कांग्रेस पार्टी में प्रियंका गांधी का आधिकारिक रूप से प्रवेश किस तरह पार्टी और उनके भाई कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को लाभ पहुंचाएगा? उन्हें उत्तर प्रदेश (पूर्व) का पार्टी महासचिव बनाया गया है और इसका उदद्ेश्य पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह भरना है। प्रियंका अपनी मां और भाई के निर्वाचन क्षेत्रों में काफी समय से काम कर रही है और अब उन्हें एक नेता के रूप में उभरना है और यह सुनिश्चित करना है कि उनके कार्य क्षेत्र की 42 सीटों में से अधिकतर सीटों पर कांग्रेस विजयी हो। तथापि कुछ लोगों का मत है कि यदि पार्टी परिवार से परे जाकर कुछ सोचती है तो शायद उसका अधिक भला होता और प्रियंका के राजनीति में प्रवेश से कांगेस में वंशवाद को और बढ़ावा मिलेगा। यह उनका सैद्धान्तिक विरोध हो सकता है किंतु पार्टी के ढांचे को देखते हुए उनका प्रवेश कुछ मददगार हो सकता है।
प्रियंका जनता का ध्यान आकर्षित कर सकती है और पार्टी कार्यकतार्ओं में विश्वास जगा सकती है। इसे देखते हुए उन्हें काफी पहले ही पार्टी में दायित्व दिया जाना चाहिए था और ऐसे समय पर जब राहुल और पार्टी को एक ऐसे नेता की आवश्यकता है जो स्वयं को विश्वास के साथ प्रस्तुत कर सके उनका प्रवेश स्थिति में बदलाव ला सकता है। ऐसा माना जा रहा है कि प्रियंका भाजपा के उच्च जातियों के वोट और मुस्लिम तथा दलित वोटों में सेंध लगा सकती है। इसके अलावा देश में व्याप्त बेरोजगारी और अर्ध- बेरोजगारी तथा मोदी सरकार द्वारा 2014 में प्रति वर्ष 2 करोड़ रोजगार देने के वायदे को पूरा न करने के कारण युवा मतदाता कांग्रेस की ओर मुड़ सकते है। सपा-बसपा के गठबंधन से भी भाजपा प्रभावित हो सकती है। प्रियंका गांधी के राजनीति में प्रवेश का सबसे बड़ा प्रभाव राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के भीतर पड़ेगा।
यदि वे राष्ट्रीय स्तर पर एक चुनाव प्रचारक की भूमिका में आती हैं तो वे अपने भाई के चुनाव अभियान में सहायता कर सकती है। राहुल अब एक प्रभावी राजनेता के रूप में उभर गए हैं और अब अपनी बहन की सहायता से वे पार्टी के भाग्य में बदलाव ला सकते हैं। दूसरा प्रश्न यह भी उठ सकता है कि क्या कांगं्रेस इतनी सीटें जीत पाएंगी कि वह अपने सहयोगियों के साथ सरकार बना लेगी। दूसरी चिंता का विषय यह है कि महागठबंधन में शामिल दल आपस में कट्टर प्रतिद्वंदी भी रहे हैं और उससे भी सिद्धान्तहीन गठबंधन बनेगा जिससे कांग्रेस की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिह्न लगेगा। राजनीतिक विश्लेषक यह मान रहे हैं कि प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में लगभग 6 प्रतिशत मतों को प्रभावित कर सकती है और कांग्रेस के 7-8 प्रतिशत परंपरागत मतदाता हैं और इनको मिलाकर पार्टी उत्तर प्रदेश मे 14-15 सीटें जीत सकती है। भाजपा ने सही कहा है कि गठबंधन सिद्धान्तहीन है और ये लोग केवल सत्ता हड़पने के लिए एकजुट हुए हैं। यही नहीं इन दलों में कुछ नेता बदनाम भी हैं।
उदाहरण के लिए बसपा की मायावती, राजद के लालू प्रसाद के पुत्र। इन दोनों नेताओं को भ्रष्ट माना जाता है और यह भी संभावना व्यक्त की जा रही है कि ये क्षेत्रीय नेता गठबंधन को अस्थिर भी कर सकते हैं। मायावती और ममता ने प्रधानमंत्री पद की अपनी महत्वाकांक्षा भी जाहिर कर दी है। बसपा को 25 से अधिक सीटें नहीं मिलेंगी जबकि तृणमूल कांग्रेस 30-32 सीटें जीत सकती हैं और इस स्थिति में क्षेत्रीय दलों के नेताओं में यह होड़ मच जाएगी कि गठबंधन का नेतृत्व कौन करे। इस संबंध में मोदी ने हाल ही में पहले ही प्रश्न उठा दिए हैं और कहा है कि केन्द्र में केवल भाजपा स्थिर सरकार दे सकती है तथा विपक्षी दल केवल सिद्धान्तहीन गठबंधन बनाने के लिए एकजुट हुए हैं। इस तथ्य को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है क्योंकि स्थिरता स्थिर प्रशासन पर निर्भर करती है और यदि इस स्थिति में कांग्रेस या कोई अन्य दल सत्ता में आता है तो अव्यवस्था की स्थिति पैदा हो सकती है। हाल ही में एक वरिष्ठ पत्रकार ने एक प्रश्न उठाया है कि देश में प्रतिशोध का संघवाद उभर रहा है जिसमें राज्य अपने अधिकारों को जताने लगे हैं और चुनावों के बाद यह प्रवृति जोर पकड़ सकती है। अब सारा दारोमदार कांग्रेस और राहुल पर है।
वे सरकार का नेतृत्व कर सकते हैं किंतु उनके गठबंधन के कुछ दल नहीं चाहते कि ऐसा हो क्योंकि यदि वे केन्द्र में सत्ता में आए तो आगामी वर्षों में कांग्रेस और मजबूत हो जाएगी। मोदी की चुनौती को नकारा नहीं जा सकता है। संस्थानों से छेड़छाड़ और राफेल घोटाले तथा हिन्दू कार्ड के अलावा अवसरंचना विकास में मोदी सरकार का कार्य निष्पादन अच्छा रहा है। विकास योजना में किसानों, दलितों और ग्रामीण युवाओं को सही दिशा न दे पाने के कारण लोगों में असंतोष है और यह उनके समक्ष एक चुनौती है। राजनीतिक विश्लेषक उनके धनी वर्ग के प्रति झुकाव और आक्रामक हिन्दुत्व को उनकी लोकप्रियता कम करने के दो प्रमुख कारण मानते हैं। हालांकि उन्होने अपने दृष्टिकोण में सुधार किया है। किंतु दु:खद बात यह है कि हम महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाने जा रहे हैं और हमारे देश में आज भी राजनीतिक और आर्थिक स्तर पर विकेन्द्रीकरण का अभाव है।
कुल मिलाकर फिलहाल यह कहा जा सकता है कि वर्तमान में कांग्रेस की चुनौती में कुछ जान है और राहुल प्रियंका की टीम अपनी युवा ब्रिगेड के साथ गरीबों और उपेक्षित वर्ग के कल्याण की ओर बढ़ रही है। मुस्लिम मतदाता चाहेंगे कि केन्द्र में विपक्ष के गठबंधन का नेतृत्व कांग्रेस करे। अभी चुनाव के बाद के परिदृश्य के बारे में कुछ भी कहना कठिन है किंतु यदि भाजपा अकेली सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी तो उसे तेलंगाना राष्ट्र समिति, वाईएसआर-कांग्रेस और बीजू जनता दल से समर्थन मिल सकता है। किंतु राजनीतिक क्षत्रप तब कोई कदम उठाते हैं जब उनके समक्ष स्थिति बनती है।
लेखक: ओईशी मुखर्जी-
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