लोक सभा चुनावों को लेकर कांग्रेस-भाजपा और उनकी सहयोगी पार्टियों में घमासान मचा हुआ है। सभी पार्टियां उम्मीदवारों की घोषणा करने को लेकर असमंजस में हैं, जिससे स्पष्ट है कि सभी पार्टियां मुद्दों पर कमजोर और गैर-जिम्मेवार नजर आ रही हैं। चुनावी गहमागहमी में ‘नीति’ नाम का शब्द लुप्त है और ‘रणनीति’ शब्द आम हो गया। किसी भी पार्टी के पास असल मुद्दों पर ठोस नीति नहीं, ऐसा नहीं हो पा रहा कि दल बिना किसी दिमागी कसरत के उम्मीदवार को टिकट थमा दें और वह उम्मीदवार चुनाव जीत जाए। जहां तक पंजाब की बात करें तो कांग्रेस ने अपने दो उम्मीदवार (बठिंडा और फिरोजपुर) सीट के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने से महज दो दिन पहले उम्मीदवारों का घोषणा की।
हालांकि अभी तक अकाली दल ने अपने उम्मीदवार तय नहीं किए। वहीं भाजपा ने तीन सीटों में से एक सीट पर नामांकन पत्र के एक दिन पहले अमृतसर सीट पर हरदीप पुरी के नाम की घोषणा की। दो सीटें होशियारपुर और गुरदासपुर में अभी भी पेंच फंसा हुआ है। दिल्ली में कांग्रेस और भाजपा का भी यही हाल है। कांग्रेस ने दिल्ली में नामांकन (16 अप्रैल) के सात दिन गुजर जाने के बाद शीला दीक्षित सहित पांच उम्मीदवारों की घोषणा की वहीं दूसरी तरफ भाजपा ने भी दिल्ली में चार उम्मीदवार 6 दिन बाद घोषित किए। दरअसल राजनीतिक पार्टियां अब बड़े चेहरों की तलाश करती हैं।
राजनीति में बराबर की टक्कर का नेता ढूंढना चुनावी राजनीति का हिस्सा हो रहा है, लेकिन ताजा हालात यह हैं कि पार्टियों के पास मजबूत नीतियां व एजेंडा नहीं है। राजनीतिक पार्टियों के लिए वोटर को प्रभावित करने की अपेक्षा वोटरों को बुद्धू बनाने की ज्यादा कोशिश की जाती है। विभिन्न पार्टियां एक दूसरे में बड़ी चतुराई से कमियां निकालती हैं। जो पार्टी किसी पार्टी की ज्यादा से ज्यादा निंदा करने में सफल हो गई समझो उनकी हवा बन गई। राजनीति में सच्चाई, स्पष्टत:, लोगों के प्रति वचनवद्धता रही है। यहां अब वोटर को और ज्यादा जागरूक होने की आवश्यकता है, कि वह पार्टियों के स्टार प्रचारकों के भाषणों में न आकर पार्टी और उम्मीदवार की वास्तविकता को समझें।
अब सही समय है कि वोटर को जागरूक होना पड़ेगा। न गरीबी खत्म हुई है, न भ्रष्टाचार खत्म हुआ है, न आतंकवाद, न किसी के खाते में 15 लाख रुपए आए, न किसानों की दशा सुधरी, बेरोजगारी का हाल भी ज्यों का त्यों है। फिर भी मुख्य पार्टियां देश व देशवासियों के जीवन सुधार व विकास का श्रेय लेना चाहती हैं। यदि किसी पार्टी के पास चुनावी मुद्दे मजबूत होते हैं तब उन्हें फिल्मी स्टारों की मिन्नतें करने की जरूरत नहीं रहती। केवल जीत के लिए चुनाव लड़ना राजनीति नहीं बल्कि लोगों को आवश्यक सुविधाएं देकर लोगों के दिल जीतना ही राजनीति है। पार्टियों की धूर्तता से बचाव के लिए वोटर को जागरूक होना चाहिए।
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