हरियाणा में चिकित्सा मंत्री अनिल विज भाजपा प्रत्याशी रत्नलाल कटारिया जोकि अंबाला सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, के पक्ष में चुनाव प्रचार दौरान आमजन से गाली गलौच पर उतर आए। आमजन का गुस्सा था कि सांसद रहते हुए कटारिया ने उनकी समस्याओं का हल नहीं किया, न ही विज जो वहां प्रचार कर रहे थे, वह कोई बात सुन रहे थे। जनता भी अब काम नहीं करने वाले नेताओं के थप्पड़ तक मार रही हैं, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के एक चुनावी रोड़ शो में किसी युवा ने थप्पड़ मार दिया। लोकतंत्र में नेताओं व आमजन के बीच एक-दूसरे के प्रति बढ़ रहा गुस्सा देश व व्यवस्था को किस ओर ले जाएगा यह न केवल चिंता का विषय है बल्कि खतरे की पूर्व आहट भी है। यह बात सही है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी और कोई भी राजनेता जनता की अपेक्षाओं को कभी पूरा नहीं कर सकता। क्योंकि एक अपेक्षा पूरी होती है तो फिर एक नई अपेक्षा का प्राकट्य हो जाता है।
इसलिए कहा जा सकता है कि अपेक्षाएं अनंत हैं। लेकिन वाह रे देश के राजनेता, वह जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने का ऐसे वादा करते हैं कि जैसे उनके पास कोई अल्लादीन का चिराग हो। राजनीतिक दलों द्वारा अल्लादीन के चिराग का सपना दिखाकर समस्याओं से मुक्ति का वादा कर दिया जाता है, लेकिन यह सच है कि सरकार सारी जनता की समस्याओं का निदान नहीं कर सकती। वास्तव में जनता द्वारा इस तरह का व्यवहार भारतीय संस्कृति के पैमाने पर खरा नहीं उतरता और न ही इस प्रकार का कृत्य किसी भी दृष्टि से उचित ठहराया जा सकता है, लेकिन गंभीर सवाल यह है कि भारतीय राजनेताओं के प्रति जनता उद्वेलित क्यों होती जा रही है? इस प्रकार के सवाल पर कोई भी राजनीतिक दल विचार करने के लिए तैयार नहीं हैं। आज भारत के राजनीतिक दलों की एक मान्य परंपरा बन चुकी है कि हमारा राजनीतिक दल ही सबसे श्रेष्ठ है, बाकी सब खराब हैं।
ऐसा लगता है कि इस प्रकार की मानसिकता के चलते ही दुर्भावना का वातावरण निर्मित हो रहा है। दूसरी सबसे बड़ी बात यह भी है कि जनता के समक्ष भारतीय राजनेताओं द्वारा लुभावने वादे तो किए जाते हैं, लेकिन जब उनको पूरा करने का जिम्मा आता है तो एक-दूसरे पर आरोप की राजनीति प्रारंभ हो जाती है। गुजरात में नए नए राजनेता बने हार्दिक पटेल को एक आमसभा के दौरान एक पीड़ित व्यक्ति ने तमाचा जड़ दिया। इसके बाद हार्दिक पटेल ने सीधे भाजपा पर आरोप लगा दिया। भाजपा के नेता भी कम नहीं वह भी जनता को गालियां दे रहे हैं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं स्वर्गीय नेताओं को भी चुनाव प्रचार में घसीट रहे हैं। इससे संदेश निकलता है कि राजनेता अपने प्रति उत्पन्न हो रहे आक्रोश का परीक्षण करें, फिर उन्हें यह समझ में आ जाएगा कि वास्तव में गलती कहां है।
आज राजनेता कुछ भी कहे। समस्याओं के लिए किसी को भी जिम्मेदार ठहराए, लेकिन सत्य यही है कि मात्र जनता ही सत्तर साल से समस्याओं का सामना कर रही है। ऐसे में जनता से किए जाने वाले झूठे वादे भी सच जैसे लगने लगते हैं और जनता भ्रमित हो जाती है। सत्ता केन्द्रित किए जाने वाले वादे खोखली राजनीति का उदाहरण मात्र हैं। ऐसे वादों के चलते ही जनता आक्रोशित होती है, जिसके कारण जनता का गुस्सा राजनेताओं पर निकलता है।
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