आपकी स्वतंता वहां समाप्त हो जाती है जहां मेरी नाक शुरू होती है और किसी व्यक्ति का भोजन दूसरे व्यक्ति के लिए जहर होता है। ये दो पुरानी कहावतें पश्चिम बंगाल और उल्टा-पुल्टा उत्तर प्रदेश की दो घटनाओं से निपटने में हमारे नेताओं की भूमिका से उपजे विवाद का प्रमाण है जो इस बात को रेखांकित करता है कि यदि सत्ता नियंत्रण से मुक्त हो जाए तो उसका क्या प्रभाव पडता है। पहली घटना में पूरे देश में जनजीवन तब ठप्प हो गया जब कोलकाता में दो जूनियर डाक्टरों पर किए गए हमले के समर्थन में सभी जूनियर डाक्टर हडताल पर चले गए। यह हमला एक अस्पताल में एक रोगी की मृत्यु के बाद उसके रिश्तेदारों ने किया था और उसमें दो डाक्टर गंभीर रूप से घायल हुए थे और इस मामले को मुख्यमंत्री की इस धमकी ने और उलझा दिया कि डॉक्टर तुरंत काम पर लौटें अन्यथा उन्हें परिणाम भुगतना पडेगा जिसके चलते 400 से अधिक सरकारी अस्पताल के डाक्टरों ने त्यागपत्र दे दिया। कोई भी अस्पताल नहीं चाहता कि उसके डाक्टर पर कोई हमला करे और ममता को भी चाहिए था कि वह धैर्य और संयम से काम लेते हुए डाक्टरों से माफी मांग लेती।
दूसरी घटना में उत्तर प्रदेश पुलिस ने राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छवि खराब करने के संबंध में एक पत्रकार द्वारा पोस्ट किए गए वीडियो के बाद उसकी गिरफ्तारी को लेकर है। इस वीडियो को ट्विटर और फेसबुक पर पोस्ट किया गया और इसमें दशार्या गया है कि एक महिला दावा कर रही है कि मुख्यमंत्री ने उसे फेसबुक और ट्विटर पर विवाह का प्रस्ताव दिया। पत्रकार को तीन दिन बाद उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद रिहा किया गया और न्यायालय ने कहा कि स्वतंत्रता के अधिकार के साथ किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता है और भीड़ के डर से वाक् स्वतंत्रता पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता है। आप मुझे बेवकूफ कह सकते हैं किंतु एक अन्य प्रेस वाले की पिटायी की गयी, उसे नंगा किया गया और उसके मुंह में पेशाब किया गया और उसका दोष यह था कि वह एक रेल दुर्घटना को कवर कर रहा था।
बंगलौर में मुख्यमंत्री कुमारास्वामी ने एक अन्य पत्रकार को उनकी छवि खराब करने के लिए गिरफ्तार करवाया। उससे पूर्व ममता ने अपनी प्रबल प्रतिद्वंदी भाजपा की एक युवा नेता को फेसबुक पर उनके मेमे को पोस्ट करने के लिए गिरफ्तार कराया। इस फेसबुक पोस्ट में ममता का चेहरा प्रियंका चोपडा के नेट गाला 2019 के लुक की तरह दिखाया गया था। उसे जमानत पर रिहा किया गया किंतु उसे बिना शर्त माफी मांगने के लिए कहा गया। त्रिपुरा में भी दो पत्रकारों को मुख्यमंत्री विप्लब देव के व्यक्तिगत जीवन के बारे में फेसबुक पर फेक न्यूज पोस्ट करने के लिए गिरफ्तार किया गया। ओडिशा में एक पत्रकार को 13वीं सदी के कोणार्क सूर्य मंदिर के कामुक भित्ति चित्रों के बारे में अपमानजनक और आपत्तिजनक ट्वीट करने के लिए गिरफ्तार किया गया। उत्तराखंड के एक गांव में एक लडके को इसलिए हिरासत में लिया गया कि उसने प्रधानमंत्री मोदी के आपत्तिजनक मार्फ फोटो पोस्ट की थी।
दुखद तथ्य यह है कि आज हिंसा और असहिष्णुता बढ़ती जा रही है। किसी भी समाचार पत्र को उठाएं या टीवी चैनल को देखें सामाजिक खाई और विद्वेष की खबरें सुर्खियों में रहती हैं। आज भारत में विरोध प्रदर्शनों का दौर चल पडा है और यह जिसकी लाठी उसकी भैंस के सिद्धान्त के अनुसार कार्य हो रहे हैं। आप उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम कहीं भी चले जाइए स्थिति एक समान है। वस्तुत: कोई दिन ऐसा नहीं जाता जब हमें ऐसे समाचार देखने सुनने को नहीं मिलते। किसी भी मोहल्ला, जिला, राज्य में चले जाइए स्थिति यही है। हैरानी की बात यह है कि पिछले वर्ष सोशल मीडिया पोस्ट के लिए 50 लोगों को गिरफ्तार किया गया। कोई भी फिल्म, किताब या कहानी जिसमें कोई मजाक किया जाता हो या जो हमारे नेताओं की इच्छानुसार न हो उसके विरुद्ध विरोध होने लगता है और कई बार उसे देशद्रोह का मामला बताकर लेखक या फिल्म निर्माता को गिरफ्तार किया गया है। यही नहींं यदि आपको कोई ट्वीट पसंद नहीं आता है तो आप ट्वीट करने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार करवा देते हैं, भीड इकट्टी करके सिनेमाघरों में आग लगवा देते हैं। यदि आपको कोई उपन्यास पसंद नहीं है तो आप सरकार से उस पर प्रतिबंध लगवा देते हैं या लेखक के विरुद्ध फतवा जारी करवा देते हैं।
जबकि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू स्वयं देशद्रोह कानून को आपत्तिजनक और गैर जरूरी बता चुके थे। हमारे नेता भूल जाते हैं कि हमारे संविधान में अनुच्छेद 19 भी है जिसमें सभी नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गयी है। यह परम अधिकार नहीं है किंतु लोकतंत्र न तो भीडतंत्र है और न ही अव्यवस्था पैदा करने का लाइसेंस है। यह कर्तव्यों और अधिकारों तथा स्वतंत्रता और जिम्मेदारियों के बीच संतुलन है। किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ जिम्मेदारी और दूसरे व्यक्ति की स्वतंत्रता भी जुडी हुई है। इससे प्रश्न उठता है कि क्या सत्तारूढ लोगों के अशोभनीय व्यवहार को माफ किया जाना चाहिए। क्या नेता बेपरवाह होकर व्यवहार करते हैं? क्या नेता सार्वजनिक जीवन में विचारों के टकराव से डरते हैं? क्या एक मुख्यमंत्री पीडित पक्ष को सुने बिना धमकी देती है? क्या नेता अपने आप में कानून हैं और कानून द्वारा शासन करते हैं?
हमारे नेताओं को यह समझना होगा कि विश्व के नेता अपने बारे में लिखे या प्रदर्शित की गयी सामग्री के प्रति सहिष्णु हैं इसका ज्वलंत उदाहरण इटली के पूर्व प्रधानमंत्री अरबपति प्लेब्वॉय बेल लुस्कोनी हैं जिनकी विश्व भर में प्रिंट और आनलाइन मीडिया में खूब खिंचाई की गयी। अमरीका और ब्रिटेन के लोग भी अपने शासकों की खिंचाई करने में पूरी स्वतंत्रता का उपयोग करते हैं। कुल मिलाकर नेताओं को यह संदेश दिया जाना चाहिए कि नागरिकों के अधिकार सर्वोपरि हैं। कोई भी नेता या समूह हिंसा की धमकी नहीं दे सकता है और यदि वह ऐसा करते हैं तो उनकी सुनवाई का अधिकार समाप्त किया जाना चाहिए। हम एक सभ्य समाज में रहते हैं। जार्ज ओरवेल ने कहा था यदि स्वतंत्रता का कोई अर्थ है तो उसका अर्थ लोगों को यह कहने का अधिकार है कि वे क्या सुनना नहीं चाहते हैं। क्या ऐसे देश में स्वतंत्रता का अस्तित्व बचा रह सकता है जहां पर किसी मजाक को अपराध बना दिया जाता है? हमारे नेताओं को ऐसी संकीर्ण मानसिकता से उबरना होगा। अन्यथा कभी न कभी हमें कहना पडेगा बंद करो ये नाटक।
-लेखक: पूनम आई कौशिश
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