हमारे देश के आधुनिक इतिहास में दीनबंधु सर छोटूराम जी का नाम हमेशा किसान जागृति से जुड़ा रहेगा। वे किसानों व मजदूरों की हालत से बखूबी वाकिफ थे। हालांकि उनका जन्म रोहतक जिला के गांव सांपला में 24 नवम्बर 1881 को किसान सुखीराम के घर में हुआ था, परंतु उनका किसानों के प्रति इतना स्नेह था कि वे अपना जन्म दिन 24 नम्ंबर की बजाए बसंत पंचमी के दिन ही मनाते थे। उनका कहना था कि बंसत पंचमी के दिन किसानों की सरसों की फसल खेतों में लहलहाती है और उस दिन अपनी फसल को देखकर किसान प्रफुल्लित होता है। वे कहते थे कि जब किसान खुश है तो वे खुश हैं। तब से ही किसान मसीहा दीनबंधु सर छोटूराम जी का जन्म दिन बसंत पंचमी के दिन मनाया जाने लगा।
छोटूराम का असली नाम राम रिछपाल था। नटखट और घर का लाडला राम रिछपाल भाइयों में सबसे छोटा था, इसलिए सब उनको छोटू कहने लगे। एक जनवरी 1891 को उसके चाचा राजेराम ने उसका गांव सांपला की पाठशाला में दाखिला करा दिया। मास्टर मोहन लाल ने रजिस्टर में छोटू का नाम छोटूराम लिख दिया। छोटूराम बचपन से ही मेधावी था, लगन इतनी कि अगर उसको खेत में रखवाली के लिए भेज देते थे तो वह खेत में बैठकर पढऩे लग जाता और इतना लीन हो जाता कि वह भूल जाता था कि चिडिया व अन्य पक्षी उसके खेत में पकी हुई फसल को खा रहे हैं। छोटूराम ने 8वीं कक्षा में पंजाब यूनिवर्सिटी में दूसरा स्थान प्राप्त किया,उनको वजीफा भी मिला। बाद में दसवीं कक्षा में भी प्रथम श्रेणी में पास हुए। आर्थिक हालत ठीक न होने के कारण उसको कालेज की पढ़ाई के लिए मशक्कत करनी पड़ी।
छोटूराम का पढ़ाई के प्रति जूनून को देखते हुए उसके चाचा, माता तथा बड़े भाई नेकी राम ने कुछ रुपया इधर-उधर से बटोरकर छोटूराम को दिया। छोटूराम ने सेंट स्टीफन कालेज में दाखिला तो ले लिया, परंतु फीस व अन्य खर्चे पूरे न होने कारण उसने कालेज छोडऩे के लिए दरखास्त दी, जिसको कालेज प्रबंध समिति ने अस्वीकृत कर दिया। बिना किसी को बताए छोटूराम अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर चुपचाप घर आ गए। कालेज के प्रिंसिपल राईट को जब यह पता चला तो उसने छोटूराम को वापस बुलवा लिया और उसकी पढ़ाई, खाना-पीना व कपड़ा का खर्चा भी कालेज ने ही देना शुरू कर दिया, साथ ही दिल्ली बोर्ड से वजीफा भी दिलवाया। एफ.ए. की परीक्षा पास करने के बाद एक दिन जब छोटूराम मेरठ के रास्ते रेलगाड़ी से लाहौर जा रहे थे तो उनकी मुलाकात हिसार जिला के गांव सेठ छाजूराम लांबा (छाजूराम भी जाट थे, परंतु उनकी दानवीरता के कारण कलकता के लोग उनको सेठ कहकर बुलाते थे) से हुई।
परिचय के बाद सेठ छाजूराम ने कहा कि यदि बी.ए में संस्कृत विषय लेकर डी.ए.वी कालेज लाहौर में पढ़ाई करो तो पढ़ाई का सारा खर्चा मैं दे दूंगा। छोटूराम की तो जैसे मुराद ही पूरी हो गई। 1907 में सेंट स्टीफन कालेज ने स्टीफियन मैगजीन शुरू की। छोटूराम अच्छे लेखक भी थे इसलिए सेंट सी.एफ एंडरुज ने छोटूराम को एक लेख भेजने का अनुरोध किया। छोटूराम ने भारतीय गांव के जीवन में सुधार, नामक एक लेख भेजा, जिसमें गांव की वास्तविक तस्वीर खींची कि जिसकी गूंज दूर तक सुनाई दी। एंडरुज ने यह लेख वायसराय की कार्यकारी परिषद के वित सदस्य सर रोबर्ट कारलायल को दिखाया, जिससे वह बहुत ही ज्यादा प्रभावित हुआ। उसने पंजाब के वित आयुक्त वाकर को लिखा कि छोटूराम को पी.सी.एस (वर्तमान एच.सी.एस के समान) का पद दिया जाए, परंतु छोटूराम के स्वाभिमानी स्वभाव के कारण वाकर ने छोटूराम को पी.सी.एस का पद देने की बजाय नायब तहसीलदार का पद अॉफर किया, जिसको छोटूराम ने ठुकरा दिया।
1910 में छोटूराम ने आगरा से कानून की पढ़ाई करके वहीं प्रैक्टिस करनी शुरू कर दी और बाद में अक्तूबर 1912 में रोहतक आकर वकालत करने लगे। दूसरे वकील उनको क्रांतिकारी वकील कहते थे। वे समाचार-पत्रों के महत्व और शक्ति को अच्छी तरह समझते थे इसलिए उन्होंने उर्दू साप्ताहिक जाट गजट, शुरू किया, जिसमें किसानों व मजदूरों की आवाज उठाते थे। इस समाचार-पत्र के पहले संपादक पंडित सुदर्शन तथा दूसरे सम्पादक पंडित बिशंभर नाथ शर्मा थे। स्वाभिमानी, राष्ट्रवादी व अक्खड़ स्वभाव वाले चौधरी छोटूराम पहले 1916 में कांग्रेस के सदस्य बने और बाद में रोहतक कांग्रेस कमेटी के प्रथम अध्यक्ष भी बने।
रोहतक का तत्कालीन डी.सी मिस्टर वोलस्टर चौधरी छोटूराम से खार खाता था, वह चौधरी छोटूराम के सैनिक भर्ती के कार्य से तो खुश था, परंतु उनकी देशभक्ति से खासा नाराज था। डी.सी ने गर्वनर को लिखा कि चौधरी छोटूराम,लाला ष्यामलाल और मियां मुशताक हुसैन आदि 27 बागी नेताओं को देश निकाला दे दिया जाए। परंतु एस.पी मोरी ने समर्थन नहीं किया और कहा कि अगर चौधरी छोटूराम को देश निकाला दिया गया तो उनके समर्थकों की भीड़ को संभालना मुश्किल हो जाएगा।
चौधरी छोटूराम बसंती पगडी में हिंदू-मुस्लिम-सिख एकता के प्रतीक लगते थे। बसंत पंचमी के दिन चौधरी छोटूराम ने कार्यक्रम आयोजित किया, सभी धर्मों के बडे नेता आए। कुछ लोगों ने चौधरी छोटूराम की हूंिटग करनी चाही तो उन्होंने ऐसा जोरदार भाषण दिया कि सबके मन का मैल धुल गया। उस दिन के बाद बसंत पंचती एक सांप्रदायिक-सदभाव के त्यौहार के रूप में मनाया जाने लगा। छोटूराम स्मारक समिति रोहतक लगातार 1946 से रोहतक में बसंत पंचमी के दि नहीं सर चौधरी छोटूराम का जन्म दिन मनाती आ रही है।
चौधरी छोटूराम विधानसभा में किसान एवं मजदूरों की आवाज को जोर-शोर से उठाते थे। चौधरी छोटूराम 1923 से लेकर 1937 तक पंजाब विधान परिषद और पंजाब विधानसभा के सैशनों से एक दिन भी अनुपस्थित नहीं हुए थे, परंतु 4 दिसम्बर 1944 को शुरू हुए अधिवेशन में पहले ही दिन वे गंभीर बीमार हो गए। वे विधानसभा जाना चाहते थे परंतु उनके साथी डा. नंदलाल ने जाने की इजाजत नहीं दी। उनके बिना बिना विधानसभा सूनी-सूनी नजर आई।
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