जून में कोलकाता में एक हस्पताल में एक मरीज की मौत हो जाती है, गुस्साए रिश्तेदारों व साथ वालों ने डॉक्टरों पर जानलेवा हमला कर उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया, उसके दो रोज बाद मध्य प्रदेश में भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय ने क्रिकेट बैट से म्यूनिसीपलिटी के एक अधिकारी को पीट दिया जोकि वहां एक खंडर भवन को तोड़ने गए थे। पंजाब में बिजली विभाग के अधिकारी को उस वक्त थप्पड़ खाने पड़े जब वह बिजली चोरी की शिकायतों के मद्देनजर घरों की चेकिंग कर रहे थे।
ऐसे ही वन विभाग की एक महिला अधिकारी को तेलंगाना में हिंसा का श्किार होना पड़ा ये सब घटनाएं साफ जाहिर कर रही हैं कि देशवासी यहां भ्रष्टाचार के आदी हो चुके हैं वहीं कोई अधिकारी अपनी ड्यूटी ईमानदारी से करना चाहता है तब उसे भीड़ की मारपीट व गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ेगा। पहले-पहल यह समस्याएं पुलिस, बिजली व नहरी विभाग के सामने आती थी, परन्तु वर्तमान में स्वास्थ्य, वन विभाग, राजस्व, परिवहन, म्यूनिसीपलिटी सभी विभाग हिंसा का सामना कर रहे हैं। आर्थिक उदारीकरण व सरकारी भ्रष्टाचार के चलते कुछ लोग बाकी समाज के काफी ऊपर हो गए हैं, देश की एक बड़ी आबादी रोजमर्रा की पूर्ति के लिए जूझ रही है जिस वजह से लोगों में हताशा है, हमला वही लोग कर रहे हैं जो सरकारी व्यवस्था पर आश्रित हैं, और पीड़ित भी हैं।
भले ही ऐसे लोग स्वयं गैर कानूनी कार्यों में हैं जैसे अवैध रेत खनन, सरकारी जमीनों पर कब्जा, बिजली की चोरी करना, हस्पतालों में अधिकारियों कर्मियों से हर हाल में अपना हित साधना हालांकि ऐसे लोगों को पूरी सेवा मिलने पर भी उनका अपना पक्ष कमजोर होता है। लेकिन देश के भौतिक, सामाजिक विकास के लिए ऐसी हिंसा अच्छी नहीं है। देश के प्रशासन का एक बहुत बड़ा हिस्सा उनको मिल रहे वेतन के मुकाबले बहुत ज्यादा काम कर रहा है, भ्रष्ट कुछ लोग हैं परन्तु वह पूरे तंत्र को बदनाम किए हुए हैं, जिनके विरुद्ध आमजन को कानूनन लड़ाई लड़नी चाहिए।
फिर आजकल तो मामूली से धरने-प्रदर्शन पर सरकार निकम्मे अधिकारियों को किनारे कर देती है। अत: हिंसा गलत है। देशवासियों को सरकार पर दबाव बनाना चाहिए कि वह आबादी के हिसाब से नए पदों को सृजित करे व देश के प्रशासन तंत्र में खाली लाखों पदों को नियुक्तियों से भरे ताकि प्रशासन व आमजन के बीच रोज-रोज के टकराव खत्म हों एवं देश के विकास को गति मिले। देश की आबादी व बढ़ रहे आधारभूत ढ़ांचे के अनुसार जब तक अधिकारियों कर्मचारियों के रिक्त पदों को नहीं भरा जाता तब तक भ्रष्टाचार भी नहीं मिटने वाला। चूंकि अभी लोग अपना काम पहले व नियमों से परे जाकर करवाने के लिए रिश्वत देते हैं। जब प्रशासन तंत्र में कोई रिक्ति नहीं होगी तब यहां आमजन के काम जल्द होंगे वहीं भ्रष्ट लोगों पर भी पैनी नजर रहेगी बल्कि उनका सफाया भी तुरंत होगा। देशवासियों को भी समझना चाहिए कि ले-देकर चलने वाला काम खत्म हो रहा है, जवाबदेही बढ़ रही है। अत: वह भी नाजायज कब्जे, सरकारी सम्पदा की चोरी, नेताओं की सीनाजोरी दिखाने से परहेज ही करें एवं खुद भी सुख से रहें और दूसरों को भी सुखी रहने दें।
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