आजादी के बाद से ही मरुस्थलीय क्षेत्र राजस्थान पेयजल के संकट से जूझता रहा है। पहले लोग कुंए, तालाब और बावड़ियों के पानी पर निर्भर थे। आबादी बढ़ने के साथ पानी की मांग भी बढ़ने लगी। जलप्रदाय की अनेक योजनाएं बनी मगर पानी का संकट कम होने के बजाय बढ़ता ही गया। परम्परागत श्रोत सूख गए और जल प्रदाय योजनाओं के नए केंद्र बनने शुरू हुए। हर साल करोड़ों अरबों की राशि इन कार्यों पर खर्च होने के बाद भी प्रदेश में पेयजल की किल्लत से हम जूझ रहे हैं। जल ही जीवन है। हम भोजन के बिना एक महीने से ज्यादा जीवित रह सकते हैं, लेकिन जल के बिना एक सप्ताह से अधिक जीवित नहीं रह सकते।
जल की उपलब्धता को लेकर वर्तमान में भारत ही नहीं अपितु समूचा विश्व चिन्तित है। मानव का अस्तित्व जल पर निर्भर करता है। पृथ्वी पर कुल जल का अढ़ाई प्रतिशत भाग ही पीने के योग्य है। इनमें से 89 प्रतिशत पानी कृषि कार्यों एवं 6 प्रतिशत पानी उद्योग कार्यों पर खर्च हो जाता है। शेष 5 प्रतिशत पानी ही पेयजल पर खर्च होता है। यही जल हमारी जिन्दगानी को संवारता है। एक रपट में बताया गया है कि पृथ्वी के जलमण्डल का 97.5 प्रतिशत भाग समुद्रों में खारे जल के रूप में है और केवल 2.4 प्रतिशत ही मीठा पानी है। राजस्थान में भीषण गर्मी और आंधी तूफान ने आमजन के होश उड़ा दिए हैं। गर्मी शुरू होते ही सूर्य की किरणें आग उगलने लगी हैं। धरती का वातावरण गर्म हो उठता है। हवाएं भी गर्म होकर अपना रौद्र रूप दिखाने लगती हैं। बरसात कम होने से गर्मी जल्दी आ गई।
राजस्थान में गर्मियों में स्थानीय चक्रवात के कारण जो धूल भरे बवंडर बनते हैं उन्हें भभुल्या कहा जाता है। प्रदेश के कई जिले इस समय भभुल्या की चपेट में है। गर्मी और पानी का चोली दामन का साथ है। गर्मी अपने साथ पानी संकट भी लेकर आयी है। दोनों आपदाओं ने मिलकर लोगों का जीना हराम कर दिया है। जब तक प्रदेश में मानसून मेहरबान नहीं होंगे तब तक आम आदमी की मुश्किलें कम नहीं होंगी। राजस्थान में गत मानसून में औसत से कम बारिश ने प्रदेश में पेयजल संकट की स्थिति खड़ी कर दी है। सबसे बुरी स्थिति राजधानी जयपुर की दिख रही है। यहा जलापूर्ति के मुख्य स्रोत बीसलपुर बांध से पानी की सप्लाई बंद किए जाने की तैयारी की जा रही है, क्योंकि इस बार बांध में बहुत कम पानी आ पाया है। हालात से निपटने के लिए विभाग ने कार्ययोजना भी तैयार की है।
शहरों में बोरिंग खोदे जा रहे हंै ताकि किसी भी स्थिति का मुकाबला किया जा सके। गर्मी के रौद्र रूप धारण करते ही प्रदेश में एक बार फिर पेयजल संकट खड़ा हो गया है। एक तो भीषण गर्मी ऊपर से पानी की बेरहम मार ने हमारे सामने दुगुना संकट उपस्थित कर दिया है। मानव के साथ पशु धन भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति शहरों से अधिक गंभीर है जहाँ कई कई किलोमीटर दूर से पानी ढ़ोया जा रहा है। नीति आयोग की मानें तो राजस्थान में महज 44 फीसदी गांवों में राज्य सरकार पेयजल की आपूर्ति कर पा रही है। आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान पेयजल आपूर्ति स्तर के मामले में पीछे है और सिर्फ 44 प्रतिशत ग्रामीण बस्तियों में ही पूरी तरह से जलापूर्ति हो रही है। राजस्थान में मानसून के दौरान औसतन 508 मिमी बारिश होती है, लेकिन पिछली बार 497 मिमी बारिश दर्ज की गई यानी औसत से कम बारिश हुई। राज्य के सात में से पांच सम्भाग जयपुर, अजमेर, उदयपुर, बीकानेर और जोधपुर में सामान्य से कम बारिश हुई। जोधपुर में सामान्य के मुकाबले आधी बारिश भी नहीं हुई। इसी के चलते बांधों और तालाबों में भी पानी की आवक कम हुई।
बारिश कम होने के कारण राजस्थान के कुल 831 छोटे बडेÞ बांधों और तालाबों में से सिर्फ 123 ही पूरे भर पाए है, जबकि 385 आंशिक भरे हुए,वहीं 323 पूरी तरह खाली हैं। इस बार पेयजल संकट के मामले मे सबसे बुरी स्थिति जयपुर की होती दिख रही है। जयपुर राजस्थान की राजधानी है जहाँ प्रतिदिन प्रदेश के विभिन्न स्थानों से हजारों लोग मजदूरी सहित विभिन्न कामों से जयपुर आते है। जयपुर महानगर की 40 लाख से ज्यादा आबादी के लिए पेयजल का एकमात्र स्रोत टोंक जिले में स्थित बीसलपुर बांध है। इस बांध ने कम भराई के कारण इस बार धोखा दे दिया है जिसका खामियाजा हमें भोगना पड़ रहा है।
गर्मी में पारा अभी से 45 डिग्री पार हो गया है। पानी की अधिक जरुरत महसूस की जा रही है कूलरों को भी पानी चाहिए ,पानी कहाँ से आएगा यह यक्ष प्रश्न हमारे सामने आ खड़ा हुआ है जिसका समाधान फिलहाल दिखाई नहीं दे रहा है। जब तक मानसून की बारिश नहीं होगी तब तक गर्मी के साथ पानी भी हमारी जिंदगानी को कष्ट देता रहेगा।सरकार को जनता में जागरूकता लाने के लिए विशेष प्रबन्ध और उपाय करने होंगे। आम आदमी को जल संरक्षण एवं समझाइश के माध्यम से पानी की बचत का सन्देश देना होगा। वर्षा की अनियमितता और भूजल दोहन के कारण भी पेयजल संकट का सामना करना पड़ रहा है। आवश्यकता इस बात की है कि हम जल के महत्व को समझें और एक-एक बूंद पानी का संरक्षण करें तभी लोगों की प्यास बुझाई जा सकेगी।
बाल मुकुन्द ओझा
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