इमरान खान का कश्मीर राग बेतुका

Imran Khan's Kashmir Rant

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को अमेरिकी दौरे के दौरान जिस प्रकार की बदनामी का सामना करना पड़ा, ऐसा इतिहास में कभी नहीं हुआ। विश्व के विकसित व विकासशील देश अमेरिका में तथाकथित परमाणु हथियारों वाले देश पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का उनके पद के प्रोटोकॉल के अनुसार स्वागत नहीं हुआ। पाकिस्तान कंगाली से उभरने के लिए अमेरिका की हर शर्त मानने के लिए तैयार है। इसके बावजूद इमरान कश्मीर मुद्दे की रट छोड़ने को तैयार नहीं। डोनाडल ट्रम्प का बयान चर्चा में आने के बाद इमरान जोशीले अंदाज में कह रहे हैं कि कश्मीर मुद्दा दोतरफा बातचीत से हल होने वाला नहीं।

यूं भी वाईट हाऊस ने स्पष्ट किया कि ट्रम्प ने मध्यस्थता की कोई बात नहीं की। गरीबी से जूझ रहे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का कश्मीर राग अलापना ढीठता की हद पार करने जैसा है। तकनीकी पहलू से भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता शिमला समझौते का उल्लंघन है, जिसमें दोनों देशों ने कश्मीर सहित सभी मामले आपसी बातचीत से हल करने का समझौता किया है, इसीलिए पाक द्वारा मध्यस्थता की दुहाई देना तकनीकी रूप से भी गलत है। यह पाकिस्तान का विडंबना है कि वहां हर पीएम अपनी कुर्सी कायम रखने के लिए कश्मीर का मुद्दा छेड़ देता है।

वास्तविक्ता यह है कि पाकिस्तान के शासक देश की आर्थिकता को मजबूत बनाने में नाकाम हो रहे हैं, वह अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए कश्मीर का मुद्दा उठाते आ रहे हैं। ताजा हालात तो बेहद शर्मनाक हैं। पाक को इंटरनेशनल मुद्रा कोष से कठोर शर्तों के तहत कर्ज मिला है जिस कारण सरकार की देश में जमकर फजीयत हो रही है। ऊपर से अमेरिका में इमरान का स्वागत न होने से पाक को अपनी, नीतियों का खमियाजा भुगतना पड़ रहा है। दरअसल कश्मीर मुद्दा हल न होने का सबसे बड़ा कारण आतंकवाद है। भारत तब तक बातचीत के लिए तैयार नहीं जब तक पाक सरकार आतंकवाद के खिलाफ सख्त रवैया नहीं अपनाती। अच्छा हो अगर पाकिस्तान किसी अन्य देश के दखल की अपेक्षा खुद आतंकवाद को खत्म करे, ताकि आर्थिक रूप से वे मजबूत हो सकें। पाक को अपनी नाकामियों को भारत पर थोपने की आदत से बाज आना चाहिए।

 

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