बाघ की माबलिंचिंग और वन्यजीव कानून

Mob lyunding of Tigerers and animal Cruelty act

यूपी के पीलीभीत से एक बेजुबान संरक्षित बाघ के साथ माबलिचिंग की घटना सामने आई है। वायरल हुआ वीडियो दहला देने वाला है। वीडियो में गांव वाले तोबड़तोड़ हमला कर बाघ को मौत के घाट उतार देते हैं। घटना पूरनपुर मंटेना की है। जहां एक बाघ देउरिया वन रेंज से बाहर निकल कर गांव में घुस आया। बाघ के हमले में नौ गांव वाले घायल हो गए जिसके बाद गुस्साए ग्रामीणों ने बाघ को लाटी.डंडे से पीट.पीट कर मार डाला। हालांकि बाघ के शव का पोस्टमार्टम कराए जाने के बाद वन विभाग ने 45 से अधिक गांव वालों के खिलाफ वन संरक्षण अधियम के तहत मामला दर्ज कराया है।

लेकिन संरक्षित बाघों का शिकार और हमले की यह कोई पहली घटना नहीं है। तराई इलाका होने से पीलीभीत में बाघों के साथ इस तरह की अमानवीय खबरें आती रहती हैं। यह बेहद चिंता का विषय है देश भर में इंसानों पर बढ़ती माब लिंचिंग की घटनाएं अब जानवारों पर भी घटने लगी हैं। माबलिंंिचंग को जाति.धर्म से जोड़ कर संसद में हंगामा करने वाले लोग बाघ की लिंचिंग पर क्यों मौन हैं। लिंचिंग की घटनाओं पर एक प्रबुद्ध वर्ग प्रधानमंत्री मोदी को चिट्ठी लिख इस पर गहरी चिंता भी जतायी हैं जिस पर दूसरे वर्ग ने उसी भाषा में उसका जवाब भी दिया है। लेकिन अफसोस इस बात का है कि देश में संरक्षित वन्यजीवों हमारी चिंता का विषय नहीं बनते हंै। जबकि यह हमारे पर्यावरण में अच्छी भूमिका निभाते हैं।

आपको शायद यह नहीं मालूम होगा कि दुनिया भर में पाए जाने वाले बाघों में 70 फीसदी बाघ भारत में पाए जाते हैं। बाघ केवल बारह देशों में मिलते हैं। वर्तमान समय में भारत में एक अनुमान के अनुसार 4500 से अधिक बाघ हैं। 2016 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने बाघ संरक्षण पर तीसरे एशिया सम्मेलन में अपनी बात रखते हुए बताया था कि 12 सालों में बाघों के संरक्षण को लेकर सकारात्मक परिणाम आए हैं। उस समय दुनिया में बाघों की आबादी 3200 से बढ़कर 3890 तक पहुंच गयी थी जो बाघों की आबादी का यह 22 फीसद था। भारत सरकार तीन साल पूर्व बाघ संरक्षण परियोजना के बजट को 185 करोड़ रुपये से बढ़ा कर 380 करोड़ कर दिया था। भारत में बाघ संरक्षित और राष्टÑय पशु है।

यह बेहद शक्तिशाली और मांसाहारी होता है। बाघ 12 फीट से अधिक लंबा और 300 किलोग्राम तक वजनी होता हैं। जंगल में बाघ अकेले रहना पसंद करता है। लेकिन प्रजनन काल के दौरान जोड़े में एक साथ दिखता है। हर बाघ का अपना इलाका होता है। एक बाघ की औसत आयु तकरीबन 20 साल होती है। एक शोध के अनुसार दुनिया भर में पाए जाने वाली बाघ की नौ प्रजातियों में तीन विलुप्त हो चुकी हैं।

भारत में उत्तर.पूर्व को छोड़ कर रायल बंगाल टाइगर हर जगह पाया जाता है। बाघों की घटती संख्या और शिकार को देखते हुए 1973 में बाघ परियोजना शुरूवात की गयी। देश को बाघ संरक्षण के लिए 27 इलाकों में बांटा गया है। भारत में बाघ संरक्षण के लिए 2019 की जनवरी में नई दिल्ली में वैश्विक सम्मेलन किया गया था। 2012 के बाद देश में आयोजित होने वाला यह दूसरा सम्मेलन था। 2010 में पीट्सवर्ग में आयोजित वैश्विक सम्मेलन में बाघों की आबादी बढ़ाने पर बल दिया गया था। जिसमें 2022 तक बाघों की संख्या दोगुनी करने का संकल्प लिया गया था।

उस समय भारत में अनुमान लगाया गया था कि देश में कुल 1411 बाघ थे। बाद में संरक्षण पर विशेष ध्यान और सरकारी पहल के बाद अब यह बढ़ कर 2600 से अधिक पहुंच गई है। फोरम की स्थापना का निर्णय नई दिल्ली में 1993 में लिया गया था। जिसके बाद 1994 में भारत को इसका अध्यक्ष चुना गया। देश में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 2006 को संशोधित कर 1972 में बाघ संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना की गयी। भारत में वन्यजीव संरक्षण कानून बाघों के साथ तकरीबन सौ से अधिक वनीय पशु-पक्षियों के साथ वनस्पतियों के संरक्षण का भी अधिकार देता है। इसमें कम से कम तीन और अधिकतम सात साल की सजा के साथ दस हजार रुपये के आर्थिक जुर्माने का भी प्राविधान है। पीलीभीत की घटना कम से कम यही साबित करती है।

बाघ की मौत के बाद वनविभाग के अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए 45 से अधिक गांव वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया। लेकिन उन्होंने क्या अपनी जिम्मेदारी निभाई। बाघ संरक्षित रेंज से कैसे बाहर आया। अगर आया भी तो जब गांव वालों ने इसकी सूचना दिया तो जिम्मेदार लोग बाघ को जिंदा पकड़ जंगल में भेजने का कदम क्यों नहीं उठाया। क्योंकि बाघ अगर एक बार इंसान का मांस निगल लेता तो उसके नरभक्षी बनने का भी खतरा था। गांव वालों ने अपनी आत्मरक्षा में जो कदम उठाया उसे गलत नहीं ठहराया जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अपनी प्राणरक्षा में इस तरह का फैसला ले सकता था। इस घटना के लिए पूरी तरह वनविभाग का जिम्मेदार है। दोषी अफसरों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। संरक्षित वन्यजीवों के लिए और प्रभावी कानून बनाए जाने की जरुरत है।