भारत विकासशील के साथ युवाओं का देश है जिनकी आबादी के आधे से ज्यादा लोग युवा के गिनती में आते हैं। युवा ही ऐसे ताकत होते हैं,जो देश के विकास में अहम भागीदारी निभाते हैं। देश में ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि युवाओं के दम पर ही देश को विकसित बनाया जा सकता है। लेकिन जिस युवा पीढ़ी के बल पर भारत विकास के पथ पर दौड़ने का दंभ भर रहा है,वह दुर्भाग्य से इन दिनों बेरोजगारी नामक बीमारी से लड़ती दिख रही है। भारत एक विकासशील देश की गिनती में आता है जिसकी प्राथमिकता देश को विकसित बनाने की है जिसमें अहम भागीदारी युवा पीढ़ी की है।
लेकिन देश के युवा तबके में बढ़ती बेरोजगारी गंभीर समस्या के रूप में देश में उभर रही है। हाल ही के आंकड़ों को मध्यनजर रखने पर पता चलता है कि देश के अधिकांश युवा बेरोजगार हैं, सबसे ज्यादा चिंतन करने का विषय यह है कि पढ़े लिखे युवाओं की तादाद सबसे ज्यादा है। बेरोजगारी की वजह से हर छात्र के चेहरे पर मायूसी से देखी जा सकती है। जहां एक ओर युवा पीढ़ी रोजगार ना मिलने पर तंग नजर आ रहे हैं वहीं पर पांच साल बहुमत वाली सरकार ने युवाओं को रोजगार देने में नाकाम रही है। ऐसे में सवालों के घेरे में हम बहुमत वाली सरकार को ले सकते हैं जिन्होंने पांच साल रोजगार सृजन बहुत ही कम किए। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या देश में अच्छे दिन बेरोजगारी को बढ़ा कर लाई जाएगी? या फिर आरोप प्रत्यारोप राजनीति और जुमलेबाजी करके इतने बड़े देश में अच्छे दिन लाए जा सकते हैं? क्या सम्पूर्ण देश बेरोजगारी विस्फोट की ओर है?
भारत देश में बेरोजगारी कोई नई बीमारी नहीं है आजादी के बाद से ही देश के में बेरोजगारों की संख्या बढ़ती गयी और आजतक रुकने का नाम नहीं ले रही है। हमारा देश जो कृषि प्रधान कहा जाता इसकी सबसे बड़ी विडंबना यह है कि देश में कृषि मानसून कर निर्भर रहती है। रोजगर सृजन हमारे यहाँ कृषि में ना के बराबर हुई गौर करने की बात है कि सबसे ज्यादा बेकरी कृषि क्षेत्र में ही पाई जाती है। देश के सरकार ने भी कोई मतबूत कदम अपने किसान और कृषि क्षेत्र के लिए नही उठा पाई जिस कारण से देश में बेकारी की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती चली गयी। आज भी कृषि में बेरोजगारी ऊंचे स्तर में पहुँची हुई है। देश में जुमले को खूब रोजगार मिल हुआ है। क्या यही अच्छे दिन की पहचान होती है?
बेरोजगारी की बात शुरू होते ही सबसे पहले सिर जनसंख्या पर फोड़ा जाता है। अगर बेरोजगारी के मुख्य कारणों को देखा जाए तो स्पष्टत: जनसंख्या में वृद्धि और तकनीकों में उन्नति का ना होना दिखता है। जनसंख्या विस्फोट के कारण देश की सरकार ने अपने संसाधन में बढ़ोतरी अपनी जनसंख्या के अनुसार करने में नाकाम रही है। लगातार देश विकास की गति पर बढ़ता रहा लेकिन बेरोजगारी की समस्या और भी गहराती चली गई। आज देश के अधिकांश युवा अपने रोजगार खोजने में अपने हिम्मत हार चुके हैं। कई छात्र अवसाद में आकर जीवन खो बैठे हैं आखिर उनके पास रास्ते ही बंद होते प्रतीत होते हैं। क्या ऐसे हालात में देश के विकास को देखा जा सकता है?
बरोजगारी की बात की जाए वहाँ शिक्षा सबसे अहम मुद्दा दिखता है। किसी भी देश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति उस देश की शिक्षा पर निर्भर करती है। शिक्षित समाज ही आगे बढ़ता है। अच्छा शिक्षा के बगैर बेहतर भविष्य की कल्पना नहीं की जा सकती अगर देश की शिक्षा अच्छी है,तो उस देश को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। और अगर शिक्षा अच्छी नही है,तो वह देश की विकास गति कम हो जाएगी। किसी भी देश के लिए शिक्षा का बड़ा महत्व है। शिक्षा ही वह साधन है जो किसी देश को किसी भी संकट से उबार सकता है व विकास की मार्ग को दिखा सकता है। शिक्षा का ही महत्व है जिसके कारण कोई देश बेरोजगार मुक्त बनने की कोशिश करता है।
विद्यालयों में संसाधनों की कमी भारी मात्रा में है। बच्चे के नाम विद्यालय में दर्ज हो यही काफी है ताकि सरकारी रिकॉर्ड में दिखाया जा सके। इस नीति से साफ जाहिर होता है कि सरकार बस शिक्षा के नाम पर ढोंग कर रही है। शिक्षा व्यवस्था अंदर ही अंदर खोखला बन चुकी है। ऐसे में सवाल सरकार के साथ हमारी शिक्षा प्रणाली पर जाती है, जिसमें बेरोजगारी से निजात पाने की कोई खास हाल नहीं है। देश के शिक्षा को रोजगार से बिल्कुल नही जोड़ा गया है। सरकारी विफलता के साथ हमें अपनी दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली को नहीं भूलना चाहिए क्योंकि शिक्षा प्रणाली में भी कोई कौशल युक्त व्यवस्था नहीं होने के कारण बेरोजगारी बढ़ रही है। साथ ही साथ भ्रष्टाचार देश के रोजगर में अड़ंगा है।
लोकसभा 2014 के चुनाव में अच्छे दिन एक ऐसे नारे में तब्दील हुआ जिसने बीजेपी को सत्ता में काबिज करवा दिया और मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में। देश के किसान से लेकर युवाओं ने मन में भारत के अलग छवि बना लिए थे उन्हें लग रहा था कि हमें रोजगार मिलेगी सरकार नौकरियों की बौछार करेगी जैसे कि चुनावी बयान में बोले गए। हमें अच्छी तरह याद है कि मोदी सरकार ने कहे थे कि हर साल दो करोड़ युवाओं को नौकरी दी जाएगी लेकिन मौका आने के बाद युवाओं को पकोड़े की नसीहत भी दे गए। सरकार ने रोजगार के मुद्दे पर चुप्पी साधी रही। रोजगार दिए जाने के वादे किए गए थे लेकिन नोटबन्दी ओर जीएसटी ने भारत में और ज्यादा बेरोजगारी बढा दी। सरकार 2019 के लोकसभा चुनाव के रैलियों में भी रोजगार के मुद्दे से नजर चुराती दिख रही है।
ये बात सही है कि आजादी के बाद देश में सबसे ज्यादा शासन कांग्रेस का रहा। मोदी सरकार ने सत्ता में पांच साल गुजारे हैं लेकिन मोदी ने खुद 2014 लोकसभा चुनाव से पहले लोगों को अच्छे दिन का सपना दिखाया था। मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, बुलेट ट्रेन, ‘स्टार्ट अप इंडिया’ योजना ये सभी कानों को सुनने में अच्छे लगते हैं। लेकिन पहले युवाओं को बेरोजगारी से मुक्ति चाहिए। जिनमे सरकार पांच सालों में नाकाम रही है।
निलेश मेहरा
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