मनोहर पर्रिकर के निधन के बाद तेजी से गोवा के राजनीतिक घटनाक्रम में बदलाव हुआ। इसके बाद बीजेपी ने गोवा विधान सभा अध्यक्ष प्रमोद सावंत को पर्रिकर का उत्तराधिकारी चुना। प्रमोद सावंत का शपथ ग्रहण समारोह सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहा। सोमवार को दिन भर चली गहमागहमी के बाद सावंत के नाम पर मुहर लगी। हालांकि उनके नाम पर सहमति बनाने में बीजेपी आलाकमान और खासकर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को काफी मेहनत करनी पड़ी। रात्रि 1:50 बजे प्रमोद सावंत को राज्यपाल मृदुला सिंह ने पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। प्रमोद सावंत की सरकार में सहयोगी महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के सुधीन धवलीकर और गोवा फॉरवर्ड ब्लॉक पार्टी के विजय सरदेसाई ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
सोमवार को दिनभर बीजेपी अपने सहयोगियों को मनाती रही। पहले कहा गया कि रात 9 बजे शपथ ग्रहण समारोह होगा, फिर कहा गया कि ये समारोह रात 11 बजे होगा। इसके बाद पौने दो बजे अर्द्ध रात्रि में शपथ ग्रहण हुआ। इस तरह कहा जा सकता है कि काफी मशक्कत के बाद और आखिरी समय करीब 8 घंटे की मैराथन बैठकों के बाथ बीजेपी किसी तरह अपने राज्य को बचाने में कामयाब रही। स्थिति कितनी जटिल थी, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने सोमवार की शाम को कहा कि गोवा में अगले मुख्यमंत्री को लेकर भाजपा और उसके सहयोगी पार्टियों के बीच सहमति नहीं बन पाई है, जबकि रविवार देर रात से बैठकों का दौर लगातार जारी था।
दरअसल मनोहर पर्रिकर के निधन की खबर आते ही गोवा में सरकार बनाने की जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को दी गई थी। पर्रिकर के निधन की खबर आते ही गडकरी 17 मार्च देर रात गोवा पहुँच गए थे। वहाँ पहुँचते ही गडकरी ने सबसे पहले अपने सहयोगी दल महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी(एमजीपी) और गोवा फॉरवर्ड ब्लॉक पार्टी और तीन अन्य निर्दलीयों से संपर्क कर वार्ता प्रारंभ कर दी। करीब 2 घंटे चली इस मुलाकात में नितिन गडकरी ने उनसे समर्थन माँगा। लेकिन 6 विधायकों का एक दल बना चुके विजय सरदेसाई को यह पता था कि सरकार का रिमोट कंट्रोल उनके पास है। बीजेपी पर दबाव बनाने के लिए विजय सरदेसाई का साथ एमजीपी के सुधीन धवलीकर ने भी दिया। दोनों ने पहले तो बीजेपी की तरफ से दिए गए श्रीपाद नाइक के नाम को नामंजूर किया और बीजेपी के सामने विजय सरदेसाई को ही मुख्यमंत्री पद देने की माँग कर दी। लेकिन यह माँग बीजेपी को मंजूर नहीं थी। वह भी जानते थे कि बीजेपी उनके उस प्रस्ताव को नहीं मानेगी, लेकिन बीजेपी पर दबाव बनाकर ज्यादा से ज्यादा लाभ लेने के लिए उनकी एक महत्वपूर्ण चाल थी। इस संपूर्ण मामले को गहराई से समझने के लिए सबसे पहले गोवा विधानसभा की वर्तमान स्थिति को समझना आवश्यक है।
गोवा विधानसभा में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी: इस समय कांग्रेस 14 विधायकों के साथ राज्य में सबसे बड़ी पार्टी है। 40 सदस्यों वाली विधानसभा में भाजपा के 12 विधायक हैं। भाजपा विधायक फ्रांसिस डिसूजा के निधन तथा रविवार को पर्रिकर के निधन और पिछले वर्ष कांग्रेस के दो विधायकों सुभाष शिरोडकर तथा दयानंद सोप्ते के इस्तीफे के कारण विधानसभा की क्षमता घटकर अब 36 हो गई। इस तरह गोवा में सरकार बनाने के लिए जादुई आंकड़ा 19 है। स्पष्ट है कि कांग्रेस इस आंकड़े से 5 अंकों से दूर तथा बीजेपी 7 अंकों से दूर थ।
आखिर मध्य रात्रि में शपथ ग्रहण क्यों?: गोवा में कांग्रेस चुनाव में 16 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। लेकिन पिछले वर्ष ही कांग्रेस की क्षमता को कमजोर करने के लिए बीजेपी ने प्रलोभन देकर कांग्रेस के दो विधायकों का त्यागपत्र करा दिया था, जिससे वर्तमान में कांग्रेस के पास केवल 14 विधायक हैं। गोवा कांग्रेस के सभी विधायकों ने सोमवार को राज्यपाल मृदुला सिंहा से मुलाकात की और तटीय राज्य में सरकार बनाने का दावा पेश किया। विपक्ष के नेता चन्द्रकांत कावलेकर के नेतृत्व में सभी 14 कांग्रेसी विधायक राजभवन गए और सिंहा को यह कहते हुए एक पत्र सौंपा कि उनकी विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी है और उन्हें सरकार बनाने की अनुमति दी जानी चाहिए। स्पष्ट है कि कांग्रेस के इस दावे के कारण बीजेपी खेमे में डर था कि अगर वे जल्द सहयोगियों से वार्ता कर सरकार नहीं बनाते हैं, तो अंतत: कांग्रेस सरकार बना सकती है। यही कारण है कि बीजेपी ने मध्य रात्रि में ही शपथ ग्रहण करा दी।
गडकरी की चेतावनी के बाद कमजोर पड़ गए गठबंधन सहयोगियों के सुर: गडकरी लगातार विजय सरदेसाई और दवलीकर को मनाने की कोशिश करते रहे। लेकिन दोनों ने बीजेपी के सामने बड़ी माँग रखते गए। नाराज गडकरी ने सोमवार दोपहर को हुई बैठक में सीधे कह दिया कि अगर वे लोग सहमति नहीं बनाते हैं, तो बीजेपी हाउस निलंबित करने या डिजॉल्व करने से नहीं कतराएगी। गडकरी की चेतावनी के बाद दोनों पार्टियों के सुर कमजोर पड़ गए। लेकिन बीजेपी के सामने नया प्रस्ताव रखने के लिए सोमवार दोपहर को महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी और गोवा फॉरवर्ड पार्टी के बीच पुन: बैठक हुई। इस बैठक में प्रमोद सावंत के नाम पर सहमति बनी, लेकिन महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के सुधीन धवलीकर और गोवा फॉरवर्ड पार्टी के विजय सरदेसाई ने उप मुख्यमंत्री पद की मांग कर दी। साथ में गृहमंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण विभाग भी मांग लिए।
एंटी डिफेक्शन लॉ(दल-बदल कानून) और गोवा: 52 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1985 में प्रावधान था कि यदि किसी राजनीतिक दल के एक तिहाई सदस्य दल-बदल करते हैं, तो उस समूह को अलग दल का दर्जा मिलेगा और उनकी सदस्यता समाप्त नहीं होगी। लेकिन इसके बावजूद दल-बदल की घटनाओं पर अंकुश नहीं लगा। फलत: 91 वें संविधान संशोधन 2003 द्वारा 10 वीं अनुसूची में उपरोक्त प्रावधानों को और भी बहुत कठोर कर दिया गया। इसके अंतर्गत अब केवल किसी राजनीतिक दल के दो तिहाई सदस्य किसी दूसरे दल में विलय करा सकते हैं।
इसका आशय है कि जहाँ पहले कम से कम एक तिहाई सदस्य अलग होकर दल बना सकते थे, वहीं अब ऐसा संभव नहीं है। इस तरह 91 वें संविधान संशोधन में दल छोड़ने वालों को ‘‘टूट या २स्र’’’ के आधार पर अब कोई संरक्षण प्राप्त नहीं है। यही कारण है कि अब राजनीतिक दल विलय या इस्तीफे जैसे माध्यमों द्वारा दल बदल को पराश्रय देते हैं। यही कारण है कि गोवा विधानसभा में कांग्रेस की स्थिति कमजोर करने के लिए दो विधायकों से विगत में बीजेपी ने इस्तीफा दिलवाया था। उदाहरण के लिए झारखंड में झारखंड विकास मोर्चा के 8 में से भी विधायकों का बीजेपी में विलय करा लिया था। इससे अल्पमत वाली बीजेपी की झारखंड सरकार बहुमत में भी आ गई थी।
बीजेपी ने ऐसा करके गोवा फोरवर्ड पार्टी पर काफी दबाव बनाया। साथ ही विजय सरदेसाई गुट के निर्दलीय विधायक प्रसाद गांवकर से भी मुलाकात की। बीजेपी को सरकार बनानी थी और उनके सहयोगियों को चुनाव नहीं चाहिए थे। ऐसे में बीजेपी ने दोनों को उपमुख्यमंत्री पद देकर महत्वपूर्ण विभाग अपने पास रख लिया और यह गठबंधन तय हुआ। वैसे सुप्रीम कोर्ट ने 1994 के महत्वपूर्ण एस आर बोम्मई केस में स्पष्ट रुप से कहा था कि विधानसभा भंग करने से पहले राज्यपाल सरकार बनाने की सभी संभावनाओं को देखकर ही निर्णय लेंगे।
निष्कर्ष: स्पष्ट है कि मध्यरात्रि में शपथ ग्रहण से बीजेपी गोवा में अपनी सत्ता बचाने में सफल रही। लेकिन इस छोटे से खूबसूरत तटीय राज्य में जिस तरह से सरकार का निर्माण हुआ, उससे एंटी डिफेक्शन लॉ और राज्यपाल की भूमिका पर पुन: बहस प्रारंभ हो गई है। आखिर कर्नाटक में राज्यपाल बीजेपी को सबसे बड़े राजनीतिक दल के रूप में आमंत्रित करते हैं, लेकिन वहीं पड़ोसी गोवा में मापदंड बदल जाते हैं।
ऐसे में राज्यपाल द्वारा गोवा में मध्यरात्रि शपथ ग्रहण कराने से राज्यपाल पद की गरिमा पुन: धूमिल हुई है। साथ ही राजनीतिक दल लगातार दल-बदल कानून के कमियों का अपने पक्ष में लगातार प्रयोग कर रहे हैं। इसके लिए आवश्यक है कि दल-बदल कानून को और भी कठोर किया जाए। इसमें ‘दो तिहाई’ वाले प्रावधान को भी हटाने की जरूरत है। वास्तव में अब समय आ गया है कि किसी भी प्रकार के दल बदल की असंवैधानिक घोषित किया जाएं। राज्यपाल को मध्य रात्रि में अत्यधिक हड़बड़ी वाले शपथ ग्रहण जैसे निर्णयों से दूर रहकर अपने पद की गरिमा को बनाएँ रखना चाहिए। अंतत: राजनीति में नैतिकता के लगातार पतन से राजनीतिक दलों की भी छवि धूमिल हो रही है। इसलिए उन्हें भी राजनीति में न्यूनतम नैतिकता पालन अवश्य करना चाहिए।
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