पंजाब पुलिस की लापरवाही व संवेदनहीनता की घटनाओं का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा। ड्यूटी प्रति गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार की इंतहा उस समय हो गई जब विगत दिनों लुधियाना के नजदीक एक लड़की को अगवा करने की शिकायत मिलने के बावजूद पुलिस कर्मचारियों ने घटना स्थल पर पहुंचने की जहमत तक नहीं उठाई। अपराधियों से घिरे लड़के-लड़की का फोन आने पर उनका दोस्त कानूनी सहायता के लिए पुलिस स्टेशन भी पहुंचा था। अगर पुलिस समय रहते कार्रवाई करती तब हो सकता था लड़की 10 लोगों की दरिंदगी का शिकार होने से बच जाती।पुलिस ने 24 घंटे बाद मामला उस समय दर्ज किया मामले ने तूल पकड़ा तब एक पुलिस अधिकारी को मुअत्तल किया गया।
दिल्ली में 2012 में घटित हुए निर्भया कांड के बाद आस जगने लगी थी कि अब महिलाओं की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे व पुलिस अपराधियों पर पूरी तरह से शिकंजा कसेगी। इस संबंध में एकबारगी पंजाब में स्कूटी सवार महिला कर्मचारियों के दस्ते तैनात किए गए व सरकार की चौकसी का प्रचार किया गया। लेकिन कुछ महीनों के अंदर ही सबकुछ हवा हो गया। पुलिस अभी भी अपने पुराने कल्चर को त्यागने का नाम ही नहीं ले रही। पीड़ित की पुकार सुन कर पुलिस की सक्रियता नजर नहीं आ रही।
लम्बे समय से यही आरोप लगते आ रहे हैं कि तब तक एफआईआर दर्ज नहीं की जाती जब तक कोई राजनीतिक फोन न आ जाए या फिर जब मामला पूरी तरह से तूल न पकड़ ले। जो पुलिस राजनीतिक इशारों पर विरोधियों पर तुरंत ही मामले दर्ज कर देती है वही पुलिस सूचना मिलने पर भी अपनी कोई जिम्मेवारी नहीं समझती। लुधियाना सामूहिक दुराचार मामले में आरोपियों के स्कैच जारी हो गए व कुुछ समय बाद सभी आरोपी पकड़े जाएंगे
लेकिन जहां तक अपराधों के ग्राफ के नीचे आने का संबंध है उसकी आशा करना अभी बेमानी है। पुलिस ऐसा प्रभाव नहीं बना सकी कि अपराधियों के मन में कानून का भय पैदा हो। आमजन प्रति पुलिस को अपनी ड्यूटी पूरी ईमानदारी से निभानी होगी। केवल मंत्रियों के दौरे या रैलियों को सफल बनाना ही पुलिस की जिम्मेवारी नहीं। आम आदमी पुलिस की मौजूदगी में अपने आप को सुरक्षित महसूस करे, इसके लिए पुलिस को महज हथियारों या साधनों की नहीं बल्कि मानवीय व्यवहार अपनाने की आवश्यकता भी है।]
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