बच्चे का सबसे पहला विद्यालय उसका घर और सबसे पहले गुरु उसके माता-पिता होते हैं। बच्चा प्रारम्भ में अपने माता-पिता से ही सारी क्रियाएं सीखता है और अपना ज्ञान अर्जित करता है। माता-पिता न सिर्फ बच्चों को अच्छी शिक्षा देते हैं बल्कि सही-गलत की पहचान कराते हुए बच्चों का स्वर्णिम भविष्य बनाने का भी काम करते हैं। माता-पिता अपने भविष्य से ज्यादा अपने बच्चों के भविष्य के लिए चिन्तित रहते हैं। बच्चों के पहले शिक्षक उनके माता-पिता होते हैं। वे बच्चों को जो मूल्य और आदर्श सिखाते हैं, वही उनके जीवन का आधार बनते हैं। सिर्फ स्कूल में शिक्षित बच्चा संस्कारवान नहीं हो सकता। इसके लिए बच्चे को अभिभावकों से सामाजिक संस्कृति की जानकारी मिलना भी जरूरी है। माता-पिता द्वारा बच्चे को प्रोत्साहित करना उसकी सफलता का मूल मंत्र है। आत्मविश्वास, कड़ी मेहनत और उत्कृष्टता सिखाना अभिभावकों पर निर्भर करता है।
हर माता-पिता का सपना होता है कि उनका बच्चा जिंदगी में कुछ ऐसा करे जिससे समाज में उसकी अलग पहचान बने और वह धरातलीय सच्चाई को समझे। कई माता-पिता पढ़ाई को लेकर गलत धारणा पाल लेते हैं। उन्हें लगता है कि किताबी ज्ञान ही सब कुछ है और वो बच्चों को दिनभर किताब में ही उलझाये रखना चाहते हैं। विद्यालयी शिक्षा का हाल भी कोई ज्यादा ठीक नहीं है वहां भी मेकाले के पदचिन्हों का अनुसरण कर किताबी कीड़ा बनाकर बच्चे का दिमागी शोषण किया जा रहा है। घर में माता पिता और स्कूल में अध्यापक डंडा लेकर बच्चों को किताबों में चक्करघिन्नी रखते है। यह समझ में नहीं आता की बच्चा स्कूल जा रहा है जेल। इस चक्कर में कई बार बच्चों को व्यवहारिक ज्ञान ठीक से नहीं मिल पाता, जिसकी जरूरत स्कूल के बाद उन्हें सबसे ज्यादा पड़ती है। शिक्षा प्रणाली एक मशीन हो गई है जो कि क्लोन तैयार करने में लगी हुई है और व्यक्तित्व को पीछे छोड़ दिया है।
आजकल ज्यादात्तर माता-पिता की सोच यह है कि भविष्य में कुछ करना है तो बच्चे का ऊँचे स्तर की शिक्षा प्राप्त करना आवश्यक है क्योंकि इसके बिना अच्छी नौकरी नहीं मिलेगी और इसीलिए जब बच्चे के थोड़े से भी कम मार्क्स आते हैं तो वह दुखी हो जाते हंै। माता-पिता की यह सोच बिल्कुल सही है कि भविष्य में कुछ करना है तो शिक्षा प्राप्त करना अनिवार्य है लेकिन ज्यादातर माता-पिता यही समझते है कि शिक्षा का अर्थ केवल किताबी ज्ञान से है और इसलिए उनके हिसाब से बच्चे का किताबी कीड़ा होना अति आवश्यक है।
शिक्षा का अर्थ केवल किताबी ज्ञान से नहीं है और शिक्षा केवल वह नहीं है जो ज्यादातर भारतीय स्कूलों में पढ़ाई जाता है। शिक्षा का अर्थ ज्ञान एंव उस ज्ञान का हमारे जीवन में उपयोग करने से है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग खुशमय जिंदगी जी सकें और यह ज्ञान किसी भी क्षेत्र में हो सकता है। विद्यार्थी जीवन व्यक्ति के जीवन का स्वर्णिम जीवन होता है, जो दोबारा नहीं आता। इसलिए विद्यार्थी को विद्यार्थी जीवन का पूरा फायदा उठाना चाहिए। आज के समय में शिक्षा का स्तर बदला है। पुराने समय की तुलना में आज की शिक्षा में विद्यार्थी के आगे कई चुनौतियां हैं।
सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन खोया समय प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसलिए वह केवल किताबी कीड़ा न बनें। पढ़ाई के साथ-साथ अन्य गतिविधियों में भी भाग लें। विद्वान व प्रतिभावान व्यक्ति की हर क्षेत्र में तारीफ होती है। आज यह हालात हैं कि घर हो या स्कूल बच्चों की शारीरिक व मानसिक स्थिति को जाने व समझे बिना अध्यापक और अभिभावक का ध्यान केवल शिक्षा, परीक्षा अथवा प्रतियोगिता में बच्चों के प्रदर्शन पर ही रहता है। निरन्तर प्रताड़ना, लगातार निगरानी और हर पल कोसना ,बच्चों को निराशा एवं कमजोर व दीन, हीन भावना की ओर ले जा रहा है। प्रत्येक माता-पिता की यही इच्छा होती है कि उनके बच्चे जीवन में अच्छे कार्य करें और जल्दी ही अपनी आजीविका कमाने के काबिल हो जायें।
बहुत से माता पिता स्कूल भेजकर यह संतोष कर लेते हैं कि उसका बच्चा ज्ञानी ध्यानी बनेगा मगर स्कूल में उसे किताबों से बाहर निकलने की इजाजत नहीं होती है जो बच्चों को जीवन की सच्चाइयों से रूबरू नहीं कराती। आवश्यकता इस बात की है की हमारी शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन हो जिससे वह प्रारंभ से ही व्यावहारिक और जमीनी सच्चाई से अवगत हो।
बाल मुकुन्द ओझा
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