हठी राजा विक्रम पेड़ के पास लौट आया और पेड़ से लाश उतारकर हमेशा की तरह कन्धे पर डालकर चुपचाप श्मशान की ओर चलने लगा। तब लाश में घुसे हुए बैताल ने कहा, ‘राजन, तुम यह बेकार का श्रम कर रहे हो, इससे तुम्हें कोई फायदा होने वाला नहीं है, जैसा कि एक नेताजी को हुआ था। इसके लिए मैं तुम्हें परसादीलाल नेताजी की कहानी सुनाता हूँ। श्रम को भुलाने के लिए सुनो।’ बैताल यों कहने लगा, ‘प्राचीन काल में भारत नामक देश के किसी राज्य में एक नेता टाइप आदमी रहा करता था, जिसका नाम परसादीलाल था। वह क्या काम करता था, यह खुद उसे पता नहीं था, लेकिन वह क्षेत्र में ‘नेताजी’ नाम से मशहूर था।
वह किस राजनैतिक पार्टी का समर्थक था, यह भी कोई नहीं जानता था, लेकिन क्षेत्र में होने वाली हर राजनैतिक गतिविधि में वह मौजूद रहता था और झकाझक सफेद कपड़ों में बगुला भगत बना हुआ अपनी उपस्थिति का अहसास कराता था। सभी पार्टियाँ यही समझती थीं कि वह उन्हीं की पार्टी का समर्थक है। एक बार उस राज्य में विधानसभा के चुनाव घोषित हुए। परसादीलाल ने कई पार्टियों से चुनावी टिकट पाने की कोशिश की, परन्तु कोई भी उसे टिकट देने को राजी नहीं हुआ और सबने आगामी नगरपालिका चुनावों में उसका ध्यान रखने का आश्वासन दिया।
परन्तु परसादीलाल ऐसे आश्वासनों की असलियत जानता था, इसलिए उसने किसी पर भी विश्वास नहीं किया। जब सभी पार्टियों ने अपने उम्मीदवार घोषित कर दिये और नामांकन पर्चा भरने में केवल दो दिन रह गये, तो परसादीलाल निर्दलीय खड़ा हो गया। वह अपना चुनाव प्रचार भी करने लगा। इसके कुछ दिन बाद सब यह देखकर दंग रह गये कि वोट पड़ने के तीन-चार दिन पहले ही परसादीलाल ने बैठ जाने की घोषणा कर दी और वास्तव में चुनाव प्रचार बन्द करके घर पर बैठ गया।’
यह कहानी सुनाकर बैताल ने कहा, ‘राजन, परसादीलाल निर्दलीय खड़ा क्यों हुआ और फिर वोट पड़ने से कुछ दिन पहले ही क्यों बैठ गया? यदि तुम इन सवालों के जबाब जानते हुए भी न दोगे, तो तुम्हारा सिर टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा।’ राजा विक्रम ने कहा, ‘परसादीलाल वास्तव में वोटकटवा था। परचा भरने से पहले वह बड़ी पार्टियों के सभी उम्मीदवारों से अकेले में मिला और उनसे कहा कि मेरी बिरादरी-मौहल्ले का वोट आपकी विरोधी पार्टी को चला जायेगा, क्योंकि आपने मुझे टिकट नहीं दिया है।
अगर आप इस वोट को विरोधी पक्ष में जाने से बचाना चाहते हैं, तो मुझे निर्दलीय चुनाव लड़ने में सहायता कीजिए। इस पर उन उम्मीदवारों ने अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार उसको कुछ पैसा दे दिया, ताकि वह चुनाव लड़ सके। इस तरह कुछ पार्टियों से पैसा लेकर परसादीलाल चुनाव में निर्दलीय खड़ा हो गया। जब दूसरी पार्टियों ने देखा कि परसादीलाल उनकी ही पार्टी का वोट काटने को खड़ा हो गया है, तो उन्होंने भी उसे कुछ पैसा देकर बैठा दिया। इस प्रकार परसादीलाल पर्याप्त पैसा लेकर बैठ गया।’ राजा के इस प्रकार मौन भंग करते ही बैताल लाश के साथ उसके हाथ से छूटकर उड़ गया और फिर से पेड़ पर उल्टा जा लटका।
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