विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर दुनियाभर में हर वर्ष 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। आज दुनिया में महिलाशक्ति हर क्षेत्र में अपनी ताकत का अहसास करवा रही है। भारत में देश के दो महत्वपूर्ण मंत्रालय रक्षा व विदेश विभाग महिलाओं के हवाले हैं जिसे निर्मला सीतारमण व सुषमा स्वराज बड़ी कुशलता से सम्भाल रही हैं। आज देश में महिला सैनिक लड़ाकू विमान उड़ा रही हैं। महिलाये पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर क्षेत्र में काम कर रही हैं।
आज की महिलाओं का काम केवल घर-गृहस्थी संभालने तक ही सीमित नहीं है, वे हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। व्यवसाय हो या परिवार महिलाओं ने साबित कर दिया है कि वे हर वह काम करके दिखा सकती हैं जो पुरुष समझते हैं कि वहां केवल उनका ही वर्चस्व,अधिकार है। जैसे जैसे महिलाओं को शिक्षा मिलती गयी उनकी समझ में वृद्धि होती गयी है। उनमें खुद को आत्मनिर्भर बनाने की सोच और इच्छा उत्पन्न हुई। शिक्षा मिल जाने से महिलाओं ने अपने पर विश्वास करना सीखा और घर के बाहर की दुनिया को जीत लेने का सपना बुन लिया जिसे उन्होने किसी हद तक पूरा भी कर लिया।
दुनिया में सबसे पहले अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आवाहन पर 28 फरवरी 1909 में यह दिवस मनाया गया। इसके बाद यह फरवरी के आखरी इतवार के दिन मनाया जाने लगा। 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन के सम्मेलन में इसे अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया। 1917 में रुस की महिलाओं ने महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिये हड़ताल पर जाने का फैसला किया। यह हड़ताल भी ऐतिहासिक थी। जार ने सत्ता छोड़ी अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिये उस दिन 8 मार्च थी। इसीलिये 8 मार्च महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। अब लगभग सभी विकसित व विकासशील देशों में महिला दिवस मनाया जाता है।
यह दिन महिलाओं को उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक तरक्की दिलाने व उन महिलाओं को याद करने का दिन है, जिन्होंने महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए अथक प्रयास किए। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी महिलाओं के समानाधिकार को बढ़ावा और सुरक्षा देने के लिए विश्वभर में कुछ नीतियां, कार्यक्रम और मापदंड निर्धारित किए हैं। भारत में भी महिला दिवस व्यापक रूप से मनाया जाने लगा है। महिला दिवस पर स्त्री की प्रेम, स्नेह व मातृत्व के साथ ही शक्ति सम्पन्न स्त्री की मूर्ति सामने आती है। इक्कीसवीं सदी की स्त्री ने स्वयं की शक्ति को पहचान लिया है और काफी हद तक अपने अधिकारों के लिए लड़ना सीख लिया है।
आज के समय में स्त्रियों ने सिद्ध किया है कि वे एक-दूसरे की दुश्मन नहीं सहयोगी हैं। कहने को तो इस दिन सम्पूर्ण विश्व की महिलाएं देश, जाति, भाषा, राजनीतिक, सांस्कृतिक भेदभाव से परे एकजुट होकर इस दिन को मनाती हैं। मगर हकीकत में यह सब बाते सरकारी कागजो तक ही सिमट कर रह जाती है। देश की अधिकांश महिलाओं को आज भी इस बात का पता नहीं है कि महिला दिवस कब आता है व इसका मतलब क्या होता है। हमारे देश की अधिकतर महिलायें तो अपने घर-परिवार में इतनी उलझी होती है कि उन्हे दुनियादारी से मतलब ही नहीं होता है। महिलाओं के लिए नियम-कायदे और कानून तो खूब बना दिये हैं किन्तु उन पर हिंसा और अत्याचार के आंकड़ों में अभी तक कोई कमी नहीं आई है।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 15 से 49 वर्ष की 70 फीसदी महिलाएं किसी न किसी रूप में कभी न कभी हिंसा का शिकार होती हैं। इनमें कामकाजी व गृहणियां भी शामिल हैं। देशभर में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के लगभग 1.5 लाख मामले सालाना दर्ज किए जाते हैं जबकि इसके कई गुणा दबकर ही रह जाते हैं। विवाहित महिलाओं के विरूद्ध की जाने वाली हिंसा के मामले में बिहार सबसे आगे है। दूसरे नम्बर पर राजस्थान एवं तीसरे स्थान पर मध्यप्रदेश है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े के अनुसार पति और सम्बंधियों द्वारा महिलाओं के प्रति की जाने वाली क्रूरता में वृद्धि हुई है। घरेलू हिंसा अधिनियम देश का पहला ऐसा कानून है, जो महिलाओं को उनके घर में सम्मानपूर्वक रहने का अधिकार सुनिश्चित करता है। इस कानून में महिलाओं को सिर्फ शारीरिक हिंसा से नहीं, बल्कि मानसिक, आर्थिक एवं यौन हिंसा से बचाव का अधिकार भी शामिल है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दोगुने से भी अधिक हुए हैं। पिछले दशक के आंकड़ों पर आधारित विश्लेषण के मुताबिक भारत में हर घंटे महिलाओं के खिलाफ अपराध के 26 मामले दर्ज होते है।
अब नारी को अपने अधिकारों एवं समाज में सम्मान पाने के लिए उस स्थान से उतारना होगा, जहां उसे पूजनीय कहकर बिठा दिया गया है। हमारे देश में महिलाओं की स्थिति अपेक्षाकृत अच्छी नहीं है, परन्तु दिशा सकारात्मक दिखाई दे रही है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे से देश में महिलाओं के प्रति सम्मान बढ़ने लगा है जो इस बात का अहसास करवाता है कि अब महिलाओं के प्रति समाज का नजरिया सकारात्मक होने लगा है।
रमेश सर्राफ धमोरा
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