदी नालों, खेतों खलिहानों, भूमि के अंदर बाहर सब जगहों पर आज प्लास्टिक के कैरी बैग्स अटे पड़े है। घर में रसोई से लेकर पूजा स्थलों तक हर जगह प्लास्टिक थेलिया रंग बिरंगे रूप में देखने को मिल जाएगी। चावल, दाल, तेल, मसाले, दूध, घी, नमक, चीनी आदि सभी आवश्यकता के सामान आजकल प्लास्टिक-पैक में मिलने लगे हैं। आज प्रत्येक उत्पाद प्लास्टिक की थैलियो में मिलता है जो घर आते आते कचरे में तब्दील होकर पर्यावरण को हानि पंहुचा रहा है। अरबों प्लास्टिक के बैग हर साल फेंके जाते हैं।
चूंकि प्लास्टिक स्वाभाविक रूप से विघटित नहीं होता है इसलिए यह प्रतिकूल तरीके से नदियों, महासागरों आदि के जीवन और पर्यावरण को प्रभावित करता है। जहां कहीं प्लास्टिक पाए जाते हैं वहां पृथ्वी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है और जमीन के नीचे दबे दाने वाले बीज अंकुरित नहीं होते हैं तो भूमि बंजर हो जाती है। प्लास्टिक नालियों को रोकता है और पॉलीथीन का ढेर वातावरण को प्रदूषित करता है। चूंकि हम बचे खाद्य पदार्थों को पॉलीथीन में लपेट कर फेंकते हैं तो पशु उन्हें ऐसे ही खा लेते हैं जिससे जानवरों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है यहां तक कि उनकी मौत का कारण भी पॉलीथीन है।
बाल मुकुन्द ओझा