आर्थिक भगोड़े अपराधियों पर यह पहली चोट हैं, यह सही है कि पहली चोट है, पर चोट गंभीर है, निर्णायक चोट करने में यह पहली चोट बहुत बड़ी भूमिका निभाने जा रही है, भारत सरकार की बहुत बड़ी जीत है, यह एक बड़ी जीत ही नहीं है बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था की गतिशीलता को बाधित करने वाले और लाखों निवशकों के जीवन भर कमाई लेकर भागे अपराधियों को दूसरे देश में शरण पाना न केवल मुश्किल होगा बल्कि जेल की हवा भी मिलेगी। भारत की गंभीर पहल का सुखद परिणाम निकला। विशाल देशों के आर्थिक समूह जी 20 ने अपने घोषणा पत्र में यह स्वीकार कर लिया कि आर्थिक भगोड़े अपराधियों को संरक्षण नहीं दिया जायेगा, आर्थिक भगोड़े अपराधियों को कानून का सामना करने के लिए विवश किया जायेगा।
भारत की इस सफलता को कमतर नही आंका जा सकता है क्योंकि भारत पांच साल से इस अभियान में लगा हुआ था और हर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत इस समस्या को प्रमुखता के साथ उठा रहा था और कई प्रमुख देशों को साथ लाने की कोशिश में लगा हुआ था। जी 20 के समूह देशों ने इस समस्या को गंभी इसलिए माना कि अब यह समस्या सिर्फ भारत की नहीं है बल्कि इस समस्या से कई विकासशील देश ही नहीं बल्कि विकसित देश भी परेशान हैं।
यह सही हे कि सिर्फ जी 20 देशों के समूह में आर्थिक भगोड़ों पर बनी सहमति से आर्थिक भगोड़े अपराधियों पर अंकुश नहीं लग सकता है और आर्थिक भगोड़े अपराधियों को जेल की हवा नहीं खिलायी जा सकती है। दुनिया के जितने नियामक है, उन सभी नियामकों में आर्थिक भगोड़े अपराधियों के खिलाफ बड़े और बाध्यकारी प्रस्ताव पारित करना होगा। खासकर संयुक्त राष्ट्रसंघ और यूरोपीय यूनियन जैसे नियामकों में आर्थिक भगोड़े अपराधियों पर उसी तरह सिद्धांत बनने चाहिए जिस तरह काले धन वालों व आतंकवादियों के खिलाफ बने हुए हैं।
भारत ही वह पहला देश है जो आर्थिक भगोड़े अपराधियों से सबसे ज्यादा पीड़ित है, भारत ही वह देश है जिसकी अर्थव्यवस्था आर्थिक भगोड़े अपराधियों के कारण संकट में घिरी हुई है, आर्थिक भगोड़े अपराधियों ने केवल सरकारी धन की लूट की है बल्कि गरीब और तंगहाल नागरिकों की जीवन भर की कमाई भी लूटी है। क्या आपको यह जानकारी नहीं है कि विजय माल्या की कंपनी किंगफिशर , नीरव मोदी और मेहुल चैकसी की कंपनी के शेयर खरीदने वाले लाखों भारतीय आज न केवल व्यथित हैं बल्कि अपनी जिंदगी भर की कमाई भी खो चुके हैं, उनकी निवेश की पूंजी मिलने वाली नहीं है, क्योंकि इन आर्थिक भगोड़े के पास अब कुछ बचा ही नहीं हुआ है। सरकारी धन और गरीब निवेशकों के पैसे को इन आर्थिक भगोड़े ने केवल मौज मस्ती में लुटाया बल्कि रिश्वतखोरी भी करायी है।
दुनिया के कई ऐसे देश हैं जो लालची हैं, बर्बर हैं, अमानवीय हैं और इनके लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ की चार्टर भी कोई कसौटी नहीं बनती है। कुछ सभ्य और बड़े देश भी कथित मानवाधिकार के नाम पर आर्थिक भगोड़ोंं का न केवल संरक्षण देते हैं, बल्कि आर्थिक भगोड़ोंं को संरक्षण देने के नाम पर वसूली करते हैं, पीड़ित देश की समस्याएं बढाते है, पीड़ित देशों की सारी कोशिशें को बाधित करते हैं। विजय माल्या पर बैंकों का हजारों करोड़ रूपया बकाया है। विजय माल्या को बैंकों ने गलत ढंग से कर्ज दिये थे। जब माल्या के खिलाफ कार्यवाही शुरू हुई तो वह ब्रिटेन भाग गया। सबसे बड़ी बात यह है कि विजय माल्या जैसे देश के हजारों ऐसे आर्थिक अपराधी है जिन्होंने देश के धन को लूटा, जिन्होने देश की जनता को लूटा और लूट के पैसे का निवेश विदेशों में किया।
इसका उद्देश्य पर्दाफाश के बाद विदेशों में संरक्षण हासिल कर जेल जाने से बचना और मौज मस्ती के साथ जीवन बिताना। विजय माल्या ने अपनी अधिकतर संपत्ति ब्रिटेन में बनायी और निवेश की थी। ब्रिटेन में आज वह शान के साथ रह रहा है। ब्रिटेन की संपत्ति वह अपने परिजनों के नाम से स्थानांतरिक करा चुका है, इसलिए भारतीय जांच एजेसियों के हाथ बंधे हुए हैं। ब्रिटेन में यह जांच ही नहीं हो रही है कि जान बूझ कर विजय माल्या ने वह संपत्ति अपनी पत्नी, बच्चों तथा अन्य रिश्तेदारों के नाम पर खरीदी थी। ब्रिटेन में काफी लंम्बे समय से भारतीय एजेसियां प्रयासरत है पर ब्रिटेन की कानूनी पेचिदगियां भारी पड़ रही है। कथित मानवाधिकार का प्रश्न बना कर विजय माल्या की वापसी रोकी जा रही है। इसी तरह नीरव मोदी ब्रिटेन की जेल में जरूर बंद है पर उसकी वापसी भी ब्रिटेन की न्यायापालिका सुनिश्चित नहीं करने दे रही है। मेहुल चैकसी को एक भूखड़ और विफल देश एंटीगुआ ने न केवल संरक्षण दे दिया बल्कि उसे अपने देश की नागरिकता भी प्रदान कर दी। नागरिकता देने के पहले उसने सोचा-समझा नहीं कि वह एक आर्थिक भगोड़ा अपराधी है। भारत ने जब दबाव बढाया तब वह देश महूल चैकसी की नागरिकता रद्द करने की बात कही है। फिर भी मेहुल चैकसी की वापसी कब होगी, यह नहीं कहा जा सकता है।
अब यह समस्या सिर्फ भारत को ही पीड़ित नहीं कर रही है। दुनिया के कई देश भी पीड़ित हैं। अगर दुनिया में आर्थिक भगोड़े अपराधियों की कसौटी पर बदले की भावना काम करने लगेगी तो फिर दुनिया में अराजकता का वातावरण बन जायेगा। ब्रिटेन की तरह भारत भी ब्रिटेन के भगोड़ोंं को संरक्षण प्रदान करना शुरू कर देगा तो फिर स्थिति कितनी भयानक होगी, समझा जा सकता है। इसलिए आर्थिक भगोड़ों अपराधियों के खिलाफ दुनिया में एक तंत्र विकसित करना सिर्फ भारत का ही कर्तव्य नहीं है, दुनिया के हर सभ्य देशों का कर्तव्य है। यह भी सही है दुनिया पहले से अब थोड़ी जागरूक हो रही है। दुनिया के स्तर पर आर्थिक भगोड़े अपराधियों के खिलाफ एक सशक्त नियम बनाने की जरूरत है। दुनिया कभी काले धन और आतंकवाद की कसौटी पर भी उदासीन रहती थी। आतंकवाद के प्रश्न और कालेधन के प्रश्न पर जब भी भारत प्रश्न खड़ा करता था, आवाज उठाता था तब विकसित देश हंसी उड़ाते थे।
अमेरिका पर जब आतंकवादी हमला हुआ और अमेरिका के शान-शौकत के प्रतीक वर्ल्ड ट्रेड सेंटर का विध्वंस हुआ फिर अमेरिका की वीरता आतंकवादियों के खिलाफ उठी और सबककारी हुई। जब अमेरिकी आर्थिक अपराधी स्वीटजरलैड आदि देशों में धन छुपाये फिर अमेरिका ने सबककारी कानून बनाये और बनवाये। जिस तरह से दुनिया ने कालेधन और आतंकवाद के प्रश्न पर नियम कानून बनाये हैं और संरक्षण देने वालों के खिलाफ भी नियमावली बनाये उसी तरह की नियमावली आर्थिक भगोड़े अपराधियों और आर्थिक भगोड़े अपराधियों को संरक्षण देने वाले देशों के खिलाफ बननी चाहिए।
जिस तरह जी 20 देशों के समूह ने आर्थिक भगोड़े के खिलाफ एक सहमति बनायी है, उसी तरह की सहमति दुनिया के हर नियामकों में बनने की जरूरत है। खासकर यूरोपीय यूनियन और संयुक्त राष्ट्रसंघ में भी आर्थिक भगोड़े अपराधियों के खिलाफ एक सबककारी संहिताएं बननी चाहिए। इसके साथ ही साथ आर्थिक भगोड़े अपराधियों को संरक्षण देने वाले देशों के खिलाफ भी अंतर्राष्ट्रीय सहिताएं बननी चाहिए। भारत को और भी कोशिश करनी होगी। ब्रिटेन जैसे सभ्य देशों को भी कथित मानवाधिकार के नाम पर आर्थिक भगोड़े अपराधियों को संरक्षण देने की मानसिकताएं छोड़नी चाहिए।
-विष्णुगुप्त
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