संवैधानिक अधिकारों के अंतर्गत पैरोल मांगना भी क्यूं मीडिया के गले नहीं उतर रहा…

Parole, For, Sant Dr. Gurmeet Ram Rahim Singh ji Insan 

पूज्य संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ( Saint Dr Gurmeet Ram Rahim Singh Ji Insan) हमेशा कानून का पालन करते आए हैं। 25 अगस्त 2017 को पंचकूला सीबीआई अदालत का पूज्य गुरू जी के विरुद्ध फैसला आया तभी से मीडिया का बहुत बड़ा वर्ग आंखों पर नफरत व स्वार्थ भरा चश्मा लगा मामले को सनसनीखेज बनाने में लग गया और पत्रकारिता के आदर्श-मूल्यों का राम-नाम स्वाहा हो गया।

आज जब पूज्य गुरू जी अपनी गोद ली हुई बेटी की शादी के लिए पैरोल की मांग कर रहे हैं तो मीडिया का एक तबका अदालत पर दबाव बनाने में लगा है ताकि पूज्य गुरू जी को पैरोल न मिल सके। जबकि ‘द हरियाणा गुड कंडक्ट प्रिज़नर्स एक्ट 1988’ के तहत व्यक्ति अपनी बेटी, बेटे, पौत्र, पौत्री, बहन-भाई, बहन के पुत्र-पुत्री इत्यादि की शादी के लिए पैरोल ले सकता है।

जब गुरु जी इसी आधार पर पैरोल की मांग कर रहे हैं तो मीडिया का ये तबका नफरत का चश्मा चढ़ा कर मनघढ़ंत खबरें गढ़ रहा है। छापा जा रहा है कि गुरुअंश इन्सां पूज्य गुरू जी की पुत्री ही नहीं है। जबकि सच्चाई ये है कि पूज्य गुरू जी द्वारा गोद ली गई 33 बेटियों में से एक गुरुअंश वही बेटी है जो ‘शाही बेटियां बसेरा’ में रहती थी। ये वो बेटियां थीं, जिनका इस दुनिया में कोई सहारा नहीं था तथा इन्हें या तो इनके मां-बाप छोड़ गए या इन्हें झाड़ियों, सड़कों के किनारों से उठा कर डेरा सच्चा सौदा के ‘शाही बेटियां बसेरा’ में लाया गया व पाला पोसा गया।

पूज्य गुरू जी ने इन बेटियों को पिता का नाम दिया और पिता की तरह ही इनकी परवरिश की। वहीं जब सूत्रों के हवाले से मनघढंÞत खबरें छापने वाले मीडिया के कुछ लोगों को लगा कि पूज्य गुरू जी को पैरोल मिलने वाली है तब वे फिर उसी नफरत के चश्मे को पहन कर मनघढ़ंत खबरों को रूप देने में लग गए। हालांकि कुछेक मीडिया संस्थानों ने पूरी खबर तथ्यों के आधार पर छापी हैं लेकिन उनकी संख्या बहुत कम है।

ऐसे में समाज के बुद्धिजीवी मान रहे हैं कि मीडिया का ये तबका न केवल समाज में अपना नाम खराब कर रहा है बल्कि संवैधानिक अधिकारों के तहत अपनी बात रखने वालों के प्रति अदालतों पर नफरत व झूठ का दबाव बनाने की कोशिशें कर रहा है। हालांकि अदालतें ऐसी खबरों के माध्यम से नहीं चलती। लेकिन मीडिया के इन लोगों को यह समझ लेना चाहिए कि लोग जागरूक हैं और ऐसी खबरों से महज कुछ टीआरपी हासिल हो सकती परंतु इससे समाज में मीडिया का नाम जरूर बदनाम हो रहा है।

– अनिल कक्कड़

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