भारत के बिगड़ते आर्थिक हालात

India's worsening economic situation

भारत की सबसे बड़ी कोफी कैफे चैन कॉफी डे के संस्थापक वी. जी. सिद्धार्थ की आत्महत्या ने भारतीय अर्थव्यवस्था के बिगड़ते हालात को उघाड़ कर रख दिया है। सभी लोग स्तब्ध हैं उनकी मौत से हम पूंजीवाद के नाम२पर व्यापारियों को लानत भेज सकतें हैं परन्तु हमें समझना होगा कि पूंजीवाद और उद्यमिता दो अलग बातें हैं। जब कोई व्यापार स्थापित होता है और वृद्धि करता है तो उसके साथ उससे जुड़े कामगार और कर्मचारियों की आशाओं को भी पंख लगते हैं। लेकिन जब कोई उद्योग या व्यापार बर्बाद होता है तो आर्थिक श्रंखला की एक बड़ी कड़ी टूट जाती है और वो पूरे आर्थिक चक्र को बड़ी हानि पहुंचा देती है।

पिछले कुछ समय में भारत के कई बड़े औद्योगिक समूह बर्बाद हो चुकें हैं या फिर बर्बादी के कगार पर खड़े हैं। किंग फिशर, यूनिटेक बिल्डर्स, आम्रपालीआद्य बिल्डर्स, जे.पी. बिल्डर्स, गीतांजली ज्वैलर्स जैसी कितनी ही बड़ी कम्पनियां बर्बाद हो चुकी हैं। आईएल एंड एफएस, ओएनजीसी, बीएसएनल और वीडियोकोन, सुजलोन जैसे बड़े व्यापारिक समूह भी बुरे आर्थिक हालात से जूझ रहें हैं।

भारत का रियल स्टेट व्यापार पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है। आॅटो बाजार भी बड़ी मंदी का शिकार है। बाकी क्षेत्रों में भी हालात कुछ अच्छे नहीं हैं। आम्रपाली आद्य के सम्बन्ध में माननीय उच्चतम न्यायलय ने किसी सरकारी एजेंसी से काम पूरा करवाकर ग्राहकों को फ़्लैट देने का निर्देश दिया है। ऐसी ही व्यवस्था बाकी रियल स्टेट के फंसे हुए प्रोजेक्ट्स बारें में की जा रही है। लेकिन जो पैसा ग्राहकों से प्राप्त होगा उससे कहीं ज्यादा बड़ी राशि इन प्रोजेक्ट्स को पूरा करने में खर्च होगी तो प्रश्न ये है कि उस राशी को सरकार कैसे जुटाएगी? यदि इन संपत्तियों की नीलामी करके ग्राहको को रकम वापस करने का विकल्प भी देखा जाये तो इन संपत्तियों की कुल कीमत अब बहुत ही कम है। माननीय उच्चतम न्यायालय के दिशा निदेर्शों का अनुपालन अभी एक बड़ी चुनौती है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका से चला सब-प्राइम आर्थिक संकट भी रियल स्टेट से ही प्रारंभ हुआ थो 153 रियल स्टेट कम्पनियां अपने दिवालिया होने की प्रक्रिया का आवेदन कर चूकि हैं।

बाकी क्षेत्रों को देखें तो 151 रिटेल कम्पनी और 612 उतपादक कम्पनियों ने भी स्वयं को दिवालिया घोषित करने का आवेदन कर दिया है। 36% से ज्यादा लगभग 680000 पंजीकृत कम्पनियां बंद हो चूँकि हैं। ये दावा कि ये सभी कम्पनियां फर्जी लेनदेन से जुड़ी थी अत्यंत भ्रामक है। इनमें से अधिकतर वो कम्पनियां हैं जो बिगड़ते आर्थिक हालत में खुद को खड़ा ही नहीं रख पायीं और अधिकतर कम्पनियां मझोले और छोटे स्तर की थी, बहुत सी उभरते हुए उद्यमियों की थीे अभी भी बहुत सी बड़ी कम्पनियां हैं जिनका ऋण उनकी संपत्ति से ज्यादा है। वर्तमान में भारतीय बैंको का फंसा हुआ लॉन 10 लाख करोड़ से भी ज्यादा है जो 2014 में 2.5 लाख करोड़ था। वर्तमान में लगभग 3.5 लाख करोड़ फंसा हुआ लॉन ऐसा है जो वापस आना असंभव है। इन बैंको में से अधिकतर बैंक राष्ट्रीयकृत हैं तो इन बैंको को होने वाले या हो चुके इस नुकसान की भरपाई सरकार कैसे करेगी? ये बड़ा मुद्दा है। इस परिस्थिति में बेरोजगार हुए कर्मचारियों और कामगारों को तो सरकार ने कभी भी अपनी जिम्मेदारी माना ही नहीं।

इस बर्बाद होते आर्थिक ढांचें का एक दूसरा पहलु भी है। भारत के अरबपतियों की संपत्ति में कुल 34% की वृद्धि हुई है। ये वो लोग हैं जो अब भारत की कुल 51% संपत्ति पर अधिकार रखतें हैं। इन बुरे आर्थिक हालात में भी मोदी सरकार के कथित करीबी व्यापरी मुकेश अम्बानी की संपत्ति वर्ष 2014 में 18.6 बिलियन डॉलर से दुगने से भी ज्यादा बढ़कर 2019 में 50 बिलियन डॉलर हो गयी है।

गौतम अडानी की संपत्ति भी वर्ष 2016 में 3.5 बिलयन से दुगने से भी ज्यादा की वृद्धि करके वर्ष 2019 में 8.7 बिलयन डॉलर हो गयी है। वहीँ एक कड़वा सत्य ये है कि दुनिया के सबसे ज्यादा गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले लोग भारत में ही हैं। जब सभी को अपनी अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन के सामान अवसर मिलतें हैं तो वो उद्यमशीलता को बढ़ावा देने वाला वातावरण होता है। जो राष्ट्र को शसक्त बनाकर देशवासियों को रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाता है और गरीबी दूर करता है। लेकिन जब संसाधनों पर कुछ ही पूंजीपतियों का आधिपत्य हो जाए तो वो पूंजीवाद का क्रूरतम चेहरा होता है। जिससे कितनी ही आर्थिक और सामाजिक समस्याएं उत्त्पन्न होती हैं। गरीबी, भुखमरी और कामगारों के शोषण को बढ़ावा मिलता है।

संसाधनों पर सबका बराबर अधिकार हो ये सुनिश्चित करने का काम सरकार का होता है। इन बिगड़ते आर्थिक हालत का जिम्मेदार कौन है और इनसे कैसे निपटा जाये? ये सरकार को सोचना होगा। संकटोंउन्मुख अर्थव्यवस्था पर लगातार दो आर्थिक प्रयोग ‘नोटबंदी’ और जीएसटी लाद देना भी एक बड़ा कारण हो सकता है। लेकिन सरकार इस बात को कभी स्वीकार नहीं करतीे सरकार तो अभी ये भी स्वीकार नहीं कर रही कि भारत बड़े आर्थिक संकट की तरफ तेजी से अग्रसर है। यदि शीघ्र ही कोई प्रयास नहीं किया गया तो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आने वाला समय अत्यंत दुष्कर होने वाला है।
सतीश भारद्वाज

 

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