प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों अपने दूसरे कार्यकाल में मन की बात कार्यक्रम के पहले एपिसोड को सम्बोधित किया। उन्होंने जनसरोकारों से जुड़े और कई मुद्दों का जिक्र किया। उन्होंने सर्वप्रथम देश के ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के सबसे ज्वलंत एवं चिंता पैदा करने वाले विषय, जल संरक्षण की जरूरतों पर भी विस्तार से रौशनी डाली। प्रधानमंत्री ने पानी के एक एक बूँद के संरक्षण के लिए जागरूकता अभियान शुरू करने का आह्वान किया। वर्तमान समय में पूरे विश्व में गहराते जा रहे जल संकट के लिए जहाँ मानव स्वयं दोषी व जिम्मेदार है वहीं विगत लगभग एक दशक से प्रकृति ने भी अपनी नाराजगी दिखानी शुरू कर दी है। हालाँकि प्रकृति की नाराजगी का कारण भी और कुछ नहीं बल्कि मानव जाति ही है।
वैश्विक विकास व प्रगति के नाम पर वृक्षों का बेतहाशा कटान हो रहा है। जंगल के जंगल निर्माण व उद्योगों के नाम पर साफ किये जा रहे हैं। हम पेड़ काटते अधिक हैं लगाते कम हैं। उपजाऊ तथा धरती में पानी पहुँचाने वाली कच्ची जमीनों पर पत्थर व कंक्रीट के जंगल बन गए हैं। भारत जैसे देश में पूरी आजादी के साथ खेती तथा घरेलु जरूरतों के लिए भूगर्भीय जल दोहन किया जा रहा है। परिणाम स्वरुप देश के बड़े भूभाग में जमीनी जल स्तर प्रत्येक वर्ष नीचे से और नीचे होता जा रहा है। रही सही कसर पोलिथिन व प्लास्टिक के कचरों ने पूरी कर दी है। यह कचरा जहाँ जमीन को उपजाऊ नहीं होने देता वहीँ इसकी वजह से धरती पानी भी नहीं सोख पाती। प्रकृति पर हमारी इन कारगुजरियों का प्रभाव ग्लोबल वार्मिंग के रूप में देखा जा रहा है। एवरेस्ट जैसी पर्वत श्रृंखला जहाँ शताब्दियों से हजारों किलोमीटर दूर तक केवल बर्फ की सफेद चादर ढकी दिखाई देती थी वहीँ इस श्रृंखला का बड़ा हिस्सा अब बिना बर्फ के काले पहाड़ों का दृश्य प्रस्तुत कर रहा है। अनेक ग्लैशियर पिघल चुके हैं। परिणाम स्वरुप समुद्र का जलस्तर बढ़ने लगा है।
गर्मी के मौसम में तापमान प्रति वर्ष बढ़ता जा रहा है।विश्व की हजारों नदियां इतिहास के पन्नों में समा गयी हैं। इनमें अनेक विलुप्त व सूख चुकी नदियां भारत में भी हैं। बारिश प्रत्येक वर्ष कम से और कम होती जा रही है। बाढ़ की कम सूखा पड़ने की खबरें ज्यादा सुनाई दे रही हैं। ग्लोबल वार्मिंग का एक प्रमुख कारण विश्व में बढ़ता प्रदूषण भी है। इस प्रदूषण का कारण भी विकास व औद्योगीकरण के साथ साथ आम लोगों का ऊँचा होता जा रहा रहन सहन भी है। उदाहरण के तौर पर पक्के मकान,पथरीली व कंक्रीट की फर्श तथा परिवार के प्रत्येक सदस्य का अपना वाहन, ए सी आदि प्रत्येक व्यक्ति की जरूरतों में शामिल हो गया है।
वास्तविकता तो यह है कि ग्लोबल वार्मिंग और गहराते जा रहे जल संकट के लिए गरीब आदमी कम और संपन्न व धनी व्यक्ति ज्यादा जिम्मेदार है। अमीर व्यक्ति ही फौव्वारे से नहाता है,वही अपनी कारों को आए दिन खुले पानी से नहलाता है,उसी को अपनी लॉन की घास व गमलों के रखरखाव के लिए प्रति दिन लाखों लीटर पानी की जरूरत होती है। यहाँ तक कि अनेक गैर जिम्मेदार धनाढ्य लोग सुबह शाम दोनों समय अपने घर की फर्श,गेट तथा घर के सामने की सड़क को भी खुले पानी से नहलाते रहते हैं।दूसरी तरफ देश में कई जगहों पर पीने के लिए लोग प्रदूषित व मैला जल इस्तेमाल कर रहे हैं। कई स्थानों से पानी के लिए लड़ाई झगड़ों की खबरें भी आती हैं। कई जगह जलस्रोत पर पुलिस का पहरा भी देखा जा चुका है। भूजल स्तर गिरने की वजह से देश के अधिकांश कुँए सूख गए हैं। देश के लाखों तालाब सूख कर मैदान बन चुके हैं।मध्यम वर्ग के वे लोग जो ग्रामीण इलाकों में हैंड पम्प का इस्तेमाल कर जल दोहन करते थे या आधे या एक हॉर्स पॉवर की मोटर से घर की छत पर बनी टंकी में पानी इकठ्ठा करते थे,जलस्तर नीचे हो जाने के कारण अब वे भी किसानों की तरह शक्तिशाली सबमर्सिबल पंप लगवा रहे हैं। इससे जलदोहन और भी अधिक तथा और भी तेजी से होने लगा है।
प्रधानमंत्री द्वारा स्वच्छता अभियान की तुलना जल संरक्षण से किया जाना मेरे विचार से मुनासिब नहीं है। इस विफल योजना स्वच्छता अभियान का जिक्र कर प्रधानमंत्री ने अपनी पीठ थपथपाने की कोशिश की है। इस योजना में सैकड़ों करोड़ रुपए पानी की तरह खर्च कर दिए गए। इससे सम्बंधित अनेक सामग्रियां करोड़ों की खरीदी गईं परन्तु आज नतीजा यह है की इनमें से अधिकांश सामग्रियां भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गयीं। लिहाजा प्रधानमंत्री का जल संरक्षण की जरूरतों को रेखांकित करना तो निश्चित रूप से समय की सबसे बड़ी जरुरत है।
यह कदम उन्हें अपने पिछले कार्यकाल में ही उठाना चाहिए था। परन्तु देर आए दुरुस्त आए के तहत अब भी उन्होंने ठीक जन आवाहन किया है परन्तु यदि इसकी जरुरत के साथ स्वच्छता अभियान योजना की झूठी तारीफ भी जारी रही तो संभव है इसका हश्र भी स्वच्छता अभियान जैसा ही हो। यानि हजारों करोड़ रुपए बर्बाद भी हों,झूठी पब्लिसिटी भी की जाए और कूड़े व गंदगी के ढेर वहीँ के वहीँ। यदि जल संरक्षण को भी स्वच्छता अभियान की तरह लूट खसोट का माध्यम बनाया गया और ईमानदारी व पूरी तत्परता से इस दिशा में काम नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब हम बूँद बूँद पानी को तरसेंगे।
-निर्मल रानी
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