लोक सभा चुनावों में कांग्रेस की करारी हार के बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के इस्तीफे की पेशकश से जहां पार्टी में दुविधा वाली स्थिति बनी हुई है वहीं पंजाब हरियाणा और राजस्थान में भी गुटबाजी ने पार्टी संगठन के लिए परेशानियां खड़ी कर दी। पंजाब में मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह और कैबिनेट मंत्री नवजोत सिद्धू का विवाद दिल्ली पहुंच गया है। मौजूदा विवाद भले ही सिद्धू का विभाग बदलने को लेकर हुआ है लेकिन वास्तव में इस विवाद की शुरूआत एक साल पूर्व शुरू हो गई थी जब श्री करतारपुर साहिब कॉरिडोर मामले में नवजोत सिद्धू ने मुख्यमंत्री की सलाह को नकारते हुए कुछ निर्णय अपने स्तर पर लिए थे।
वास्तव में दोनों नेताओं के बीच यह प्रतिष्ठा की लड़ाई थी। सिद्धू ने कई बार अमरिन्दर सिंह को नीचा दिखाने की कोशिश की, दूसरी तरफ अमरिन्दर सिंह ने सिद्धू के विभाग की विफलताओं को जनता के समक्ष पेश किया। सिद्धू बार-बार यह कहते रहे कि उनका कैप्टन राहुल गांधी है। कांग्रेस हाईकमान ने इस विवाद को सही समय पर नहीं सुलझाया और लोक सभा चुनाव तक यह मामला पूरी तरह तूल पकड़ गया। अब भी कांग्रेस हाईकमान ने इस मामले में कोई सख्त कार्रवाई नहीं की, अब कांग्रेस दोनों नेताओं में विवाद सुलझाने में निरंतर प्रयासरत है।
यही हाल राजस्थान का है, जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने बेटे की हार का ठीकरा कांग्रेसी नेता सचिन पायलट पर फोड़ रहे हैं। दोनों गुटों में एक दूसरे के खिलाफ शब्दिक जंग जारी है। इधर हरियाणा में प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर व पूर्व सीएम भूपेन्द्र सिंह हुड्डा एक दूसरे के खिलाफ डटे हुए हैं। गुटबाजी का नुक्सान केवल कांग्रेस पार्टी को ही नहीं बल्कि इसका बुरा असर सरकार के कार्यों पर भी पड़ रहा है। पंजाब और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है। गुटबाजी के कारण मंत्री अपनी ऊर्जा सरकारी कार्यों को आगे बढ़ाने की बजाय एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगा रहे हैं। हरियाणा में कांग्रेस विपक्ष की भूमिका भी सही ढंग से नहीं निभा पा रही। कांग्रेस सत्ता में है या विपक्ष में, जब तक नेता अपने स्वार्थों को छोड़कर जनता के हित की बात नहीं करेंगे तब तक पार्टी अपने आधार को कायम नहीं रख सकती। हाईकमान को पार्टी की मजबूती के लिए स्पष्ट व ठोस निर्णय लेने होंगे। सभी को खुश रखकर आगे बढ़ना कठिन है।
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