देश के हरेक घर को बिजली के जरिए रोशन करने का स्वप्न अब हकीकत का स्वरुप लेता दिख रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक फिलहाल देश के 99.92 फीसद परिवारों को बिजली की अत्याधुनिक सुविधाओं से जोड़ा जा चुका है। अब केवल नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ के 19, 836 परिवारों को ही विद्युतीकरण प्रक्रिया से जोड़ा जाना शेष है, जिन्हें इस महीने के अंत तक विद्युतीकरण प्रक्रिया से पूर्णत: जोड़ दिए जाने की उम्मीद है। 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा देश के करीबन ढाई करोड़ घरों को विद्युतीकरण के लिए चिन्हित किया गया था। खास बात यह है कि सौभाग्य योजना की शुरूआत के बाद केवल सत्रह महीने में ही बिजली से महरुम ढाई करोड़ घरों को कनेक्शन मुहैया कराने में सरकार ने कामयाबी हासिल की है। इधर, जिन जिलों में एक भी घर बिना विद्युत कनेक्शन के नहीं हैं, उन्हें ‘सौभाग्य’ घोषित किया जा रहा है। गौरतलब यह है कि देश में सौ फीसद विद्युतीकरण के सपने को साकार करने में मौजूदा केंद्र सरकार द्वारा संचालित दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना और सौभाग्य योजना की महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय भूमिका रही है।
सरकार ने राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के स्थान पर 33 हजार करोड़ रुपये के भारी-भरकम निवेश के साथ 20 नवंबर, 2014 को दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना आरंभ की थी। इसके तीन वर्ष बाद 25 सितंबर, 2017 को महत्वाकांक्षी सौभाग्य योजना (प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना) की शुरूआत की गई, जिसका लक्ष्य 31 मार्च, 2019 तक बिजली से वंचित देश के सभी घरों को रोशन करना था। इस योजना के तहत सभी इच्छुक परिवार तक बिजली पहुँचाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। इसके लिए 2011 की सामाजिक-आर्थिक जनगणना को आधार बनाया गया और इसमें सूचीबद्ध परिवारों को इस योजना के तहत मुफ्त बिजली कनेक्शन मुहैया कराया जाने लगा। जिनका नाम जनगणना में नहीं है, उन्हें भी सिर्फ 500 रुपये के मामूली से खर्च के साथ बिजली के कनेक्शन दिए जा रहे हैं। वित्तीय बोझ से लाभार्थियों को राहत देने के लिए इस राशि का भुगतान दस किस्तों में किए जाने की व्यवस्था भी की गई है। इस योजना में सरकार 16 हजार करोड़ का निवेश कर रही है। हालांकि इस योजना का प्रारंभिक लक्ष्य 2018 के अंत तक सौ फीसद विद्युतीकरण का लक्ष्य पूरा करना था, लेकिन राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कुछ घर छूट जाने के कारण यह लक्ष्य निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरा नहीं हो सका था, जो अब मार्च के अंत तक पूरा हो जाएगा।
बिजली आधुनिक मानव जीवन की बुनियादी आवश्यकता और यह हरेक घर की बहुआयामी जरुरतों को एक सहायक के तौर पर पूरा करती है। बिजली के बिना आधुनिक जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। बिजली की महत्ता की पुष्टि इस बात से ही हो जाती है कि किसी दिन बिजली न आने से हम कितने बेचैन हो उठते हैं। बिजली की वजह से देश में सामाजिक बदलाव भी बड़ी तेजी से हुआ है। विशेषकर ग्रामीण इलाकों में बिजली आने से लोगों के जीवन स्तर में तेजी से बदलाव आया है। बिजली सुविधा के विस्तार से देश में शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति में लगातार सुधार होता दिखा है। दूसरी तरफ बिजली के प्रयोग से प्रकाश और ऊर्जा के लिए ऊर्जा के परंपरागत स्रोतों पर निर्भरता घटती है, जिससे पर्यावरण की सुरक्षा होती है। ऊर्जा के परंपरागत या गैर-नवीकरणीय स्रोतों के इस्तेमाल से जो जहरीला धुआं पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है, वह बात बिजली के प्रयोग के साथ नहीं दिखती है। चूंकि, बिजली हर परिवार की जरुरत है। ऐसे में इसके अभाव का असर वंचित परिवारों में शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार की स्थिति पर भी पड़ता है।
हालांकि, देश के हरेक घर तक बिजली पहुँचना अपने आप में एक क्रांतिकारी परिवर्तन है। लेकिन, इसके साथ ही ऊर्जा के इस स्रोत के संरक्षण के लिए भी हमें तत्परता दिखानी होगी। यह सही है कि हम व्यक्तिगत तौर पर बिजली का उत्पादन नहीं कर सकते, लेकिन बिजली बचाकर भी हम इसके उत्पादन में अपना अहम योगदान दे सकते हैं। मौजूदा समय में जब देश ऊर्जा संकट से जूझ रहा है और विद्युतीकृत इलाकों में भी उपभोक्ताओं को बिजली की नियमित आंखमिचौली ने परेशान कर डाला है, तब ऊर्जा संरक्षण देश के प्रत्येक नागरिक के लिए एक अनिवार्य कर्तव्य बन जाना चाहिए। ब्रिटिश भौतिकविद् और लेखक सर ओलिवर जोसेफ लॉज कहते हैं कि ‘ऊर्जा का संरक्षण करने का मतलब जीवन का संरक्षण करना या कम से कम ऐसी चीजों का संरक्षण करना है, जिससे जीवन आगे बढ़ता है। ‘इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि ऊर्जा संसाधनों के साथ मानव समुदाय का अस्तित्व जुड़ा है।
अत: इसके संरक्षण के निमित्त हमें हरपल सचेत रहना चाहिए। आमतौर पर ऊर्जा का प्रयोग आधुनिक कृषि, औद्योगिक इकाइयों और दैनिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है। किसी देश की आर्थिक विकास को गति प्रदान करने में ऊर्जा संसाधन महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। वैश्वीकरण के इस युग में ऊर्जा संसाधनों के अत्यधिक दोहन से आज ऊर्जा संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है। इस संकट के तात्कालिक व दीर्घकालिक प्रभावों से विश्व के अधिकांश राष्ट्र दो-चार हो रहे हैं। इसलिए आज ऊर्जा संरक्षण पर बल दिया जा रहा है। दरअसल, प्राकृतिक प्रक्रिया के तहत हजारों-लाखों वर्षों में तैयार होने वाले ऊर्जा के परंपरागत स्रोतों पर आवश्यकता से अधिक निर्भरता से ऊर्जा संकट की यह स्थिति उत्पन्न हुई है।
चूंकि, ऊर्जा के ये संसाधन धरती पर सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं, इसलिए इसके अत्यधिक दोहन से ये समाप्ति के कगार पर हैं। मौजूदा समय की यह मांग भी है कि अब ऊर्जा के गैर-परंपरागत स्रोतों के इस्तेमाल पर अधिक जोर देना होगा। बहरहाल, अगर हम छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दें तो ऊर्जा के संरक्षण में बड़ी भूमिका साबित हो सकती है। जैसे, हम बिजली बचाकर भी इसके उत्पादन में अपना बहुमूल्य योगदान दे सकते हैं। यदि हरेक नागरिक अपने घर में अनावश्यक प्रयोग हो रहे बिजली के उपकरणों पर नियंत्रण रखता है, तो प्रतिदिन कई हजार मेगावाट बिजली बचाई जा सकती है।
इस बिजली का प्रयोग उन इलाकों में रोशनी के लिए किया जा सकता है, जो विद्युतीकरण योजना से जुड़े तो हैं, लेकिन बिजली की सप्लाई वहां बहुत कम समय के लिए होती है। साथ ही, इससे देश के अनेक हिस्सों में व्याप्त बिजली की आंखमिचौली की समस्या पर भी लगाम लग सकेगी। दूसरी ओर, घरों में रोशनी के लिए सौर ऊर्जा द्वारा संचालित बैटरी तथा एलईडी बल्बों का प्रयोग कई मायने में बेहतर हो सकता है। देखा जाए तो जलवायविक विविधता वाले भारत में ऊर्जा के गैर-परंपरागत स्रोतों के विकास की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन कमजोर अर्थव्यवस्था और दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव में देश में सौर, पवन, जल व भूतापीय ऊर्जा के नवीकरणीय साधनों का पर्याप्त विकास नहीं हो पाया है। अगर इनका समुचित विकास होता है तो ऊर्जा के गैर-नवीकरणीय स्रोतों पर दबाव निश्चित तौर पर कम होगा, जिससे हमारा पर्यावरण सेहतमंद रहेगा।
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