यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और प्रशांत भूषण ने गोपनीय दस्तावेजों के आधार पर पुनर्विचार याचिकाएं लगाई थीं
नई दिल्ली। राफेल डील मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिकाओं पर मोदी सरकार को झटका लगा है। शीर्ष अदालत ने बुधवार को अपने फैसले में कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता द्वारा गोपनीय दस्तावेजों की फोटोकापी के आधार पर जो पुनर्विचार याचिकाएं लगाई गई हैं उन पर सुनवाई होगी। केंद्र ने कहा था कि विशेषाधिकार वाले गोपनीय दस्तावेजों को पुनर्विचार याचिका का आधार बनाना भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 123 के तहत सबूत नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने इस आपत्ति पर अपना फैसला 14 मार्च की सुनवाई के बाद सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने 14 दिसंबर 2018 के फैसले में राफेल डील को तय प्रक्रिया के तहत होना बताया था। अदालत ने उस वक्त डील को चुनौती देने वाली सभी याचिकाएं खारिज कर दी थीं। पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने डील के दस्तावेजों के आधार पर इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिकाएं दायर की थीं। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि याचिकाकर्ताओं ने मूल दस्तावेजों की फोटकॉपी का इस्तेमाल किया है।
केंद्र की दलील थी- दस्तावेज एक्ट के तहत सुरक्षित, आरटीआई के दायरे से बाहर
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच ने कहा था- जब हम केंद्र की आरंभिक आपत्ति पर फैसला कर लेंगे, तभी हम पुनर्विचार याचिकाओं के दूसरे पहलुओं पर विचार करेंगे। स्पष्ट कर दें कि हम केवल तभी दूसरी जानकारियों पर जाएंगे, जब हम केंद्र की आपत्ति को खारिज कर दें। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने दलील दी थी कि कोई भी इन दस्तावेजों को बिना संबंधित विभाग की इजाजत के अदालत में पेश नहीं कर सकता। यह दस्तावेज ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के तहत सुरक्षित रखे गए हैं और सेक्शन 8(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार के दायरे से भी बाहर हैं।
भूषण ने केंद्र की दलील पर आपत्ति जताई थी
पुनर्विचार याचिका के पक्ष में भूषण ने दलील दी थी- केंद्र की आपत्ति के संबंध में दलील बेहद अपुष्ट और दुर्भावनापूर्ण है। सरकार ऐसे दस्तावेजों पर विशेषाधिकार का दावा नहीं कर सकती है, जो पहले से ही प्रकाशित हो चुके हों और सामने आ चुके हों। धारा 123 के तहत केवल वही दस्तावेज सुरक्षित माने जाते हैं, जिनका प्रकाशन ना किया गया हो।
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