सूचना तकनीक के बाद भारत में प्रजनन का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। इसमें किराए पर कोख दिए जाने का धंधा भी शामिल है। चिकित्सा पर्यटन के साथ-साथ विदेशी पर्यटक अब भारत प्रसूति पर्यटन के लिए भी बड़ी संख्या में आने लगे हैं। भारतीय उद्योग महासंघ के एक अघ्ययन के मुताबिक भारत में किराए की कोख का कारोबार प्रति वर्ष 50 करोड़ का है, जिसके 2020 तक दो अरब तक पहुंचने की उम्मीद है।
गुजरात के आनंद में यह व्यवसाय सबसे ज्यादा फल-फूल रहा है। लेकिन यह धंधा अंतत: प्रकृति की प्रतिरूप महिला की कोख पर टिका है, ठीक उसी तरह, जिस तरह, उदारवादी अर्थव्यस्था प्रकृति की खनिज संपदाओं के दोहन पर टिकी है। इस धंधे की भारी कीमत उन महिलाओं को चुकानी पड़ रही है, जिन्हें अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए हर हाल में धन की जरूरत है। अब सरकार कोख के व्यावसायिक इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की दृष्टि से किराए की कोख नियमन विधेयक-2019 (द सरोगेसी रेगुलेशन बिल) ला रही है।
लोकसभा में प्रस्तुत किए विधेयक में व्यावसायिक दृश्टि से किराए की कोख लेकर बच्चा पैदा करने के उपाय को गैरकानूनी ठहराया गया है। इसका उल्लंघन करने पर 10 साल के कारावास की सजा और 10 लाख रुपए के जुर्माना का प्रावधान किया गया है। इस गोरखधंधे पर अकुंश लगाने की यह उचित पहल है। इस कानून से उन्हें परेशानी है, जिन्होने स्त्री की आर्थिक कमजोरी को वस्तु में ढालकर उसकी कोख को बाजार के हवाले कर दिया है। वे यह भी दलील दे रहे हैं कि कठोर कानून से विदेशी मुद्रा का अगमन रुक जाएगा।
बीते कुछ वर्शों में भारत किराए की कोख का नाभिकेंद्र हो गया है। नतीजतन किराए पर कोख देने वाली माताओं का शारीरिक और आर्थिक शोषण हो रहा है। गुजरात के आनंद में यह कारोबार सबसे ज्यादा होता है। दरअसल भारत में अमेरिका व यूरोपीय देशों की तुलना में खर्च सात गुना कम है। साफ है, अंधाधुंध व्यवसाईकरण के चलते लाचार मां की कोख का दुरुपयोग हो रहा है। इसीलिए विधि आयोग ने अपनी 228वीं रिपोर्ट में कानून बनाकर इस व्यापार पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी। गोया, स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने लोकसभा में इस बिल को पेश किया। इसमें राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सरोगेसी बोर्ड बनेंगे। सरोगेसी मां चाहने वाले दंपति की नजदीकी रिश्तेदार होनी चाहिए। ऐसी मां की उम्र 25 से 35 वर्ष होने के साथ उसका अपना एक बच्चा भी होना चाहिए। सिर्फ एक बार ही कोई महिला सरोगेट मां बन सकेगी।
बावजूद इस कानून में कई खामियां होने के साथ यह अप्राकृतिक है। सरोगेसी मां बनने के लिए महिला को इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन की प्रक्रिया से गुजरना होता है। इसके लिये जैविक माता-पिता के शुक्राणु और अण्डाणु को परखनली में निशेचित करने के बाद जब भू्रण पनप जाता है, तब उसे किराए की कोख में प्रत्यारोपित किया जाता है। गर्माधान का यही एक मात्र उपाय है। इसका शरीर पर विपरीत असर पड़ता है, इसके गर्भपात हो जाने की 80 फीसदी आशंका बनी रहती है। ऐसी 90 प्रतिशत प्रसूति शल्य क्रिया के जरिए होती है। महिला की जान का संकट भी बना रहता है। इस स्थिति में कोख किराए से देने वाली महिला का न तो कोई बीमा होता है,न ही उसके पति और बच्चों की कोई गारंटी लेता है। यहां सवाल खड़ा होता है कि जैविक अभिभावक यदि जन्मे बच्चे का छोड़कर नौ, दौ, ग्यारह हो जाते हैं तो उसके पालन-पोषण की जबावदेही किसकी होगी ? यह सवाल इस विधेयक के प्रारूप में अनुत्तरित है। यदि नवजात शिशु विकलांग या ऐसी लाइलाज बीमारी के साथ पैदा होता है और अजैविक माता-पिता उसे लेने से इंकार कर देते हैं, तो उस बच्चे की जिम्मेदारी कौन लेगा ? ऐसी स्थिति में उन महिलाओं को और ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ता है, जो किश्तों पर कोख किराए से देती हैं। ऐसी ही सुविधाओं के चलते भारत में किराए की कोख का व्यापार वैश्विक राजधानी बन गया है।
एक स्वंयसेवी संगठन के अध्ययन में कुछ चौंकाने वाले नजारे भी सामने आए हैं। खासतौर से विदेशी धनवान जब किराए की कोख लेकर संतान पाने के इच्छुक होते हैं तो वे भारत आकर एक साथ कई महिलाओं को गर्भधारण करा देते हैं। इनमें से कुछ महिलाओं में यह प्रयोग सफल हो जाता है तो वह किसी एक महिला को छोड़ बाकी का गर्भपात करा देते हैं। गर्भपात कराई गई महिलाओं को कोई धन भी नहीं दिया जाता। यह सरासर अन्याय व अनैतिकता है। इसी अघ्ययन से खुलासा हुआ है कि किराए की कोख की कीमत करीब 20 लाख रुपए है। कभी-कभी इससे भी ज्यादा धनराशी दी जाती है। लेकिन इस राशि में से सरोगेसी मां को महज 3 से 5 लाख रुपए ही मिलते हैं। शेश अस्पताल और बिचैलिए चट कर जाते हैं।
अप्रवासी भारतीयों में सरोगेसी की मांग बहुत ज्यादा है। यदि स्त्री स्वास्थ व सुंदर होने के साथ उच्च जाति और उत्तम पारिवारिक पृष्ठभूमि से होती है तो उसे ज्यादा पैसा दिया जाता है। अप्रवासी दंपति भारत आकर किराए की कोख द्वारा बच्चा पैदा करना इसलिए भी अच्छा मानते है, क्योंकि वे मनौवैज्ञानिक स्तर पर अपने को भारत से जुड़ा पाते हैं। भारत में सरोगेसी की मांग तेजी से बढ़ रही है। क्योंकि अब फिल्म कलाकारों से लेकर अन्य लब्ध-प्रतिष्ठित लोग सरोगेसी से बच्चा चाहने लगे हैं। इनकी पत्नियां दर्द से बचने के लिए यह उपाय करती हैं। इसी कारण लैंगिक अधिकार को मानवाधिकार के हनन से जोड़ने की बहस तेज हो गई है।
इस सिलसिले में एक सवाल यह भी है कि यदि कोख लेने के दौरान पति-पत्नि में तलाक हो जाता है तो वह बच्चा किसे दिया जाए ? बाईदवे दोनों ही बच्चा लेने से इंकार कर दें तो बच्चे के लालन-पालन की जिम्मेबारी किसकी होगी ? क्योंकि 2009 में जापान से अहमदाबाद आए एक दंपति तलाक की स्थिति से गुजर चुके हैं। ऐसे में बच्चे की जैविक मां ने उसे लेने से इनकार कर दिया। हालांकि पिता बच्ची गोद लेने को तैयार था, लेकिन हमारा कानून पुरुष को बच्ची गोद लेने की इजाजत विशेष परिस्थितियों में ही देता है। इस विधेयक में इस स्थिति को भी साफ नहीं किया गया है। हालांकि इस नए कानून के अस्तित्व में आने के बाद इस प्रकृति विरोधी कारोबार पर धिकतम अंकुश लग जाने की उम्मीद की जा सकती है। क्योंकि अब रिश्ते-नाते की महिलाओं को ही सरोगेसी मां बनने की सुविधा दी गई है।
प्रमोद भार्गव
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