हर मसले पर राजनीति हमारी दिनचर्या का जरूरी हिस्सा बन चुकी है। वहीं दूसरी ओर ये भी कड़वी सच्चाई है कि हमारे यहां राजनीति में ‘निगेटिव अप्रोच’ का स्तर इतना बढ़ चुका है कि अब उसके दुष्प्रभाव अब खुलकर दिखने लगे हैं। हर मामले में जब तक राजनीति न हो तब तक कथा अधूरी ही समझी जाती है। ताजा मामला वन्दे भारत एक्सप्रेस ट्रेन से जुड़ा है। बीती 15 फरवरी को प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी ने मेक इन इंडिया के तहत बनीं देश की पहली सेमी हाई स्पीड ट्रेन वंदे भारत एक्सप्रेस को नई दिल्ली स्टेशन से हरी झंडी दिखाकर वाराणसी के लिए रवाना किया। वापसी में वाराणसी से दिल्ली आते वक्त ट्रेन ब्रेक डाउन का शिकार हो गई इसके बाद ट्रेन को लेकर आलोचनाओं को दौर और राजनीति शुरू हो गयी।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्विट करके प्रधानमंत्री मोदी को मेक इन इंडिया पर दोबारा गंभीरतापूर्वक विचार करने की जरुरत की सलाह दे डाली। वहीं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी अखिलेश ने ट्विट कर वन्दे भारत एक्सप्रेस की कहानी देश के विकास की कहानी से जोड़ने का काम किया। राहुल गांधी के ट्विट से जो राजनीति शुरू हुई उसमें रेलमंत्री पीयूष गोयल भी कूद पड़े। पीयूष गोयल ने ट्वीट कर राहुल गांधी को नसीहत देने में कोई कमी नहीं की।
इस विवाद में देश की सबसे बड़ी बायोफार्मा कंपनी बायोकॉन की संस्थापक किरण मजूमदार शॉ ने भी ट्विट करके भारतीय इंजीनियरों की प्रतिभा, कार्य की गुणवत्ता पर सवाल खड़े किये। शॉ के ट्विट के बाद सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। तीखी प्रतिक्रियाओं और आलोचनाओं को देखते हुए किरण शॉ ने लगातार दो ट्वीट करके गलती सुधारी, और अपने ट्विट के लिये माफी मांगी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली से 200 किमी दूर रेलवे ट्रैक पर कुछ पशुओं की आने की वजह से ट्रेन की यात्रा बधित हुई थी चंद घंटों के बाद ट्रेन का सामान्य संचालन शुरू हो गया था।
ऐसा ही मामला लखनऊ मेट्रो के संचालन के समय भी पेश आया था 6 सिंतबर 2017 को कॉर्मिशियल रन के उद्घाटन के अगले ही दिन लखनऊ मेट्रो रेल तकनीकी खराबी के चलते बीच रास्ते पटरियों पर खड़ी हो गयी थी। उस वक्त यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी इस पर तंज कसा था और इसके अलावा समाजवादी पार्टी के कई कार्यकतार्ओं ने मेट्रो खराबी के खिलाफ प्रदर्शन भी किया था। अखिलेश यादव ने अपने ट्वीट में लिखा था, ‘‘लखनऊ मेट्रो तो पहले से ही बनकर तैयार थी, भारत सरकार ने सीएमआरएस के जरिए एनओसी में इतना लंबा वक्त लिया, फिर भी पहले ही दिन मेट्रो ठप। ’’यहां ये बात दीगर है कि लखनऊ मेट्रो का ट्रायल रन 1 दिसंबर 2016 को तब हुआ था जब अखिलेश राज्य के मुख्यमंत्री थे मार्च 2017 में सूबे में योगी सरकार के आने के बाद मेट्रो का कॉर्मिशियल रन सिंतबर में शुरू हुआ। मतलब साफ है कि जब अखिलेश मुख्यमंत्री थे तब सब कुछ ठीक था, और कुर्सी से हटते ही उन्हें प्रोजेक्ट में कमियां दिखाई देने लगी। 19 दिसंबर 2017 को दिल्ली दिल्ली मेट्रो का ड्राइवरलेस इंजन हादसे का शिकार हो गया था। तब भी निगेटिव रिमार्क्स सुनने को मिले थे।
मेक इन इण्डिया के तहत हमारे इंजीनियरों ने 97 करोड़ की लागत से 18 माह में वंदे भारत ट्रेन को बनाया है। चेन्नई की कोच फैक्ट्री में बनी ट्रेन ने रफ्तार का रिकॉर्ड तोड़ा था। ये 160 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से चल सकती है ट्रायल रन में ट्रेन ने 180 किमी प्रति घंटा की रफ्तार पार की थी। भारत सरकार वंदे भारत जैसी 100 ट्रेने बनाने की योजना पर काम कर रही है, जिसमें से 30 ट्रेने और बनाने के टेंडर दे दिए गये हैं। आने वाले समय में इस तरह कुल 130 वंदे भारत चलाई जाएंगी। सारी ट्रेनों को चार महानगरों को जोड़ने वाले स्वर्णिम चतुर्भुज पर चलाया जाएगा। वंदे भारत ट्रेन को बनाने में हमारे इंजीनियरों के साथ तकनीकी स्टाफ ने दिन रात पसीना बहाया है। लेकिन तकनीकी खराबी से पहिये थमने पर उसकी आलोचना करने में चंद घंटे भी नहीं लगे।
अभी हाल ही में डीजल इंजन कारखाना वाराणसी में इंजीनियरों ने डीजल से विद्युत में परिवर्तित उच्च हॉर्स पावर का ट्विन रेल इंजन बनाया है। हमारे परिश्रमी इंजीनियरों ने मात्र 69 दिनों में डीजल इंजन से विद्युत इंजन में परिवर्तित किया है। यह इंजन अधिक भार वाली मालगाड़ी को आसानी से खींच सकता है। डीजल से विद्युत में परिवर्तित करने से इस इंजन की शक्ति में 92 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। वहीं यह इंजन पूर्ण रूप से पर्यावरण के अनुकूल है। इस इंजन के निर्माण से हर साल लगभग दो करोड़ रुपये प्रति इंजन की बचत होगी।
अपनी राजनीति चमकाने के लिये नेता देश की प्रतिभाओं को कमतर करके अांकने से चूकते नहीं है। जबकि हमारे वैज्ञानिक, इंजीनियर, डॉक्टर और टेक्निश्यन दुनिया भर में अपनी एक अलग पहचान रखते हैं। हमारे वैज्ञानिक, इंजीनियर, डाक्टर, विशेषज्ञ और श्रम शक्ति बिना किसी राजनीति और भेदभाव के देशनिर्माण में अपना खून-पसीना बहाती रहती है। वहीं ये बात दीगर है कि देश के साधन-संसाधन और निर्माणकार्य किसी दल की बपौती नहीं है, वो तो देश की प्रापर्टी हैं। देश में विकसित उत्पादों की आलोचना कर हम खुद अपनी ही इज्जत अपने हाथ उतारने का काम करते हैं। तमाम आलोचनाओं और रूकावटों के बावजूद देश न्यू इंडिया की ओर बढ़ रहा है।
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