गठबंधन की राजनीति में अविश्वास कोई नई बात नहीं है। गठबंधन में जब बड़ी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिल जाता है तो छोटी पार्टियों की सरकार में भागीदारी नगण्य या सांकेतिक ही होकर रह जाती है, इस स्थिति में छोटी पार्टियों का कोई वश भी नहीं चलता और वे न ही कोई दवाब डाल सकते हैं। राष्टÑीय जनतांत्रिक गठबंधन के घटक दल जेडीयू ने जरूर एनडीए को आंख दिखाने का साहस किया है। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में एनडीए घटक दलों को मंत्री परिषद् में एक-एक सीट देने का निर्णय हुआ, जिसको सभी ने स्वीकार किया या स्वीकार करना पड़ा। कुछ ने इस उम्मीद के साथ कि भविष्य में मंत्रीमंडल के विस्तार के समय उन्हें और तव्वजो मिलेगी। लेकिन जेडीयू प्रमुख व बिहार के मुख्यमंत्री नितिश कुमार को यह स्वीकार न था।
केन्द्रीय मंत्रीमंडल में सांकेतिक तौर पर शामिल होना नितिश कुमार को गवारा न था और भविष्य में मोदी सरकार-2 में शामिल न होने का ऐलान कर उन्होंने अपनी भड़ास निकाली। ंइतना ही नहीं आनन-फानन में बिहार मंत्रीमंडल का विस्तार कर जेडीयू के खाते की मंत्री परिषद् की सभी रिक्तियों को तो भर लिया गया लेकिन भाजपा कोटे की 2 रिक्तियों को खाली रखकर भाजपा को कड़ा संकेत दिया है। मंत्रीमंडल में 8 नए मंत्रियों को शामिल कर जेडीयू के 21 मंत्रियों का कोटा अब पूरा हो गया है लेकिन भाजपा के 2 मंत्रियों की जगह अभी भी खाली है। बिहार में सीटों के हिसाब से 36 मंत्री बनाए जा सकते हैं।
अभी हाल में हुए चुनावों में बिहार के 3 केबिनेट मंत्री सांसद बन गए थे। इसलिए यह विस्तार तो होना ही था लेकिन मंत्रीमंडल के विस्तार की टाईमिंग को लेकर सवाल उठने स्वाभाविक है। केन्द्रीय मंत्रीमंडल के गठन के मात्र 3 दिन बाद ही बिहार मंत्रीमंडल का विस्तार कर नितिश कुमार अवश्य ही भाजपा को कुछ संदेश देना चाह रहे हैं, जो बिहार की राजनीति की दिशा को तय करेगा।
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