चीनी फैक्ट्रियां पहुंचा रही ओजोन परत को नुकसान

Damage to ozone layer carrying sugar factories

 साल 2018 के आखिरी महीनों में पर्यावरण के हितैषी अंतरराष्ट्रीय समुदायों के बीच खासा उत्साह का माहौल था। दरअसल, संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट से यह पता चला था कि साल 2000 से ओजोन परत में 2 फीसदी की दर से सुधार हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ के इस रिपोर्ट से यहां तक कयास लगाए जा रहे थे कि सदी के मध्य तक ओजोन परत पूरी तरह दुरुस्त हो जाएगी। मगर बीते 22 मई को विज्ञान की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘नेचर’ में प्रकाशित एक विस्तृत अध्ययन ने आशावादियों को चिंतित कर दिया है। दरअसल, इस नए अध्ययन से यह खुलासा हुआ है कि किस प्रकार से चीन पर्यावरण से जुड़े अंतरराष्ट्रीय समझौतों का उल्लंघन करते हुए अपने उद्योग-धंधों में ओजोन परत के लिए घातक गैसों का व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल कर रहा है। धरती पर जीवन के लिए ओजोन परत का बहुत महत्व है। पृथ्वी के धरातल से लगभग 25-30 किलोमीटर की ऊंचाई पर वायुमण्डल के समताप मंडल क्षेत्र में ओजोन गैस का एक पतला-सा आवरण है। यह आवरण धरती के लिए एक सुरक्षा कवच की तरह काम करती है।

घरेलू इस्तेमाल के लिए और थोड़ी मात्रा में खाद्य पदार्थो को ठंडा रखने के लिए साल 1917 से ही रेफ्रिजरेटर या फ्रिज का व्यावसायिक रीति से निर्माण शुरू हो चुका था। हालांकि तब रेफ्रिजरेशन के लिए अमोनिया या सल्फर डाइआॅक्साइड जैसे विषैले और हानिकारक गैसों का इस्तेमाल किया जाता था। रेफ्रिजरेटर से इनका लीक होना जान-माल के लिए बेहद घातक था। इसलिए जब जर्मनी और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने रेफ्रिजरेशन के लिए कार्बन-क्लोरीन-फ्लोरीन के परमाणुओं से निर्मित्ििा एक ऐसे पदार्थ क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) की खोज की जो प्रकृति में नहीं पाया जाता, तो रेफ्रिजरेटर सर्वसाधारण के इस्तेमाल के लिए सुरक्षित और सुलभ हो गए। इस खोज के बाद क्लोरोफ्लोरोकार्बन का इस्तेमाल व्यापक पैमाने पर एयर कंडीशनर, एरोसोल कैंस, स्प्रे पेंट, शैंपू आदि बनाने में किया जाने लगा। इसने औद्योगिक घरानों को काफी आकर्षित किया जिससे हर साल अरबों टन सीएफसी वायुमंडल में घुलने लगा।

ओजोन परत को नुकसान से बचाने के लिए 1987 में मॉन्ट्रियाल संधि लागू हुआ जिसमें कई सीएफसी रसायनों और दूसरे औद्योगिक एयरोसॉल रसायनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। अभी तक विश्व के तकरीबन 197 देश इस संधि पर हस्ताक्षर कर ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले रसायनों के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए हामी भर चुके हैं। इस संधि के लागू होने से सीएफसी और अन्य हानिकारक रसायनों के उत्सर्जन में धीरे-धीरे कमी आ रहीं थी। हालांकि यह कमी 2012 तक ही देखने को मिली। पिछले साल 2018 में वैज्ञानिकों को यह पता चला कि 2012 के बाद से इसमें दर्ज हो रही कमी की दर आधी हो गई है।

लेकिन ये नए उत्सर्जन कहां से हो रहें हैं? शुरूआती जांच में शोधकतार्ओं ने सिर्फ ये संकेत दिए थे कि ये नए उत्सर्जन के स्रोत पूर्वी एशिया में कहीं स्थित हैं। मगर अब तक सटीक लोकेशन का पता नहीं लगाया जा सका था। नेचर पत्रिका में प्रकाशित हालिया रिपोर्ट से यह पता चलता है कि ओजोन परत को नष्ट करने वाली अवैध गैसों के लिए चीन दोषी है। अमेरिका की एमआईटी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और इस अध्ययन के सह-लेखक रॉन प्रिन ने बताया, बीते साल आई एनवायरमेंटल इंवेस्टीगेशन एजेंसी (ईआईए) की रिपोर्ट में चीनी फोम फैक्ट्रियों की ओर इशारा किया गया था, जोकि बीजिंग के पास के तटीय इलाकों में बसी थीं। इन पर संदेह तब और गहरा गया जब प्रशासन ने इनमें से कुछ फैक्ट्रियां अचानक बिना कोई वजह बताए बंद करवा दीं।

चीन का फोम उद्योग अवैध रूप से सीएफसी-11 का उपयोग ब्लोइंग एजेंट के रूप में कर रहा था। चूंकि अन्य विकल्पों की तुलना में सीएफसी-11 सस्ता है, इसलिए उद्योग पॉलीयूरेथेन फोम या पीयू फोम बनाने के लिए इसका उपयोग करते हैं। चीन में सीएफसी की तस्करी की भी समस्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए चिंता का सबब बना हुआ है। देखने वाली बात यह है कि क्या चीनी सरकार पर्यावरण विरोधी ऐसी गतिविधियों पर लगाम लगा पाएगी या फिर इसकी बदौलत पिछले 30 सालों की वैज्ञानिकों की मेहनत पर पानी फिर जाएगा?
-प्रदीप

 

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