नाहक कटौतियों पर भी रोक लगाए रिजर्व बैंक

Reserve Bank to stop unnecessary deductions

रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने बैंको को दिये जाने वाले कर्ज पर ब्याज को 0.25 प्रतिशत कम कर दिया है अब बैंकों से आगे यह लाभ ग्राहको को मिलेगा। इससे उनके ऋणों की किश्त में उन्हें राहत मिलेगी फिर नए ऋणों को लेने में भी ग्राहकों को आसानी होगी। इसके अलावा इन्टरनेट बैकिंग में आर.टी.जी.एस व नेफ्ट से पैसा ट्रांसफर करने पर कोई शुल्क नहीं लगेगा जोकि पहले 5 रुपए से लेकर 50 रुपये तक बैंक वसूल रहे थे। यह हालांकि छोटी-छोटी राहतें है जो आरबीआई ने दी हंै परन्तु बैंक प्रतिदिन इससे कहीं ज्यादा कमाई ग्राहकों को तरह-तरह की कटौतियां लगाकर करने में लगे हैं जिसे भी रोका जाना चाहिए।

मसलन एकाउंट से ज्यादा बार पैसा निकाला तो शुल्क, पेट्रोल पंप या शॉपिंग माल से आॅनलाइन खरीददारी करने पर शुल्क, मोबाइल पर एसएमएस भेजने का शुल्क, खाता स्टेटमेंट लेने पर शुल्क, बैलेंस मेन्टेन नहीं किया तो शुल्क इसके अलावा कई ऐसे नाहक शुल्क भी लग जाते हैं जिनका ग्राहकों को कुछ पता नहीं होता कि वह किस सेवा के बदले शुल्क दे रहे हैं। उक्त छोटे-छोटे शुल्क मिलकर एक ग्राहक का साल भर में एक हजार रूपये से लेकर तीन-चार हजार रूपये साफ कर देते हैं। जबकि सरकार डिजीटलीकरण को लेकर इतनी ज्यादा गंभीर है कि हर क्रिया-प्रतिक्रिया को निशुल्क करना चाह रही है।

पिछले दो-तीन वित्तीय वर्षों में यदि निजी व सरकारी बैकों की बैलेंस शीट चेक की जाए तब उन्होंने सेवाएं देकर उतना पैसा नहीं कमाया जितना कि लोगों से कटौती के नाम पर काटकर अपनी जेब में डाल लिया। रिजर्व बैंक को इस ओर भी तत्परता से ध्यान देना होगा ताकि ग्राहकों को आये दिन की अनावश्यक कटौतियों से बचाया जा सके। इसके साथ ही बैंकों की निगरानी बढ़ाई जाए उनके क्रियाकलापों की महीन छानबीन रिजर्व बैंक को करते रहना चाहिए, जिससे बैकिंग में फैला भ्रष्टाचार देश के पैसे को आर्थिक अपराधियों को न लुटा सके।

पिछले कई सालों में बैंकों का खरबों रुपया एनपीए हो गया जिसकी कीमत बूंद-बूंद कर आमजन को चुकानी पड़ रही है जबकि आमजन का कोई कसूर भी नहीं, फिर उन्हीं का पैसा है जिससे बैकिंग व्यवस्था कायम है। अत: रिजर्व बैंक द्वारा आमजन के हित में बहुत सा काम करना अभी बाकी है, जिससे यहां आमजन का फायदा होगा वहीं देश का बैकिंग ढांचा भी मजबूत व विश्वसनीय बनेगा।