यह उचित है कि भारत ने पाकिस्तान के साथ जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के जरिए उस पार से होने वाले सभी तरह के व्यापार को स्थगित कर दिया है। भारत ने यह कठोर कदम तब उठाया जब उसके संज्ञान में आया कि पड़ोसी देश पाकिस्तान में बैठे हुए कुछ अराजक तत्व अवैध हथियारों, मादक पदार्थों और जाली करंसी भेजने के लिए इस व्यापार मार्ग का इस्तेमाल कर रहे हैं। कोई भी देश बर्दाश्त नहीं कर सकता कि उसका पड़ोसी व्यापार के बहाने आतंकवाद की सप्लाई करे। उल्लेखनीय है कि एलओसी व्यापार अभी बारामूला जिले के उरी के सलामाबाद में और पुंछ जिले के चकन-दा-बाग में दो व्यापार केंद्रों से संचालित होता है।
यह व्यापार सप्ताह में चार दिन होता है और यह वस्तु विनिमय प्रणाली और शुल्क मुक्त पर आधारित होती है। भारत के इस कदम से पाकिस्तान को करारा झटका लगा है। ध्यान देना होगा कि भारत ने अफगानिस्तान के जरिए भी पाकिस्तान को करारा झटका दिया है। इससे पाकिस्तान का आर्थिक नुकसान होना तय है। एक वक्त था जब पाकिस्तान-अफगानिस्तान दोनों पड़ोसी देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार तकरीबन 5 अरब डॉलर था जो अब घटकर डेढ़ अरब डॉलर पर आ गया है। इसकी सबसे बड़ी वजह ईरान का चाबहार पोर्ट है जिसको भारत के सहयोग से बनाया गया है। दरअसल चारों तरफ से जमीन से घिरे अफगानिस्तान तक सीधी पहुंच देने में पाकिस्तान आनाकानी करता था।
इसका तोड़ निकालने के लिए भारत ने ईरान के रास्ते अफगानिस्तान सामान भेजने का फैसला किया है। इसके लिए भारत ने ईरान के चाबहार पोर्ट में अरबों रुपए का निवेश किया और ईरान से अफगानिस्तान तक सड़क मार्ग का भी निर्माण कराया। चाबहार के आकार लेने से पाकिस्तान का आर्थिक नुकसान बढ़ गया है और अब एलओसी पर व्यापार पर प्रतिबंध लगने से उसकी कमर टूटनी तय है। गौरतलब है कि भारत एलओसी व्यापार के रास्ते पाकिस्तान को चीनी, तेल, केक, पेट्रोलियम आॅयल, टायर, रबड़, कॉटन, कालीन, गलीचा, शॉल और स्टोल, नामदा, गब्बा, केमिकल, स्टेपल फाइबर जैसे औद्योगिक कच्चे माल एवं चाय तथा नमक जैसे घरेलू उत्पादों का निर्यात करता है। इन वस्तुओं के निर्यात से न केवल पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को गति मिलती है बल्कि पाकिस्तानी उपभोक्ताओं को ये वस्तुएं सस्ते दामों में मिल जाती हैं। इसके अलावा एलओसी के रास्ते व्यापार से पाकिस्तान के लाखों लोगों को रोजगार भी प्राप्त होता है।
भारत द्वारा एलओसी व्यापार पर प्रतिबंध लगने से अब पाकिस्तानी उत्पादों की कीमत बढ़नी तय है और साथ ही महंगाई भी आसमान छूएगी। वैसे भी गौर करें तो भारत के इस सख्त कदम से भारत की आर्थिक सेहत पर बहुत प्रतिकूल असर नहीं पड़ने वाला है। अगर भारत-पाकिस्तान व्यापर पर नजर दौड़ाएं तो पाकिस्तान को होने वाला निर्यात भारत के कुल निर्यात का बहुत छोटा हिस्सा है। आंकड़ों पर गौर करें तो भारत के कुल निर्यात का महज 0.83 प्रतिशत पाकिस्तान को जाता है जबकि पाकिस्तान से हमारा आयात कुल आयात का 0.13 प्रतिशत है। गत वित्त वर्ष में दोनों देशों के बीच 2.67 अरब डॉलर का वस्तु व्यापार हुआ जिसमें निर्यात 2.17 अरब डॉलर तथा आयात 50 करोड़ डॉलर रहा।
भारत के कारोबारी पाकिस्तान की तुलना में छ: गुना तक पाक को निर्यात करते हैं। ध्यान दें तो गत वर्ष भारत ने पाकिस्तान से तरजीही राष्ट्र का दर्जा छीन लिया है और भारत की आर्थिक सेहत पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है। लेकिन पाकिस्तान पर उसका असर साफ दिखने लगा है। बाजार के विश्लेषकों की मानें तो भारत द्वारा निर्यात रोके जाने से पाकिस्तान के बाजारों में दैनिक उत्पादों की कीमत बढ़ गयी है। उदाहरण के लिए दूध की कीमत 150 रुपए प्रति लीटर से ऊपर पहुंच गयी है। पाकिस्तान के टेक्सटाइल्स मिलों और औद्योगिक कल-कारखानों के पहिए थमने लगे हैं। ध्यान देना होगा कि अभी तक भारत द्वारा पाकिस्तानी मिलों को सस्ते दामों पर कॉटन उपलब्ध कराया जाता रहा है जिसकी वजह से उसके रेडिमेड उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय बाजार में टिके हुए थे।
लेकिन तरजीही राष्ट्र का दर्जा छीने जाने के बाद पाकिस्तान की हालत पतली हो गयी है और अब टेक्सटाइल्स मामले में उसका अंतर्राष्ट्रीय बाजार में टिके रहना मुश्किल हो गया है। सर्जिकल और एयर स्ट्राइक के बाद भी वह भारत विरोधी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। उचित तो यह रहा होता कि भारत एलओसी पर व्यापार प्रतिबंध कदम उसी समय उठा लिया होता जब पाकिस्तान से तरजीही राष्ट्र का दर्जा छीना गया। अब तक पाकिस्तान घुटने के बल होता। ध्यान देना होगा कि जब तक पाकिस्तान आर्थिक रुप से कमजोर नहीं होगा तब तक वह भारत विरोधी गतिविधियों में लगा रहेगा। अकसर देखा जाता है कि भारत में जब भी चुनाव होता है पाकिस्तान अराजक और अलगाववादी तत्वों के जरिए विशेष रुप से जम्मू-कश्मीर में चुनावी प्रक्रिया को बाधित करने का प्रयास करता है। उसका काम जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी संगठनों द्वारा किया जाता है। गौर करें तो इस समय देश में चुनाव चल रहा है। जम्मू-कश्मीर समेत देश के सभी राज्यों में चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं।
पिछले दो चरणों में देखा भी गया कि जम्मू-कश्मीर के अराजक व अलगाववादी तत्व किस तरह चुनाव के दिन पत्थरबाजी कर मतदाताओं को डराने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन अच्छी बात यह रही कि जम्मू-कश्मीर के मतदाता बगैर डर-भय के मतदान केंद्रों पर जमे रहे और लोकतंत्र में अपनी आस्था जतायी। यह अलगाववादियों और अराजक तत्वों के मुंह पर करारा तमाचा है। अच्छी बात यह है कि सुरक्षा एजेंसियों ने आमचुनाव से पहले ही जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी संगठनों के शीर्ष नेताओं को धर दबोचा है लिहाजा उन्हें चुनाव में बाधा उत्पन्न करने का मौका नहीं मिला। उम्मीद है कि एलओसी के जरिए व्यापार स्थगित होने के बाद जम्मू-कश्मीर में जो अराजक तत्व पाकिस्तानी फंडिंग के दम पर उत्पात मचाए हुए थे उन पर नकेल कसेगी और मतदान भी शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो सकेगा।
विपक्षी दल सरकार की चाहे जितनी भी आलोचना करें लेकिन सच तो यह है कि केंद्र सरकार का यह कदम देर से ही सही पर दुरुस्त है। विपक्षी दलों द्वारा इसमें मीन-मेख नहीं ढूंढ़ना चाहिए। उन्हें ध्यान देना चाहिए कि आखिर सेना द्वारा आॅल आउट मिशन चलाए जाने के बाद भी आतंकी और अलगाववादी तत्वों की तादाद में कमी क्यों नहीं आ रही है? उम्मीद है कि एलओसी पर व्यापार प्रतिबंध लगने से अब अलगाववादियों और अराजक तत्वों के लिए पहले जैसी अनुकूल स्थिति नहीं रहेगी। ध्यान देना होगा कि भारत सरकार ने यह कदम तब उठाया है जब भारतीय सुरक्षा एजेंसियों द्वारा आगाह किया गया है कि पड़ोसी देश पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में एलओसी पर सलामाबाद और चक्का दा बाग के जरिए व्यापार की आड़ में घातक हथियारों की सप्लाई कर रहा है। इस रास्ते से आतंकी भी प्रवेश कर रहे हैं।
क्या इससे साबित नहीं होता कि पाकिस्तान भारत विरोधी हरकतों में लगा हुआ है? लेकिन यहां दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि कुछ राजनीतिक दल विशेष रुप से कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी केंद्र सरकार के इस साहसिक कदम की आलोचना कर रहे हैं। उनकी नजर में यह कदम महज चुनावी हथकंडा मात्र है। सच कहें तो इन राजनीतिक दलों ने इस तरह का आरोप जड़कर एक किस्म से अलगाववादी व आतंकी संगठनों सहित दुश्मन देश पाकिस्तान को क्लीन चिट देने का काम कर रहे हैं। यह ठीक नहीं है। इससे भले ही उनकी राजनीति सध रही हो लेकिन वे देश की संप्रभुता और सुरक्षा के साथ खिलवाड़ ही कर रहे हैं।
अरविंद जयतिलक
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