जैसे-जैसे लोक सभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं उसी तरह राजनीति का स्तर गिरता जा रहा है। कांग्रेस व भाजपा के बीच लड़ाई मुद्दों की न होकर मोदी-गांधी परिवार तक सीमित होकर रह गई है। कांग्रेसी नेता प्रधानमंत्री के लिए ‘चौकीदार चोर’ जैसे नारे लगा रहे हैं तो भाजपा इसका जवाब देने के लिए चौकीदार शब्दों का प्रयोग कर लोकप्रियता लूटने के लिए जोर लगा रही है। सोशल मीडिया पर इस मुहिम को खूब टेंÑड किया जा रहा है। भाजपा नेता गांधी परिवार को जमानती बताकर मीडिया में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहा है। दोनों पार्टियों की इस कशमकश मेें आम आदमी से सबंधित मुद्दे गायब होते नजर आ रहे हैं। यदि मुद्दों का जिक्र होता भी है तो तर्क, तथ्यों की बजाय चैनलों पर बहस कर असल उद्देश्यों व मुद्दों से ध्यान भटका दिया जाता है।
भाषा भी घटिया स्तर की इस्तेमाल की जा रही है। अलोचना की बजाए निंदा पर जोर दिया जा रहा है। इन हालातों को देखकर प्रतीत हो रहा है कि राजनैतिक पार्टियों का उद्देश्य आम आदमी की समस्याओं को हल करना नहीं बल्कि केवल चुनाव जीतना, सरकार बनाना व अपने विरोधियों को टिकाने लगाना है। चुनावी मैनीफेस्टो में मुद्दों की बात होती है उसका जिक्र केवल एक दिन होता है। अरबों रुपए खर्च कर की जा रही रैलियों में चटपटे व चुटकुलेनुमा भाषण सुनने को मिलते हैं। राजनैतिक आरोप-प्रत्यारोप केवल राफेल, अगस्ता वेस्टलैंड के आसपास घूम रही है। देश की बदहाली केवल भ्रष्टाचार के कारण ही नहीं बल्कि बेरोजगारी, गरीबी, लूटपाट, महिलाओं पर अत्याचार, आत्महत्याएं, प्रदूषण, सूख रहे जल स्त्रोत, महंगी हो रही स्वास्थ्य सेवाओं के कारण भी है।
आर्थिक समस्याओं के करके मध्यम वर्ग में बच्चों सहित आत्महत्याएं करने का रुझान बढ़ रहा है। किसानों के अलावा व्यापारी व आढ़तिये भी आत्महत्याएं कर रहे हैं। दरअसल देश की अर्थव्यवस्था को जनहितैषी दिखाया जा रहा है लेकिन इसकी वास्तविकता को छुपाया जा रहा है। निजी सेक्टरों ने जमकर तरक्की की दूसरे तरफ आम आदमी की मुश्किलें दिन-ब-दिन बढ़ी ही हैं। इन समस्याओं का कहीं जिक्र नहीं हो रहा।
राजनैतिक पार्टियों के लिए आम आदमी सत्ता प्राप्ति के लिए एक हथियार (वोट) बनकर रह गया है। राजनैतिक पार्टियां निजी हमलों के बहाने बुनियादी मुद्दों से भागने की राजनीति खेल रही हैं केवल आरोप-प्रत्यारोप से सुधार नहीं होना। आंकड़ों, तथ्यों, सबूतों की बात किसी भी पार्टी का नेता नहीं कर रहा। लोकतंत्र लोगों की समस्याओं से सबंधित है लेकिन सत्ता के लोभ ने इसे तमाशा बना दिया है। एक दूसरे की निंदा ने जनता का ध्यान भी मुद्दों से भटका दिया है, जो जनता के साथ बहुत बड़ा धोखा है। राजनेता अपने जमीर की आवाज सुनें और मुद्दों के प्रति अपनी वचनबद्धता स्पष्ट करें।
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