लोकतंत्र को सरकारी तंत्र से खतरा

The threat from democracy to the government machinery

केन्द्रीय सत्तारूढ़ राजनीतिक का अब देश की योजनाओं से ऊपर इस बात पर ज्यादा ध्यान हो चला है कि किस मुख्यमंत्री को परेशान करना है या किस पार्टी से कार्यकर्ता, जनप्रतिनिधि तोड़कर सत्तारूढ़ पार्टी में शामिल करने हैं। भाजपा की पिछली केन्द्रीय सरकार में पूरे साढ़े चार साल आम आदमी पार्टी को निशाने पर रखा गया। आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों पर लाभ का पद लेने के आरोप में अयोग्यता का डंडा चलाया गया। दिल्ली के उपराज्यपाल के मार्फत मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के तबादलों, नीतियों व सरकारी कामकाज में दखल दिया गया।

तंग आकर स्वयं मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने धरना दिया। फिर अदालतों में यह लड़ाई लड़ी गई। सिर्फ इसलिए कि दिल्ली ने तब भाजपा को न चुनकर आम आदमी पार्टी को चुनने की गलती की थी। ऐसा ही कुछ पांडेचेरी में किरण बेदी ने किया, चूंकि पांडेचेरी भी केन्द्र शासित प्रदेश है वहां पर भी दिल्ली की तरह पूर्ण राज्य नहीं होने के कारण गर्वनर के मार्फत केन्द्र ने अपनी मनमर्जी की, पिछले महीने जब हाईकोर्ट ने किरण बेदी की शक्तियों व मुख्यमंत्री की शक्तियों को बताया तब कहीं किरण बेदी के तेवर ढीले पड़े। अब फिर केन्द्र में मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी है लिहाजा फिर कुछ न कुछ ये गर्वनर करेंगे, ऐसा अनुमान करना शायद गलत नहीं होगा। अभी केन्द्र में नई सरकार ने शपथ भी नहीं ली है, पश्चिम बंगाल में भाजपा ने अपना अभियान छेड़ दिया है।

पश्चिम बंगाल में एकदम से दो विधायक भाजपा में शामिल हो चुके हैं। इतना ही नहीं स्थानीय निकायों के करीब दो दर्जन पार्षद भी तृणमूल कांगे्रस को छोड़ भाजपा के साथ हो लिए। राजनीतिक वफादारियां बदलना सामान्य बात है लेकिन इसके लिए यदि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को धरने पर बैठना पड़ रहा है यह संकेत हैं इस बात का कि केन्द्र सरकार का दखल पश्चिम बंगाल में आने वाले दिनों में क्या रंग दिखाने वाला है। केन्द्रीय सरकार खासकर सत्तारूढ़ दलों का यह आचरण देश में विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं को सरकारी मशीनरी से बदल देने का यह कृत्य लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है।

ऐसे तो फिर प्रधानमंत्री पद का ही चुनाव कर लिया जाए, राज्यों के मुख्यमंत्री, विधायक, एमपी सब प्रधानमंत्री की इच्छा पर चुन लिए जाएं, इससे देश का लोकतंत्र ढांचा तो भले ही नष्ट हो जाएगा लेकिन लोकतंत्र के नाम का यह तमाशा भी खत्म हो जाएगा जो अब चल रहा है। चूंकि अब ऊपरी तौर पर देश के व दुनिया को बताया जाता है कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है परन्तु यहां छोटे दलों, विधायकों, सांसदों की खरीद फरोख्त, सरकारी मशीनरी के दबाव से जो खेल हो रहे हैं वह अगर बंद नहीं होते तब भारत को लोकतंत्र कहना कोई बुद्धिमानी नहीं। भारत अभी भी एक स्वस्थ व मजबूत लोकतंत्र नहीं बन सका है, यहां सरकारी तंत्र लोक मत पर हावी हो रहा है।

 

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