अनियंत्रित गति से बढ़ रही जनसंख्या देश के विकास को बाधित करने के साथ ही हमारे आम जन जीवन को भी दिन-प्रतिदिन प्रभावित कर रही है। विकास की कोई भी परियोजना वर्तमान जनसंख्या दर को ध्यान में रखकर बनायी जाती है, लेकिन अचानक जनसंख्या में इजाफा होने के कारण परियोजना का जमीनी धरातल पर साकार हो पाना मुश्किल हो जाता है। ये साफ तौर पर जाहिर है कि जैसे-जैसे भारत की जनसंख्या बढ़ेगी, वैसे-वैसे गरीबी का रूप भी विकराल होता जायेगा। महंगाई बढ़ती जायेगी और जीवन के अस्तित्व के लिए संघर्ष होना प्रारंभ हो जायेगा। जनसंख्या संबंधी इन्हीं समस्याओं और चुनौतियों से निपटने के लिए प्रत्येक वर्ष 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। विश्व जनसंख्या दिवस पहली बार 1989 में तब मनाया गया था, जब विश्व की आबादी 5 बिलियन पहुंच गई थी।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की शासकीय परिषद् ने जनसंख्या संबंधी मुद्दों की आवश्यकता एवं महत्व पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए प्रत्येक वर्ष 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाने की अनुशंसा की थी। तभी से जनसंख्या रुझान और बढ़ती जनसंख्या के कारण पैदा हुई प्रजननीय स्वास्थ्य, गर्भ निरोधक और अन्य चुनौतियों के बारे में विश्व जनसंख्या दिवस पर प्रत्येक वर्ष विचार-विमर्श किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट द वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रोस्पेक्ट्स 2019: हाईलाइट्स में अनुमान व्यक्त किया गया है कि 30 वर्षों में विश्व जनसंख्या में 2 अरब लोगों की आबादी और जुड़ जाएगी। फिलहाल दुनिया की जनसंख्या लगभग 7 अरब 70 करोड़ है और 2050 तक यह बढ़कर 9 अरब 50 करोड़ से ज्यादा हो जाएगी।
इस सदी के अंत यानी 2100 तक विश्व आबादी 11 अरब के आंकड़े को छू सकती है। मौजूदा समय से 2050 तक भारत में सबसे ज्यादा जनसंख्या वृद्धि होने का अनुमान है और भारत चीन को पीछे छोड़ते हुए 2027 तक दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा। नि:संदेह जनसंख्या वृद्धि पर लगाम कसने का सबसे सरल उपाय परिवार नियोजन ही है। लोगों में जन-जागृति का अभाव होने के कारण दस-बारह बच्चों की फौज खड़ी करने में वे कोई गुरेज नहीं करते हैं। इसलिए सबसे पहले उन्हें जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणामों के प्रति जागरूक करने की महती आवश्यकता है। यह समझने की जरूरत है कि जनसंख्या को बढ़ाकर हम अपने आने वाले कल को ही खतरे में डाल रहे हैं। वस्तुत: बढ़ती जनसंख्या के कारण भारी मात्रा में खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो रहा है।
जिसके कारण देश में भुखमरी, पानी व बिजली की समस्या, आवास की समस्या, अशिक्षा का दंश, चिकित्सा की बदइंतजामी व रोजगार के कम होते विकल्प इत्यादि प्रकार की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। सरकार अपना वोटबैंक सुरक्षित करने के लिए जनसंख्या नियंत्रण अभियान व योजनाओं को हल्के में जाने देती है। जरूरत है कि सरकार इस दिशा में मुहिम को ओर भी तेज करे और एक या दो बच्चा नीति की अनुपालना राष्ट्रीय स्तर पर हो। सरकारी कर्मचारियों व आरक्षण के भुगतभोगियों के लिए एक बच्चा नीति चलायी जायें ताकि वे आरक्षण व सरकारी ओहदे का बाँड भर सके। सरकार पदोन्नति के लिए भी बच्चों की संख्या को आधार मानें। उदाहरण के तौर पर एक बच्चे वालों को पहले और दो या दो से अधिक बच्चें वालों को उसके बाद प्रोमोशन प्रदत्त करे। पुरुष व महिला नशबंदी काफी हद तक बढ़ती जनसंख्या की रफ्तार थामने में कारगर साबित हो सकती है। हमें देश की उन्नति के साथ अपने सुरक्षित भविष्य व बेहतर जीवन की अभिलाषा के लिए आज और अभी से सचेत होना होगा।