1952 से 2014 के बीच 18 चुनावों में 10 बार जीती है कांग्रेस
सच कहूँ/संजय मेहरा गुरुग्राम। गुरुग्राम लोकसभा सीट कभी गुरुग्राम तो कभी महेंद्रगढ़ के नाम से जानी गई। परिसीमन में (Congress) चाहे इस सीट का नाम बेशक बदला गया हो, लेकिन मतदाताओं का यहां से ज्यादातर झुकाव कांग्रेस की तरफ ही रहा है। इतिहास में झांकने पर पता चलता है कि यहां पर 1952 से 2014 के बीच 16 चुनावों में 10 बार कांग्रेस का ही कब्जा रहा है। अहीर और मेव मुस्लिम बाहुल्य गुरुग्राम लोकसभा सीट सबसे पहले गुड़गांव लोकसभा के नाम से ही अस्तित्व में आयी थी। 1952 में हुए पहली लोकसभा के चुनाव में यहां पर इंडियन नेशनल कांग्रेस (आईएनसी) की टिकट पर पंडित ठाकुर दास भार्गव ने चुनाव जीता था।
अगले यानी 1957 के चुनाव में उनकी जगह मुस्लिम नेता मौलाना अबुल कलाम आजाद को इंडियन नेशनल कांग्रेस ने उम्मीदवार (Congress) बनाया, जो कि विजयी रही। 1957 में ही हुए उप-चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी प्रकाशवीर शास्त्री ने यहां से जीत दर्ज की। 1962 के लोकसभा चुनाव में गुड़गांव लोकसभा सीट से राव गजराज सिंह को कांग्रेस ने टिकट देकर चुनाव मैदान में उतारा। वे भी इस सीट को जीतने में कामयाब रहे। 1967 में यहां से निर्दलीय प्रत्याशी अब्दुल घानी दर ने चुनाव जीता। इसके बाद 1971 के चुनाव में कांग्रेस मजबूत हुई और कांगे्रस के मुस्लिम प्रत्याशी तैय्यब हुसैन ने चुनाव जीता। सन 1952 से 1971 तक के पांच चुनावों में से चार बार कांगे्रस ने गुड़गांव लोकसभा से चुनाव जीता।
1971 के बाद गुरुग्राम से बनी महेद्रगढ़ सीट
सन 1971 में ही राव बीरेंद्र सिंह ने अपनी विशाल हरियाणा पार्टी की ओर से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। इन लोकसभा चुनावों में बाद गुडगांव लोकसभा सीट को महेंद्रगढ़ में मिला दिया गया। फिर 1977 में हुए आम चुनाव में महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से भारतीय लोकदल के प्रत्याशी मनोहर लाल ने बाजी मारी। 1980 में यहां से अहीरवाल के कदद्दावर नेता राव वीरेंद्र सिंह इंडियन नेशनल कांग्रेस (इंदिरा) पार्टी से चुनाव लड़े और जीत दर्ज की। 1984 के चुनाव में भी कांग्रेस ने राव बीरेंद्र सिंह को टिकट देकर दांव खेला और लगातार दूसरी बार बीरेंद्र सिंह सांसद बने। 1989 के चुनाव में राव बीरेंद्र सिंह ने जनता दल की टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। 1991 के चुनाव में राव बीरेंद्र स्ािंह की राजनीतिक जमीन खिसकी और यहां से कांग्रेस के प्रत्याशी कर्नल राव राम सिंह ने उन्हें पटखनी दी।
2009 में महेंद्रगढ़ से गुड़गांव लोस बनी
2009 का चुनाव भी उन्होंने कांग्रेस की टिकट पर दुबारा से चुनाव जीतकर संसद में प्रवेश किया। 2014 में मोदी लहर के चलते उन्होंने भांप लिया कि कांग्रेस की हालत अब खराब है और वे रिस्क न लेकर बीजेपी में जा पहुंचे। बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़कर वे अब लगातार तीसरी बार सांसद बने। अब 2019 के चुनाव में ऊंट किस करवट बैठेगा, यह समय के गर्भ में हैं।
1996 में अहीरवाल में खुला बीजेपी का खाता
जब सन 1996 का चुनाव हुआ तो बीजेपी ने यहां से बढ़त बनायी और चुनाव जीतकर पहली बार यहां से खाता खोला। कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए कर्नल राव राम सिंह ने ही यह चुनाव जीता था। 1998 में अहीरवाल के कद्दावर नेता राव बीरेंद्र सिंह के पुत्र राव इंद्रजीत सिंह ने पहली बार लोक सभा का चुनाव लड़ा। इससे पहले वे हरियाणा में विधानसभा का चुनाव लड़ते रहे हैं। इंद्रजीत सिंह चार बार हरियाणा में विधायक बन चुके हैं। एक बार वे राज्य मंत्री भी बनाए गए।
1998 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद 1999 में हुए आम चुनाव में राव इंद्रजीत सिंह को कारगिल शहीद सुखबीर सिंह यादव की पत्नी सुधा यादव ने पटखनी दी। 14वीं लोकसभा के चुनाव में 2004 में कांग्रेस की टिकट पर राव इंद्रजीत स्ािंह ने बीजेपी प्रत्याशी सुधा यादव को हराया। 2004 के बाद परिसीमन में यह सीट गुड़गांव लोकसभा कर दी गई। 2004 के चुनाव में जीत के बाद राव इंद्रजीत की राजनीतिक जमीन मजबूत होती चली गई।
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