जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती थोड़ी हिलती है। 19 नवंबर, 1984 को ये शब्द कहे थे तत्कालीन प्रधानमंत्री और इंदिरा गांधी के उत्तराधिकारी उनके पुत्र राजीव गांधी ने बोट क्लब में इकट्ठा हुए लोगों के हुजूम के सामने। 10 मई 2019 को इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने 1984 के दंगों को लेकर एक विवादित बयान दिया है। एक सवाल के जवाब में पीएम मोदी पर टिप्पणी करते हुए पित्रोदा ने कहा- अब क्या है 84 का? आपने क्या किया पांच साल में उसकी बात करिए। 84 में जो हुआ वो हुआ, आपने क्या किया। देश में लोकसभा चुनाव अंतिम चरण में है। छठे चरण की वोटिंग से ठीक पहले गांधी परिवार के करीबी पित्रोदा के इस बयान ने देश की सियासत में बंवडर ला दिया है। चुनावी गरमागरमी, बयानबाजी और सियासत के बीच पित्रोदा का यह बयान सोचने को मजबूर करता है कि हमारे देश के नेताओं व राजनीतिक दलों का चरित्र कैसा है? राजनीतिक नफे-नुकसान के लिये देश और देशवासियों से खिलवाड़ करने वाले नेता किस तरह सीना तानकर अपने कुकर्मों पर पूरी बेशर्मी और तार्किकता के साथ परदा डालने की कोशिश करते हैं।
और किस तरह वो पूरे देश के सामने घटी घटनाओं को झुठलाने की कोशिशें करते हैं। 1984 के दंगों की चोट के घाव आज भी ताजा है। आज भी तमाम परिवार हैं, जिनके दिलों में 1984 के दंगों की चोट के घाव आज भी ताजा है और पित्रोदा जैसे लोग जब उन दंगों के बारे में शर्मनाक बयान देते हैं तो घाव बार-बार हरे हो जाते हैं। दंगों के 21 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संसद में इसके लिए माफी मांगी और कहा था कि जो कुछ भी हुआ, उससे उनका सिर शर्म से झुक जाता है। लेकिन क्या इतना कहने भर से ही सरकार का फर्ज पूरा हो गया? क्या इससे आजाद भारत के सबसे सबसे बुरे हत्याकांड की यादें मिट गईं? कुछ साल पहले इन दंगों पर नजर डालने वाली एक किताब व्हेन ए ट्री शुक डेल्ही छपी थी। इसमें दंगे की भयावहता, हताहतों और उनके परिजनों के दर्द व राजनेताओं के साथ पुलिस के गठजोड़ का सिलसिलेवार ब्यौरा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि सैम पित्रोदा ने आवेश या भावनाओं में बहकर यह बयान नहीं दिया, और न ही उनकी हिंदी इतनी कमजोर है कि वो कुछ का कुछ बोल जाएं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने फेसबुक पोस्ट में कहा कि वे सैम पित्रोदा के बयान से सहमत नहीं हैं। उन्होंने बयान को लेकर सैम पित्रोदा को नसीहत देते हुए कहा कि सैम पित्रोदा को बयान को लेकर माफी मांगनी चाहिए। राजनीतिक दलों और नेताओं का ऐसी बेशर्म बयानबाजी पीड़ितों के जख्मों को हरा कर देती है। ऐसे बेशर्म, गैर जिम्मेदाराना और असंवदेनशील राजनेताओं और राजनीतिक दलों की जितनी निंदा की जाए कम है। ऐसे नेताओं की जनसमर्थन पाने का भी कोई हक नहीं है।
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