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हिंदुस्तान की आबोहवा तेजी से प्रदूषित हो रही है, मुख्य कारण क्या हैं?
हवा को प्रदूषित करने में वाहनों और मशीनरी में बड़ी मात्रा में जीवाश्म ईंधन का प्रयोग करना मुख्य कारण सामने आ रहा है। जीवाश्म ईंधन के जलने से गैस अधिक मात्रा विशैली उत्सर्जित हो जाती है। औधोगिक कार्बन उत्सर्जन से हवा में जहर फैल रहा है। वाहनों की संख्या में इजाफा युद्वस्तर पर हो रहा है। हमारी संस्था प्रदूषण के खिलाफ सालों से लड़ रही है। उत्तर भारत इस समय खतरनाक सल्फर डाइआॅक्साइड, नाइट्रोजन आॅक्साइड, कार्बन मोनोआॅक्साइड, ओजोन, शीशा, आर्सेनिक, निकेल, बेंजीन, अमोनिया, बेंजोपाइरिन, डीजल पार्टिकुलेट मैटर (डीपीएम) आदि प्रदूषकों की जद में है। किन कारणों से शहर में प्रदूषण कम हो सकता है, इस संबंध में हमने कई मर्तबा केंद्र व राज्य सरकारों को अवगत कराया है। हम तरक्की की बात कितनी ही क्यों न करें, लेकिन हमारे पास प्रदूषण को रोकने के इंतजाम अब भी नाकाफी हैं। प्रदूषण रोकने के लिए इच्छाशक्ति किसी में नहीं दिखती।
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आप और आपकी संस्था काफी वर्षों से प्रदूषण के खिलाफ मुखर हैं?
जिस जगह का प्रदूषण 2 हजार माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर पहुंच जाए, जो तय सुरक्षा मानकों से 20 गुना ज्यादा हो। वहां का जीवन असामान्य हो जाता है। इस त्राही के लिए हमने केंद्र सरकार व प्रदूषण नियंत्रण कंट्रोल बोर्ड को लिखित में अवगत कराया है। हिंदुस्तान में फैली आॅटोमोबाइल इंडस्ट्री के मालिकों को अपनी कमाई के अलावा कुछ नहीं दिखता। पर्यावरण की उन्हें जरा भी चिंता नहीं। आबोहवा को प्रदूषित करने में इनका बहुत बड़ा योगदान रहता है। यह सब सरकार की मिलीभगत से होता है। सरकार इन पर लगाम लगाने में आज भी विफल हैं। हवा में इनके वाहनों से जो धुआं निकल रहा है उसमें इस समय सल्फर की मात्रा 50 पीपीएम के आसपास है। इससे ह्रदय, सांस, अस्थमा व फेफड़ों संबंधी बीमारियां पैदा हो रही हैं। पेट्रोल व डीजल के वाहनों में पीएम कण ज्यादा उत्सर्जित हैं। इसलिए ऐसे वाहनों को पूरे देश में प्रतिबंधित करने की हमारी मांग रही है। सिर्फ सीएनजी वाहनों को ही चलाने की अनुमति देनी चाहिए।
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जल स्तर भी धीरे-धीरे नीचे खिसक रहा है। दिल्ली और आसपास के प्रदेशों का भी बुरा हाल है?
जहां पानी की अधिकता रहती है वहां प्रदूषण कम होता है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के अलावा कुछ राज्यों का भूजल-स्तर पिछले एक दशक से लगातार नीचे जा रहा है। हमारी रिपोर्ट पर पूर्व की केंद्र सरकार ने पानी स्तर नापा था जिसमें पानी की कमी को दशार्या था। लेकिन उपाय नहीं किए गए। दिल्ली-एनसीआर का लगातार विस्तार किया जा रहा है। लेकिन इस बात पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है कि धरती ये सब कैसे सहन कर पाएगी। पानी के दोहन को लेकर हमने कई कंस्ट्रश्न प्रोजेक्ट्स को रूकवाया भी है।
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आपकी संस्था प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार से कारगर तंत्र की मांग करती आ रही है। अब क्या स्थिति है?
निवर्तमान और वर्तमान की केंद्र सरकार को हमने कई देशों का हवाला दिया है जहां प्रदूषण मानवीय प्रयास से कम किया गया। वहां की सरकारों ने अपनी तकनीक, तेजी व तत्परता से प्रदूषण के प्रभाव को कम किया। चीन में एक बार बकायदा रेड अलर्ट जारी कर उद्योगों, निमार्णों व वाहनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। हमारे यहां शहरों में सभी नियम कानून ताक पर रखकर धड़ल्ले से अवैध निर्माण किए जा रहे हैं। गंगनचुंभी इमारतों के बनने से भू-जल का स्तर लगातर नीचे जा रहा है जिसकी कोई भी परवाह नहीं कर रहा है। बिगड़ती आबोहवा को बदरंग करने में हमारा सरकारी तंत्र खूब साथ दे रहा है। हमें अति प्रतिक्रियाशील गैसों से तौबा करना होगा। गैस हम लोगों के द्वारा ईंधन व कचरा जलाने से वातावरण में फैलती है। उक्त तरीकों से ही हम प्रदूषण की मार से बच पाएंगे।
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आपके मुताबिक क्या हों प्रभावी विकल्प?
सबसे पहले कोयले से बिजली बनाने वाले तापीय बिजलीघरों पर बैन लगाया जाना चाहिए। क्योंकि इससे निकलने वाला धुंआ हवा में जहर घोलता है। इसके अलावा डीजल युक्त वाहनों पर तुरंत रोक लगनी चाहिए। जहरीली गैसों पर प्रतिबंध लगे। वाहन पंजीकरण प्रक्रिया को और जटिल करने की आवश्यकता है। एक से ज्यादा वाहन लेने पर रोक लगे। 2002 में जब हमने दिल्ली में चलने वाली सभी बसों में सीएनजी की मांग की तो चारो ओर हो-हल्ला मच गया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हमारे पक्ष में फैसला सुनाते हुए तत्काल प्रभार से सभी बसें सीएनजी से चलने का फरमान जारी किया। इसके बाद प्रदूषण में काफी फर्क देखने को मिला था। प्रदूषण कम करने को लेकर हमनें केंद्र सरकार को एक सुझाव वाला मसौदा सौंपा है। अगर उस पर अमल हो जाए तो काफी हद तक स्थिति सुधर सकती है।
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कुछ निजी कंपनियों पर भी आपने प्रतिबंध लगाने की मांग की थी?
कुछ साल पहले हमने कोका कोला के खिलाफ अभियान चलाया था। सरकार को हमने एक रिपोर्ट दी थी जिसमें कोला कंपनी द्वारा पानी दोहन की बात कही थी। पर, सरकार ने हमारी बात को सिरे से नकार दिया था। पर हमारी लड़ाई जारी रही। अंत: कोला कंपनी को अपने कई प्रोजेक्टों को बंद करना पड़ा था। देश की सिंचाई का करीब 70 फीसदी और घरेलू जल खपत का 80 फीसदी हिस्सा भूमिगत जल से पूरा होता है, जिसका स्तर तेजी से घट रहा है। पानी की भरमार वाले उत्तर भारत के कई राज्यों में आज भूजल खतरनाक स्तर तक गिर गया है। यहीं नहीं देश में जो भूमिगत जल उपलब्ध है भी उसे अंधाधुन और बेरोकटोक इस्तेमाल की वजह से दूषित होता जा रहा है।
रमेश ठाकुर