सरकारों के शहरी क्षेत्र में विकास के दावे बुरी तरह खोखले साबित हो रहे हैं। मानसून की पहली बारिश ने से पंजाब, हरियाणा सहित उत्तरी भारत के कई राज्यों के शहर पानी से बेहाल हुए पड़े है। जहां तक पंजाब की दुर्दशा है बठिंडा को यदि एक टापू ही कह दें तो कोई गलत नहीं होगा। पिछले एक दशक से इस शहर में सिविल व पुलिस आधिकारियों की कोठियां और कार्यालय ही पानी में डूबते रहे है।
फिर भी इस समस्या के समाधान के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए। इस बार आईजी की कोठी की तस्वीरें तो पूरे देश के मीडिया में चर्चा का विषय बनी, जहां 6 फुट तक पानी भर गया। बिहार की राजधानी पटना भी निकासी के प्रबंध न होने के कारण बेहाल है। यहां से देश का दूसरा बड़ा सरकारी अस्पताल पानी-पानी हो जाता है। इसी तरह पंजाब हरियाणा में रेलवे अंडरपास भी समुद्र का नजारा बने रहे। स्वतंत्रता के 72 साल बाद भी शहरों की निकासी की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। कभी अवैध कॉलोनियां में बारिश का पानी भर जाता था, अब तो शहरों के पाश क्षेत्र भी मुश्किलों का सामना कर रहे है।
दरअसल शहरी निकासी प्रबंध वर्तमान जनसंख्या की आवश्यकताएं पूरी नहीं कर रहे दूसरी तरफ बढ़ रही अवैध कॉलोनियों के कारण यह प्रबंध करने में मुश्किल भी आ रही है। किसानों के लिए वरदान कही जाने वाली बारिश शहरी क्षेत्र के लिए आफत बन गई है। यह कोई नई समस्या तो है नहीं जिसके लिए कोई अचानक प्रबंध करने पड़ते। हर साल मानसून ने तो आना ही होता है निकासी का सही प्रबंध न होने के कारण हर साल अरबों रुपए की सरकारी व निजी जायदाद बर्बाद हो जाती है। कई स्थानों पर लोग विरोध प्रदर्शन करते हैं, जिससे कानून व्यवस्था की समस्या भी पैदा होती है। नहरी विभाग को भी बारिश के मौसम में पूरी तैयारी रखने की आवश्यकता है। पिछले दो तीन दिनों में दर्जनों जगहों पर रजबाहे टूटने से हजारों एकड़ फसल बर्बाद हो गई है। यदि समय रहते इन समस्याओं का समाधान हो तब इस भारी वित्तीय नुक्सान से बचा जा सकता है। शहरों में निकासी के सुचारू प्रबंध करने के लिए कोई ठोस योजना बनाने की आवश्यकता है केवल काम चलाऊ व समय बर्बाद करने से हालात नहीं सुधरेंगे।
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