दिल्ली के करोलबाग आगकांड ने सालों पहले दिल्ली में घटी सबसे दर्दनाक अग्निकांड उपहार सिनेमा के जख्म ताजे कर दिए। कमोबेश मौजूदा घटना भी कुछ उसी अंदाज में घटी। जो खामियां उपहार कांड के वक्त देखने को मिली, वैसे ही अर्पित होटल में लगी आग के दौरान सामने आईं। दोनों घटनाएं घोर लापरवाही के चलते घटी। इस सच्चाई की एक बार फिर पुष्टि हो गई कि अग्निकांड की ज्यादातर घटनाएं इंसानी हिमाकत के चलते होती हैं। सिलसिला बदस्तूर जारी है कि आग लगने के संभावित स्थानों पर असावधानी और लापरवाही का खामियाजा दूसरे बेकसूर लोगों को भुगतना पड़ता है। दिल्ली की घटना में मारे गए लोगों के परिजनों को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पांच-पांच लाख रुपए का मुआवजा देने का एलान किया है। मुआवजा इस दर्दनाक घटना के जख्म पर मरहम लगाने का विकल्प नहीं हो सकता है। पर, हां घोर लापरवाही पर पर्दा डालने का नायाब तरीका जरूर हो सकता है। दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा देने की दरकार है। ताकि दूसरे होटल मालिक सबक ले सकें।
दिल्ली के करोलबाग इलाके में जिस होटल में सोते-सोते दर्जनों लोग आग की लपटों में आकर स्वाह हो गए, उनको क्या पता था उनकी जिंदगी दूसरों की लापरवाही के कारण भेंट चढ़ेगी। दिल्ली अग्निकांड में किसी ने अपना पति खोया, किसी ने अपना बेटा, तो किसी ने अपना मासूम बच्चा। घटना स्थल पर मरने वाले परिजनों और पीड़ितों की दहाड़ मारती चीखें खोखले सरकारी सिस्टम और क्रुंद सामाजिक व्यवस्था को ललकार रहीं हैं। पुलिस-प्रशासन को घटना की शुरूआती जांच में खामियां ही खामियां मिली। दरअसल होटल अवैध रूप से निर्मित था। चौथे माले तक निर्माण की इजाजत थी लेकिन भ्रष्ट निगम अधिकारियों के रहम से होटल मालिक ने छठी मंजिल तक निर्माण करा रखा था। होटल में अग्निशमन और बचाव के प्रर्याप्त इंतजाम भी नहीं थे। आपातकाल के लिए कोई उचित प्रबंधन नहीं था।
दिल्ली अग्निकांड की तरह हिंदुस्तान की विभिन्न जगहों पर कई भीषण अग्निकांड हो चुके हैं, जिनमें सैकड़ों नागरिक मारे गए। घटना के बाद जनाक्रोश को शांत करने और एतियातन खानापूर्ति के लिए सरकार की ओर से तमाम सर्तकता और बचाव के तरीके बताए जाते हैं। लेकिन जैसे ही घटना की तपिश कम होती है जिंदगी फिर उसी मोड़ पर कराहने के लिए छोड़ दी जाती है। करोलबाग की घटना ने मौजूदा दिल्ली की नादान सरकार की कलई खोदकर रख दी है। होटलों से पुलिस और सरकार के पास मंथली के रूप में मोटी काली कमाई जाती है। इस कारण कोई कुछ नहीं बोलता। उसके बाद होटल मालिकों को किसी बात का डर नहीं रहता। जमकर अपनी मनमानी करते हैं। ग्राहकों से अनाप-सनाप धनवसूली भी करते हैं। लेकिन सुविधाओं के नाम पर शून्य।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरों यानी एनसीआरबी के आंकड़ों पर गौर करें तो हिंदुस्तान में प्रत्येक वर्ष सिर्फ अग्निकांड के कारण ही 22 से 24 हजार लोगों की मौतें होती हैं। ईमारतों में आग लगने का एक और भी कारण है कि मकान निर्माण के वक्त नेशनल बिल्डिंग कोड यानी भवन निर्माण संहिता का जमकर उल्लंघन किया जाता है। आंकड़े गवाही देते हैं कि ज्यादातर भवन मानकों के विपरीत बनते हैं। नक्से का इस्तेमाल न करना, रोशनदार का न होना, आग लगने पर बिल्डिंगों में बचाव के जरूरी इस्टूमेंट का न होना, आदि ऐसी बातें हैं जिनको इग्नोर किया जाता है। दरअसल यही इंसानी चूक आगे चलकर बड़े हादसों का रूप ले लेती है। करोलबाग की घटना में यही सबकुछ देखने को मिल रहा है। आग लगने के बाद लोगों के भागने के लिए आपातकाल खिड़कियां तक नहीं थी। आग का धुआं भी बाहर पास नहीं हो सका, जो अंदर ही घुटन का कारण बन गया। चिकित्सकों ने घटना में ज्यादातर मौतें धुएं की घुटन से बताई हैं।
अग्निकांड की घटनाएं भयाभय करती हैं। 1995 में हरियाणा के कस्बा डबवाली में घटित भीषण अग्निकांड को याद कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उस भीषण अग्निकांड में भी करीब 400 लोगों की जान गई थी। इसके अलावा 1997 में दिल्ली में उपहार सिनेमा का अग्निकांड हुआ। दर्शक सिनेमा हाल में बार्डर फिल्म देख रहे थे। तभी अचानक आग लग गई, जो कुछ ही मिनट में पूरे सिनेमा में फैल गई जिसमें 60 लोग मारे गए। वर्ष 2011 में कोलकाता का एमरी हॉस्पिटल अग्निकांड, जिसमें 90 लोगों की मौत हो गई थी, 2016 में हरियाणा के पानीपत में एक फैक्टरी में आग से 7 लोगों की मौत हो गई थी। आग की घटनाओं की फेरिस्त बहुत लंबी है। लेकिन इस फेरिस्त को कम करने का तरीका हमने आज तक नहीं खोजा। वादे तो हजार किए जाते हैं लेकिन सभी कागजी साबित होते हैं। दिल्ली घटना के बाद पूरे इलाके के होटलों की जांच की जा रही है, लेकिन कुछ दिनों बाद सब सामन्य हो जाएगा।
दरअसल दूसरों को कोसने से पहले ग्राहकों की भी जिम्मेदारी बनती है कि जब वह किसी होटल में रहने जाएं तो वहां की हर सुविधा से खुद को सुनिश्चित कर लें। बड़ी ईमारतों, कारखानों, संस्थाओं में सुरक्षा प्रबंध की निगरानी खुद से भी करनी चाहिए। सबकुछ प्रबंधकों के सहारे नहीं छोड़ना चाहिए। देशभर में ज्यादातर बहुमंजिला इमारतें ऐसी हैं जो सुरक्षा मानकों को ताक पर रखकर बनाई गईं हैं। नई ईमारतों में कुछ बचाव के इंतजाम हैं भी लेकिन पुरानी ईमारतें तो राम भरोसे ही हैं। होटलों व बड़ी ईमारतों में कुछ समय के लिए रहने वाले नागरिकों के पास आपदा के समय सुरक्षा की कोई जानकारी नहीं होती। जबकि नियम के मुताबिक उन्हें जानकारियां दी जानी चाहिए। बड़ी घटनाओं को सदैव एक घटना मानकर नहीं भुलाया जाए, बल्कि उनसे सीख ली जाए कि यदि वह हमारे साथ दोबारा घटित होती है तो हम उससे कैसे बचें। दिल्ली जैसी घटना की पुनरावर्ती न हो, इसके लिए पुख्ता इंजताम करने की दरकार है।
लेखक रमेश ठाकुर
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