अब पीओके की बारी?

Now it's PoK's turn?

जम्मू-कश्मीर के मुद्दे से जुड़े पाक अधिकृत कश्मीर पर अपना दो टूक रुख स्पष्ट करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में बोला कि ‘मैं जब जम्मू-कश्मीर की बात करता हूं, तो इसमें पीओके और अक्साई चिन भी शामिल हैं।’ इन्हें प्राप्त करने के लिए हम अपने प्राण भी न्यौछावर करने को तैयार है। शाह ने यह स्पष्टीकरण कांग्रेस नेता अधीररंजन चौधरी के उस विवादित बयान पर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि कश्मीर मुद्दे की निगरानी जब संयुक्त राष्टÑ कर रहा है तो यह मामला आंतरिक कैसे रह गया? साथ ही सरकार का पीओके के बारे में क्या नजारिया है, स्पष्ट करे?’ दरअसल इस समय कांग्रेस की हालत खिसियानी बिल्ली खंभा नौचे जैसी हो रही है। इसलिए कांग्रेस ने उस मुद्दे को बेवजह उठा दिया, जो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में शिमला समझौते के परिप्रेक्ष्य में ही खत्म हो गया था।

भारत की आक्रामकता जरूरी है, क्योंकि बौखलाया पाकिस्तान कश्मीर में अराजकता फैलाने में पूरी ताकत लगाएगा। हालांकि संयुक्त राश्ट्र में सुषमा स्वराज के विदेश मंत्री रहने के दौरान भारत गुलाम कश्मीर पर अवैध कब्जा जमाए बैठे पाकिस्तान को तुरंत इसे खाली करने की चेतावनी दे चुका है। हालांकि संसद में हुई इस बेवाक चर्चा से यह पैगाम पूरी दुनिया में चला गया है कि पीओके समेत संपूर्ण कश्मीर भारत का अभिवाज्य अंग है। इस मुद्दे पर पीवी नरसिंह राव सरकार ने भी कड़क रुख अपनाया था। तब इस सरकार ने भारतीय संसद में बाकायदा इस मकसद का प्रस्ताव पारित किया था कि पाक अधिकृत कश्मीर के साथ वह भू-भाग जो पाक ने चीन को बेच दिया है, अर्थात अक्साई चिन भी हमारा है। इस प्रस्ताव ने संपूर्ण कश्मीर पर हमारे दावे को मजबूत किया था। इसके बाद की अटल बिहारी वाजपेयी और दस साल तक केंद्र में काबिज रहीं मनमोहन सरकारें इस दावे को मजबूती से संयुक्त राष्ट्र के मंच पर उठाने में पीछे रहीं। लेकिन नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद लाल किले की प्राचीर से कड़े लहजे में पाकिस्तान को सीधा संदेश देते हुए कहा था कि उसके कब्जे वाले कश्मीर, गिलगिट और ब्लूचिस्तान में जो अमानवीय अत्याचार हो रहे हैं, वे बर्दाश्त से बाहर हैं।

यह सही है कि जब राजा हरिसिंह कश्मीर के शासक थे, तब पाकिस्तानी कबाइलियों ने अचानक हमला करके कश्मीर का कुछ हिस्सा कब्जा लिया था। तभी से पाकिस्तान उसे अपना बताता आ रहा है,जो पूरी तरह असत्य है। यह अच्छी बात है कि नरेंद्र मोदी नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने पीओके के संदर्भ में संसद में अपना पक्ष स्पष्ट कर दिया है। गोया, पाक अधिकृत कश्मीर न केवल भारत का है, बल्कि वहां के लोग गुलाम कश्मीर को भारत में शामिल करने के पक्ष में भी आ रहे हैं। पाक अधिकृत कश्मीर में पाक सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन लगातार होते रहते हैं। इसकी वजह, वहां हो रहे नागरिकों का शोषण और दमन है। इस दमन की तस्वीरें व वीडियो निरंतर मीडिया में सुर्खियां बनते रहते हैं। गिलगित और ब्लूचिस्तान पर पाक ने 17 मार्च 1947 को सेना के बूते अवैध कब्जा कर लिया था, तभी से यहां राजनीतिक अधिकारों के लिए लोकतांत्रिक सामाज का दमन किया जा रहा है। यह आग अस्तोर, दियामिर और हुनजा समेत उन सब इलाकों में सुलग रही है, जो शिया बहुल हैं। सुन्नी बहुल पाकिस्तान में शिया और अहमदिया मुस्लिमों समेत सभी धार्मिक अल्पसंख्यक प्रताड़ित किए जा रहे हैं। अहमदिया मुस्लिमों के साथ तो पाक के मुस्लिम समाज और हुकूमत ने भी ज्यादती बरती है। 1947 में उन्हें गैर मुस्लिम घोशित कर दिया गया था। तब से वे पाकिस्तान में न केवल बेगाने हैं, बल्कि मजहबी चरमपंथियों के निशाने पर भी हैं।

पीओके और ब्लूचिस्तान पाक के लिए बहिष्कृत क्षेत्र हैं। पीओके की जमीन का इस्तेमाल वह, जहां भारत के खिलाफ शिविर लगाकर गरीब व लाचार मुस्लिम किशोरों को आतंकवादी बनाने का प्रशिक्षण दे रहा है, वहीं ब्लूचिस्तान की भूमि से खनिज व तेल का दोहन कर अपनी आर्थिक स्थिति बहाल किए हुए है। अकेले मुजफ्फराबाद में 62 आतंकी शिविर हैं। यहां के लोगों पर हमेशा पुलिसिया हथकंडे तारी रहते हैं। यहां महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं है। गरीब महिलाओं को जबरन वैश्यावृत्ति के धंधों में धकेल दिया जाता है। 50 फीसदी नौजवानों के पास रोजगार नहीं हैं।

40 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे है। 88 प्रतिशत क्षेत्र में पहुंच मार्ग नहीं हैं। बावजूद पाकिस्तान पिछले 72 साल से यहां के लोगों का बेरहमी से खून चूसने में लगा है। जो व्यक्ति अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाता है, उसे सेना, पुलिस या फिर आइएसआई उठा ले जाती है। पूरे पाक में शिया मस्जिदों पर हो रहे हमलों के कारण पीओके के लोग मानसिक रूप से आतंकित हैं। दूसरी तरफ पीओके के निकट खैबूर पख्तूनख्वा प्रांत और कबाइली इलाकों में पाक फौज और तालिबानियों के बीच अकसर संघर्श जारी रहता है, इसका असर गुलाम कश्मीर को भोगना पड़ता है। नतीजतन यहां खेती-किसानी, उद्योग-धंधे, शिक्षा-रोजगार और स्वास्थ्य-सुविधाएं तथा पर्यटन सब चैपट हैें। गोया यहां के लोग भारत की ओर ताक रहे हैं।

ब्लूचिस्तान ने 72 साल पहले हुए पाक में विलय को कभी स्वीकार नहीं किया। पाक की कुल भूमि का 40 फीसदी हिस्सा ब्लूचिस्तान में है। करीब 1 करोड़ 30 लाख की आबादी वाले इस हिस्से में सर्वाधिक बलूचे है। पाक और ब्लूचिस्तान के बीच संघर्श 1945, 1958, 1962-63, 1973-77 में होता रहा है। 77 में पाक द्वारा दमन के बाद करीब 2 दशक तक शांति रही। लेकिन 1999 में परवेज मुशर्रफ सत्ता में आए तो उन्होंने बलूच भूमि पर सैनिक अड्डे खोल दिए। इसे बलूचों ने अपने क्षेत्र पर कब्जे की कोशिश माना और फिर से संघर्श तेज हो गया। इसके बाद यहां कई अलगाववादी आंदोलन वजूद में आ गए। इनमें सबसे प्रमुख ब्लूचिस्तान लिबरेशन आर्मी है।

लिहाजा यहां अलगाव की आग निरंतर सुलग रही है। नतीजतन 2001 में यहां 50 हजार लोगों की हत्या पाक सेना ने कर दी थी। इसके बाद 2006 में अत्याचार के विरुद्ध आवाज बुलंद करने वाले 20 हजार सामाजिक कार्यकतार्ओं को अगवा कर लिया गया था, जिनका आज तक पता नहीं है। 2015 में 157 लोगों के अंग-भंग किए गए। फिलहाल पुलिस ने जाने-माने एक्टिविस्ट बाबा जान इन मुद्दों को विभिन्न मंचों से उठाते रहते हैं। पिछले 17 साल से जारी दमन की इस सूची का खुलासा एक अमेरिकी संस्था ह्यगिलगिट-ब्लूचिस्तान नेशनल कांग्रेसह्य ने किया है। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और ब्लूचिस्तान में लोगों पर होने वाले जुल्म एवं अत्याचार के बाबत पाक को दुनिया के समक्ष जवाब तो देना ही होगा, उसे भारत के जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश का हिस्सा मानते हुए मुक्त भी करना होगा?
प्रमोद भार्गव

 

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