पश्चिम बंगाल में एक बार फिर जय श्री राम के नारे को लेकर मुद्दा सुर्खियों में है। इस बार हुगली जिले के एक स्कूल में दसवीं की परीक्षा के टेस्ट में एक प्रश्न पूछा गया है कि वह जय श्रीराम नारे का दुष्परिणाम बताएं। साथ ही, एक और सवाल यह भी आया है कि वह कट मनी लौटाने के फायदे बताएं। इन सवालों को लेकर एक बार फिर से माहौल गर्म है। इससे पहले भी दक्षिण 24 परगना जिले के विष्णुपुर थानांतर्गत बाखराहाट उच्च विधालय में जय श्रीराम बोलने को लेकर बाहरी लोगों द्वारा स्कूल में घूस कर छात्रों से मारपीट किए जाने का मामला प्रकाश में आया था।
जैसे ही घटना की जानकारी मिली थी तभी मौके पर पहुंची पुलिस ने लाठीचार्ज कर बाहरी लोगों की पिटाई की थी । इस मामलें को लेकर छात्रों और उनके अभिभावकों ने प्रदर्शन किया था। एक अन्य मामले में मध्य हावड़ा स्थित श्रीरामकृष्ण शिक्षालय नामक स्कूल में एक टीचर ने क्लास वन में पढ़ने वाले बच्चे की सिर्फ इसलिए बेरहमी से पिटाई कर दी थी क्योंकि उसने क्लास में जय श्रीराम बोल दिया था। अब यह बच्चा स्कूल जाने के नाम से ही खौफ में आ जाता है।
हमें लगता है कि देश की शिक्षा में बदलाव को जो पैनल हो,वो किसी सरकार के अंतर्गत नही होना चाहिए क्योंकि यदि सरकारें बदलती रहेगीं और एक दूसरे के प्रति कुंठा निकालने के लिए इतिहास के साथ छेड़छाड़ करती रहेगीं जिससे बच्चे भ्रमित होते रहेगें और वो सच को कभी जान भी नही पाएगें। इससे पहले भी राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने स्कूल पाठयक्रम में बदलाव करते हुए देश के महान व्यक्ति वीर सावरकर को अंग्रेजो से माफी मांगने वाला बताया है। इससे पहले पाठयक्रम में इन्हें वीर, महान, क्रांतिकारी व देशभक्त जैसे शब्दों से नवाजा गया था।
पिछले दिनों दो बार ऐसा देखा गया कि पश्चिम बंगाल में कुछ लोगों ने जय श्री राम के नारे लगाए जिससे ममता बनर्जी इतनी नाराज हो गई कि गाडी से उतरकर ऐसे लड़ रही थी कि जैसे यह नारा उन्हें परेशान कर रहा हो। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति मानी जा रही है। कभी बचपन में ऐसा होता था कि मजाक में किसी के नाम को बिगाड़ कर या किसी बच्चे को कोई जो चीज पंसद न हो और उसके सामने बार-बार उस चीज का नाम लेकर चिढ़ाया जाता था। लेकिन एक मुख्यमंत्री जो अपने राज्य के लिए बेहद गंभीर भी मानी जाती है वो मात्र भगवान का नाम लेने से चिढ़ रही हो ऐसा पहली बार देखा जा रहा है।
आखिर इस तरह की घटनाओं से ममता सरकार क्या दिखाना चाहती है। क्या यह शक्ति प्रदर्शन है या वर्चस्व की लड़ाई? अपने मन में वो इन दोनों में कोई भी तरह की बात पाल कर रखें लेकिन यह भविष्य के लिए बेहद गलत हो रहा है। भारतीय राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप व बेतुके ब्यानों की दुकानें हमेशा सजी रहती है लेकिन बच्चों व शिक्षा को इसमें घसीटना दुर्भाग्यपूर्ण है।
लगातार दो बार से ममता बनर्जी मुख्यमंत्री बनती आ रही है। 2016 में विधानसभा चुनाव में 294 में से 211 सीटों पर अकेले तृणमूल कांग्रेस ने कब्जा किया था लेकिन इस बार हुए लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल से बनर्जी की जमीन खिसक गई। अगामी विधानसभा चुनाव जो 2021 में होने हैं उसको लेकर बनर्जी को चिंता सताने लगी जो शायद स्वभाविक भी है क्योंकि कोई भी अपना किला भेदते हुए या गिरते हुए नही देख सकता। किसी पार्टी का निर्माण करना उसके बाद उसको संचालित करना बहुत कठिन काम हैं क्योंकि अब राजनीति का फॉर्मेट पूरी तरह बदल चुका है। जो जनता के साथ खड़ा होगा, जो काम करेगा वो ही टिकेगा।
अब राजनीति, पार्ट टाइम का खेल नही बचा और इस बार से लोकसभा सभा चुनाव से उन लोगों का भ्रम भी दूर हो गया जो लगातार जीतने वाली सीटों को अपनी पैतृक सीट समझने लगे थे। बहरहाल यह लोकतंत्र है। पश्चिम बंगाल में अब दोनो को मिलकर जनता की कसौटी पर खरा उतरते हुए उनका भला करना है। क्योंकि पश्चिम बंगाल जैसे राज्य में दोनों के साथ मिलकर काम करना आसान नही है। ममता दीदी हर छोटी से छोटी घटना को दिल पर ले जाती हैं और हर बात पर अपना वजूद अड़ाने का प्रयास करती है जो मुख्यमंत्री पद की गंभीरता पर सवालिया निशान खड़ा करता है।
हिन्दुस्तान जैसे देश में किसी भी नेता को हर धर्म को साथ लेकर चलना अनिवार्य है हांलाकि यह प्रक्रिया पूरे विश्व के लिए लागू होती है लेकिन हमारे देश में विकास कार्यों से ज्यादा धर्मों की राजनीति होती हैं। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में तो कुछ पार्टियों ने कई जातियों खासतौर अल्पसंख्यकों पर अपना कॉपी राइट समझते हुए इस तरह वोट मांगे थे जिससे देश बांटने का स्टंट साफ दिख रहा था। सौभाग्य का इतराना सबको अच्छा लगता है लेकिन अब अपनी जीत के लिए कुछ भी करना या बोलना दुर्भाग्य को भी इतराने का मौका देने लगा। लेकिन अब टीएमसी व बीजेपी दोनो को ही साथ काम करने की जरुरत है क्योंकि किसी भी पार्टी का उद्देश्य राज्य की तरक्की करना व शांति व्यवस्था बनाए रखना होता है।
योगेश सोनी