यमुना एक्सप्रेस वे पर बस दुर्घटना ने सड़क सुरक्षा से लेकर परिवहन विभाग के यात्रियों की सुरक्षा को लेकर तमाम दावों की पोल खोल दी है। उत्तर प्रदेश स्वयं से पूछ सकता है कि उसकी व्यवस्था किस हद तक दुर्घटनाग्रस्त है और सबक लेने की गुंजाइश क्यों बार-बार नजरअंदाज होती है। जांच में पता चला है कि ड्राइवर को झपकी आ गई थी जिससे यह दर्दनाक हादसा हुआ। आंकड़ों पर अगर गौर करें तो यूपी की राजधानी को देश की राजधानी से जोड़ने वाला यमुना एक्सप्रेस-वे ‘मौत का एक्सप्रेस-वे’ बनता जा रहा है। रहे। हर दिन प्रदेश के भीतर मनहूस सूचनाओं का अंबार खड़ा हो रहा है, लेकिन बहस क्षणिक है। यमुना एक्सप्रेस-वे पर वर्ष 2019 के पहले छह महीने में अब तक 247 सड़क दुर्घटनाओं में 127 लोगों की मौत हो गई है।
वर्ष 2018 में 659 सड़क दुर्घटनाओं में 110 लोगों की मौत हो गई थी। यह विडम्बनापूर्ण है कि हर रोज ऐसी दुर्घटनाओं और उनके भयावह नतीजों की खबरें आम होने के बावजूद बाकी वाहनों के मालिक या चालक कोई सबक नहीं लेते। सड़क पर दौड़ती गाड़ी मामूली गलती से भी न केवल दूसरों की जान ले सकती है, बल्कि खुद चालक और उसमें बैठे लोगों की जिंदगी भी खत्म हो सकती है। सरकारी तंत्र तो शायद कानों में तेल डाले बैठा है। बीती 1 जुलाई को हिमाचल के शिमला में भी बस दुर्घटना का दर्दनाक हादसा सामने आया था। इस हादसे में कॉन्वेंट आॅफ जीजस एंड मैरी (चेल्सी) स्कूल की दो छात्राओं और ड्राइवर की मौके पर ही मौत हो गई। हादसे में घायल कंडक्टर और पांच छात्राएं गंभीर रूप से घायल हो गए हैं। बीते 25 जून को झारखण्ड राज्य के गढ़वा-अंबिकापुर एनएच-343 मार्ग पर गढ़वा जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर अन्नराज घाटी में देर रात हुए बस दुर्घटना में पांच यात्रियों की मौत हो गयी थी। जबकि इस हादसे में बस पर सवार 43 यात्री गंभीर रूप से घायल हुये थे।
आंकड़ों पर नजर डालें तो इससे पहले भी बड़े-बड़े हादसे हो चुके हैं। अफसोस इस बात का है इन हादसों से हमने और व्यवस्था ने कोई सबक नहीं सीखा। वर्ष 1997 में राजधानी दिल्ली में एक स्कूल बस यमुना नदी में जलमग्न हो गई थी जिसमें 28 बच्चों की मौत हो गई थी। वर्ष 1998 में कोलकाता में बच्चों को पिकनिक पर ले जा रही बस पदमा नदी में गिर गई जिसमें लगभग 53 बच्चे मारे गये थे। 1 अगस्त 2006 को हरियाणा के सोनीपत के सतखुंबा में स्कूली बस नहर में गिर गई थी इस हादसे में 6 मासूमों की मौत हो गई थी। 26 जनवरी 2008 को गणतन्त्र दिवस समारोह मे शामिल होने जा रहे बच्चों की बस रायबरेली के मुंशीगंज में ट्रक से भिड़ी जिसमें 5 बच्चे मारे गये और 10 घायल हो गये थे 16 अप्रैल 2008 को गुजरात के वडोदरा जिले में नर्मदा नदी में स्कूली बस पलटी जिसमें 44 बच्चे मारे गये।
14 अगस्त 2009 को कर्नाटक के मंगलौर में फाल्गुनी नदी में स्कूली बस गिरने से 7 बच्चों की मौत हो गई थी। 2 फरवरी 2009 को पंजाब के फिरोजपुर जिले में स्कूली बस ट्रेन से टकरा गई जिसमें 3 बच्चों की मौत हुई थी 20 मई 2009 में जालन्धर में ही एक स्कूली बस व ट्रेन में टक्कर के कारण 7 बच्चों की मौत हुई थी। 20 अगस्त 2009 को मुम्बई में एक स्कूल बस में आग लगने से 20 विद्यार्थी झुलस गये थे। लबोलुबाब यह है कि तमाम हादसों के बाद भी स्थिति में कोई सुधार दिखाई नहीं देता है।
सड़क दुर्घटनाओं ने कहर बरपा रखा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 2009 में सड़क सुरक्षा पर अपनी पहली वैश्विक स्थिति रिपोर्ट में सड़क दुर्घटनाओं की दुनिया भर में ‘सबसे बड़े कातिल’ के रूप में पहचान की थी।
भारत में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में 78.7 प्रतिशत हादसे चालकों की लापरवाही के कारण होते हैं। जिनमें इन नव धनाढ्य लोगों के कारण होने वाली दुर्घटनाओं की संख्या भी खतरनाक स्तर तक बढ़ रही है। वैसे एक प्रमुख वजह शराब व अन्य मादक पदार्थों का सेवन कर वाहन चलाना है। ‘कम्यूनिटी अगेन्स्ट ड्रंकन ड्राइव’ (कैड) द्वारा सितंबर से दिसंबर 2017 के बीच कराए गए ताजा सर्वे में यह बात सामने आई है कि दिल्ली-एनसीआर के लगभग 55.6 प्रतिशत ड्राइवर शराब पीकर गाड़ी चलाते हैं। राजमार्गों को तेज रफ्तार वाले वाहनों के अनुकूल बनाने पर जितना जोर दिया जाता है उतना जोर फौरन आपातकालीन सेवाएं उपलब्ध कराने पर दिया जाता तो स्थित कुछ और होती।
हादसों के कारण की बात करें तो पहला नंबर आता है यातायात नियमों की अनदेखी का। बाइक चालकों का हेलमेट न लगाना और तीन सवारी के साथ चलना आए दिन जानलेवा साबित हो रहा है। दुर्घटना होने पर सिर में चोट लगने की वजह से कई लोगों की मौत हो चुकी है। इसके साथ ही कार चालकों का सीट बेल्ट न लगाना और रफ्तार का जुनून भी जानलेवा साबित हो रहा है। आए दिन बिना लाइसेंस वाले लोग भी वाहन लेकर सड़क पर निकल पड़ते हैं और हादसे को अंजाम दे देते हैं, जो किसी की जान ले लेता है और पूरे परिवार को गम में डुबो देता है। वाहन चलाते समय मोबाइल पर बातें करना भी नियमों का उल्लंघन हैं, लेकिन सड़क पर ऐसा करने वाले लोग आसानी से दिख जाते हैं।
दुर्घटना से देर भली, ‘आपकी यात्रा मंगलमय हो’, ‘सुरक्षित चलिए’, ‘यातायात नियमों का पालन करें’। जरा सोचिए! ये स्लोगन आपकी जान बचा सकते हैं। ये हैं भी आपके और आपके परिवार के लिए। ये स्लोगन उन नन्हे-मुन्नों के लिए हैं, जो पापा के घर आने के इंतजार में दरवाजे पर टकटकी लगाए रहते हैं। यह उनके लिए भी हंै जिनकी जिंदगी आपसे है, जिसकी खुशी आप से है। तो आएं हम सब यातायात नियमों का पालन करने का संकल्प लें। बगैर हेलमेट के बाइक न चलाएं, रेड लाइट का ध्यान रखें, रफ्तार पर नियंत्रण रखें और सबसे मुख्य बात कि बाइक पर तीन लोग न बैठें। जिंदगी खूबसूरत है इसे और खूबसूरत बनाएं। सड़क हादसों में मरने वालों की बढ़ती संख्या ने आज मानो एक महामारी का रूप ले लिया है। इस बारे में राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकडे दिल दहलाने वाले हैं। पिछले साल सड़क दुर्घटनाओं में औसतन हर घंटे सोलह लोग मारे गए। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया के अट्ठाईस देशों में ही सड़क हादसों पर नियंत्रण की दृष्टि से बनाए गए कानूनों का कड़ाई से पालन होता है। सरकार को हर रूट पर समय-समय पर बसें चलानी चाहिए।
हर साल बढ़ते वाहनों के आंकड़ों के साथ-साथ दुर्घटनाओं के सलीब भी तैयार हो रहे हैं, लेकिन इन्हें रोकने की तैयारी नहीं। खासतौर पर दोपहिया वाहनों पर युवा पीढ़ी की उन्मादी दौड़ को कौन संबोधित करेगा। बिना हेल्मेट प्रदेश भर में घूम रहे युवाओं को हादसा मानें या हादसों का इंतजार करें। कहना न होगा कि हमारी व्यवस्था केवल हादसों का इंतजार करती है और तब हम जागते हैं। देश या प्रदेश की वर्तमान स्थिति में रहते हुए कोई न कोई हादसा हमारे सामने हर दम खड़ा होता है। बस हम उसे ही देखते हैं, जो दर्द का बयां बन जाता है, वरना हर पहलू में परेशान रहना और फिर भी कुछ न कह पाना ही देश की मौजूदा स्थिति का पैगाम बन रहा है।
-डॉ. श्रीनाथ सहाय
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