भाजपा-शिवसेना की दोस्ती के निहितार्थ

BJP-Shiv Sena

पिछले साढ़े चार वर्षों से लगातार एक.दूसरे को पानी पी.पीकर कोसते रहे बरसों पुराने सहयोगी भाजपा और शिवसेना आखिरकार लोकसभा चुनाव के ऐलान से ठीक पहले एक-दूसरे के साथ आ ही गए। दरअसल आम चुनाव से पहले भाजपा के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है अपने सहयोगियों को अपने साथ बनाए रखना और शिवसेना के साथ चुनाव से पहले पुन: गठबंधन करने में सफल हुई भाजपा के लिए यह इस लिहाज से एक बड़ी सफलता मानी जानी चाहिए। महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं और समझौते के तहत भाजपा को 25 और शिवसेना को 23 सीटें मिली हैं जबकि 288 सदस्यीय विधानसभा के चुनाव में दोनों दल 140.140 सीटों पर चुनाव लड़ने को राजी हुए हैं जबकि 8 सीटें दूसरे सहयोगियों के लिए छोड़ी गई हैं। हालांकि शिवसेना की लंबे समय से मांग थी कि उसे अधिक सीटें दी जाएं और मुख्यमंत्री पद भी उसी की झोली में आए किन्तु भाजपा शिवसेना के दबाव के समक्ष न झुकते हुए भी गठबंधन करने में कामयाब रही।

पिछले लोकसभा चुनाव में शिवसेना ने केवल 20 सीटों पर चुनाव लड़ा था जबकि इस बार उसके खाते में 23 सीटें आई हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 24 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 23 सीटें जीती थी जबकि शिवसेना 22 सीटों पर लड़कर 18 सीटें जीतने में सफल हुई थी। वैसे पिछले काफी समय से शिवसेना जिस प्रकार एनडीए का अहम हिस्सा रहते हुए भी भाजपा के खिलाफ मुखर रही और बार-बार अपने तीखे तेवरों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा भाजपाध्यक्ष अमित शाह को भी आड़े हाथों लेती रहीए उससे राजनीतिक हलकों में कयास लगाए जाते रहे कि दोनों के रिश्तों में पैदा हो चुकी कड़वाहट को देखते हुए शायद अब दोनों का गठबंधन न हो पाए किन्तु राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं और यही भाजपा.शिवसेना द्वारा गठबंधन कर चुनावी मैदान में कूदने के मौजूदा फैसले से साबित भी हुआ है। दोनों दल 2014 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरे थे और भाजपा शिवसेना से 5 सीटें ज्यादा जीतने में सफल हुई थी। जिसके बाद भाजपा ने विधानसभा चुनाव में शिवसेना से ज्यादा सीटों की मांग की लेकिन शिवसेना ने इस मांग को ठुकराते हुए गठबंधन तोड़ना बेहतर समझा। तभी से दोनों के रिश्तों में खटास देखी जा रही थी और यह खटास किस कदर कड़वाहट में बदल रही थीए उसका अनुमान शिवसेना नेताओं के भाजपा के लिए समय-समय पर दिए गए बयानों से सहज ही लगाया जा सकता है।

गत वर्ष जनवरी माह में शिवसेना ने कहा था कि 2019 के लोकसभा और फिर विधानसभा चुनावों में वह भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ेगी लेकिन उसके बाद 11 अप्रैल 2018 को एक समारोह में शिवसेना सांसद संजय राउत के सवालों के जवाब में मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस ने स्पष्ट करते हुए कहा था कि शिवसेना ने भाजपा के साथ सौतन की तरह व्यवहार किया किन्तु 2019 के चुनाव में शिवसेना के समक्ष भाजपा के साथ हाथ मिलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। उससे एक ओर जहां भाजपा-शिवसेना के दरकते रिश्तों को लेकर नई बहस शुरू हो गई थीए वहीं काफी हद तक यह भी स्पष्ट हो गया था कि तमाम विरोधाभासों बयानों के बावजूद चुनावों से पहले दोनों दलों का गठबंधन तय है। शिवसेना महाराष्ट्र का एक ऐसा राजनीतिक दल है। जिसका गठन मुख्यत: मराठी तथा हिन्दुत्व विचारधारा को लेकर हुआ था और उसे मतदाताओं को ‘मराठी मानुष’ और ‘जय महाराष्ट्र’ के दायरे में समेटने में सफलता मिली। गैर मराठी लोगों के विरोध के चलते ही महाराष्ट्र में इस पार्टी का उदय बड़ी तेजी से हुआ।

जहां तक वर्तमान में महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना के वर्चस्व की बात है तो उसे महाराष्ट्र में एक बड़ी राजनीतिक ताकत के रूप में देखा जाता रहा है। पार्टी की पिछड़े वर्गों तथा मुम्बई और मराठवाड़ा क्षेत्र में आज भी काफी पकड़ है किन्तु इस तथ्य को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि उसके पास जो विशाल जनाधार पार्टी संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के समय था। वह उनके निधन के बाद सिकुड़ा है। प्रदेश में आज भी शिवसेना के समर्थक बड़ी तादाद में हैं किन्तु पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे बालासाहेब के जाने के बाद से ऐसा कोई करिश्मा नहीं कर पाए जिससे पार्टी से जुड़े लोगों में नए जोश नई उमंग और नए उत्साह का संचार हो सके बल्कि पार्टी से जुड़े अधिकांश लोग वही हौं। जो बालासाहेब के विचारों के प्रति निष्ठावान रहे हैं। हकीकत यही है कि आज पार्टी के पास बालासाहेब के कद का कोई नेता नहीं है। शिवसेना का जनाधार किस कदर सिकुड़ा है।

इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2014 से लेकर अब तक प्रदेश में जितने भी चुनाव हुए हैं। उनमें उसका प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा। पंचायत चुनाव हों या नगर पंचायत नगर परिषद् अथवा महानगरपालिका चुनाव हर कहीं शिवसेना से अधिक सफलता भाजपा को मिली। 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा की सहयोगी रही शिवसेना ने महज 6 माह बाद विधानसभा चुनाव में अकेले ताकत आजमाने का निर्णय लिया था किन्तु सिर्फ 63 सीटों पर सिमट गई थी जबकि 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा 122 सीटें पाने में सफल रही थी।

चुनाव के बाद भाजपा ने शिवसेना के सहयोग से ही प्रदेश में सरकार बनाई, जिसमें आज भी शिवसेना के 5 कैबिनेट तथा 12 राज्यमंत्री हैं और केन्द्र में भी वह भाजपा सरकार की भागीदार है। शिवसेना के साथ गठबंधन की औपचारिक घोषणा के बाद हालांकि भाजपा की स्थिति मजबूत हुई है लेकिन इससे शिवसेना के कार्यकतार्ओं में रोष उत्पन्न हो गया है। दरअसल कार्यकतार्ओं का कहना है कि वो लंबे समय से राम मंदिर नोटबंद किसान आत्महत्याए बेरोजगारी सरीखे मुद्दों को लेकर जिस पार्टी का लगातार विरोध कर रहे थे। अब किस मुंह से जनता के बीच उसी के लिए समर्थन मांगने जाएंगे और कैसे मतदाताओं के मन में यह विश्वास पैदा करेंगे कि हम उनके साथ हैं।

योगेश कुमार गोयल

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