भले ही विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ना दुनिया का सबसे बड़ा कारनामा माना जाता है किन्तु वास्तविकता यही है कि यह सपना चंद पर्वतारोहियों का ही पूरा हो पाता है। प्रतिवर्ष हजारों लोग माउंट एवरेस्ट को छूने की कोशिश करते हैं किन्तु उनमें से गिने-चुने लोग ही चोटी तक पहुंचने में सफल हो पाते हैं और कुछ एवरेस्ट फतेह करने की चाहत में अपनी जान गंवा देते हैं। कटु सत्य यही है कि प्रतिवर्ष जहां कुछ पर्वतारोही एवरेस्ट फतेह करने के अपने मंसूबों में सफल हो जाते हैं तो कई बफीर्ले पहाड़ों की रहस्यमयी कब्रगाह में ही दफन हो जाते हैं। इस बार तो हालात इतने बदतर हुए हैं कि जहां दर्जनों लोग एवरेस्ट के बफीर्ले रास्तों में मौत के आगोश में चले गए, वहीं 1953 में एडमंड हिलेरी तथा तेनजिंग नोर्गे द्वारा एवरेस्ट फतेह किए जाने के अभियान के बाद पहली बार एवरेस्ट पर पृथ्वी की ही भांति ट्रैफिक जाम का भयावह नजारा देखने को मिला है। इस ट्रैफिक जाम की वजह से भी इस बार एवरेस्ट पर कुछ पर्वतारोहियों की मौतें हुई हैं। वर्ष 2014-15 के दौरान तीन दर्जन से भी अधिक लोगों ने एवरेस्ट पर चढ़ाई करते हुए अपनी जान गंवाई थी। इतिहास पर नजर डालें तो एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाले हर 100 पर्वतारोहियों में से 4 की मौत हो जाती है।
वैसे मई महीने का एवरेस्ट के संदर्भ में विशेष महत्व है क्योंकि हर साल अधिकांश रिकॉर्ड अमूमन इसी माह में ही बनते हैं। इस सीजन में जहां उत्तराखण्ड में पिथौरागढ़ जनपद की 24 वषीर्या पर्वतारोही शीतल राज, मुरादाबाद के 27 वर्षीय विपिन चौधरी, गाजियाबाद के सागर कसाना, मुम्बई के केवल हिरेन कक्का सहित कुछ भारतीय पर्वतारोही दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर भारतीय तिरंगा लहराकर माउंट एवरेस्ट फतेह करने में कामयाब हो गए तो दूसरी ओर एवरेस्ट फतेह अभियान के दौरान कुछ भारतीयों की मौत होने तथा कुछ के लापता होने की दर्दनाक खबरें भी सामने आई।
इनमें कुछ ऐसे पर्वतारोही भी शामिल थे, जिन्होंने एवरेस्ट फतेह कर लिया था किन्तु उतरते समय मौत ने उन्हें गले लगा लिया, जिसकी एक बड़ी वजह एवरेस्ट पर लगा ट्रैफिक जाम था। 27 वर्षीय निहाल भगवान, 49 वर्षीय कल्पना दास, 54 वर्षीय अंजली एस कुलकर्णी एवरेस्ट से उतरते हुए मौत की नींद सो गए। इनके अलावा रवि ठक्कर तथा नारायण सिंह की भी मौत हो गई जबकि कोलकाता के 52 वर्षीय दीपांकर घोष मकालू पर्वत शिखर से लौटते समय कैंप-4 के ऊपर ही लापता हो गए। एक आयरिश पर्वतारोही के अलावा 44 ब्रिटिश पर्वतारोही रॉबिन फिशर की भी उस समय मौत हो गई, जब एवरेस्ट फतेह करने के बाद ढ़लान से सिर्फ 150 मीटर नीचे उतरने पर वे गिर गए।
तमाम खतरों के बावजूद एवरेस्ट फतेह कर रिकॉर्ड बनाने की चाहत में हर वर्ष हजारों पर्वतारोही एवरेस्ट का रूख करते हैं लेकिन इनमें से कुछ ऐसे बदनसीब होते हैं, जिनकी एवरेस्ट के बफीर्ले पहाड़ों पर ही कब्र बन जाती है और कई बार उनकी लाशों का कोई नामलेवा तक नहीं होता। 15 मई 2019 को उन्होंने 23वीं बार एवरेस्ट फतेह किया था और उसके एक सप्ताह के ही अंदर एक बार फिर एवरेस्ट फतेह करने के अपने सारे रिकॉर्डों को तोड़ते हुए एक सप्ताह में दो बार एवरेस्ट पर चढऩे वाले दुनिया के पहले पर्वतारोही बन गए। वे 11 भारतीय पुलिसकर्मियों के एक दल को लेकर एवरेस्ट पर पहुंचे थे। वर्ष 2018 में कामी रिता शेरपा ने ही 22वीं बार एवरेस्ट के शिखर पर चढ़ाई कर माउंट एवरेस्ट के शिखर को सबसे ज्यादा बार फतेह करने का रिकॉर्ड बनाया था।
पिछले साल मई माह में जहां चार महिला नेपाली पत्रकारों ने माउंट एवरेस्ट का सफल आरोहण किया था, वहीं उत्तराखण्ड निवासी बीएसएफ के असिस्टेंड कमांडेंट लवराज सिंह माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराकर सात बार एवरेस्ट फतेह करने का कीर्तिमान स्थापित करने वाले भारतीय पर्वतारोही बने थे तो हरियाणा की 16 वर्षीय शिवांगी पाठक ने एवरेस्ट फतेह कर छोटी उम्र में यह कारनामा कर दिखाया था। इसके अलावा हरियाणा के अजीत बजाज और उनकी 24 वर्षीय पुत्री दीया बजाज ने एवरेस्ट पर तिरंगा फहराकर पिता-पुत्री द्वारा एक साथ एवरेस्ट फतेह करने का रिकॉर्ड बनाया था। दूसरी ओर 6 महाद्वीपों के सबसे ऊंचे पर्वतों पर चढ़ने वाले पर्वतारोही नोबूकाजी कोरिकी 8 बार एवरेस्ट पर चढ़ने की नाकाम कोशिशें करने के बाद पिछले साल एवरेस्ट पर 7400 मीटर की ऊंचाई पर जिंदगी की जंग हार गए थे।
-योगेश कुमार गोयल
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