इकल तक हाशिये पर बैठा किसान, आज राजनीति के केन्द्र में है। उसे केन्द्र में लाने का यदि किसी को श्रेय जाता है, तो वह कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी हैं। जो न सिर्फ अपनी चुनावी सभाओं और साक्षात्कारों में किसानों की समस्याओं को लगातार दमदार तरीके से उठा रहे हैं, बल्कि किसानों से किये गए वादों को भी उन्होंने पूरा किया है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में जैसे ही कांग्रेस पार्टी ने राज्य की सत्ता संभाली, वहां किसानों से किये गए वादे के मुताबिक इन सरकारों ने अपने यहां सबसे पहले किसानों के कर्ज माफी का एलान किया है। कर्ज माफी की प्रक्रिया शुरू भी हो गई है। छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने सबसे पहले अपने यहां यह काम किया। सरकार के शपथ लेने के दस दिन के अंदर सरकार ने राज्य के 3 लाख किसानों के खाते में कर्जमाफी की रकम भेज दी।
पूरे राज्य में 16 लाख 65 हजार से ज्यादा किसानों को कर्जमाफी योजना का फायदा मिलेगा। वहीं राजस्थान की यदि बात करें, तो कर्जमाफी की योजना से प्रदेश के ग्यारह लाख से ज्यादा किसानों को फायदा पहुंचेगा। इनमें ढाई लाख वो किसान भी शामिल हैं, जिनका पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार में पूरा कर्ज माफ नहीं हो पाया था। इन किसानों का सरकार दो लाख रूपए तक का कर्ज माफ करेगी। प्रदेश के सहकारिता विभाग ने कर्जमाफी योग्य किसानों की सूची तैयार कर ली है और 7 फरवरी से सभी जिलों में कर्जमाफी के शिविर लगाकर किसानों को ऋण माफी प्रमाण पत्र वितरित किये जाने का काम शुरू हो गया है। मध्य प्रदेश में कर्जमाफी की योजना से प्रदेश के पचास लाख से ज्यादा किसानों को फायदा पहुंचेगा। जिसमें 36.82 लाख लघु और सीमांत किसान शामिल हैं।
इन किसानों का सरकार दो लाख रूपए तक का कर्ज माफ करेगी। राज्य में कमलनाथ सरकार बीते 15 जनवरी से किसानों से कर्जमाफी के आवेदन ले रही है। आवेदन 5 फरवरी तक लिये गए। जो आंकड़ा सामने निकलकर आ रहा है, उसके मुताबिक अभी तक राज्य के तकरीबन पचास लाख किसानों ने ह्यजय किसान फसल ऋण माफीह्ण योजना में अपने कर्ज माफी के लिए आवेदन किया है। आवेदनों की जांच के बाद 22 फरवरी से किसानों के खातों में कर्जमाफी के पैसे जमा होने की प्रक्रिया शुरू हो जायेगी। छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश सरकारों के इस अकेले कदम से कर्ज में डूबे लाखों किसानों को एक बड़ी राहत मिलेगी।
राहुल गांधी की किसानों को कर्जमाफी की इस पहल का ही नतीजा है कि मोदी सरकार को अपने अंतरिम बजट में ह्यप्रधानमंत्री किसान सम्मान निधिह्ण की घोषणा करना पड़ी है। योजना के तहत हर साल लघु एवं सीमांत श्रेणी के हर किसान को 6 हजार रूपए की राशि सीधे उसके बैंक खाते में स्थानांतरित की जाएगी। यह रकम उसे तीन समान किस्तों में मिलेगी। सरकार का दावा है कि इस रकम से किसान खाद, बीज खरीद और अपनी दीगर जरूरतें पूरी कर सकता है। बजट में जब से इस बात का एलान हुआ है, मोदी सरकार, पूरे देश में योजना को इस तरह से पेश कर रही है, मानो उसने किसानों के लिए बहुत बड़ा काम कर दिया है।
इस योजना से जैसे देश के सभी किसानों का भला हो जायेगा। जबकि इन सरकारी दावों से इतर सच्चाई कुछ और है। मसलन जो रकम किसान को ह्यप्रधानमंत्री किसान सम्मान निधिह्ण से मिलेगी, वह उसकी मौजूदा आय का 5 से 8 प्रतिशत ही है। यानी इस योजना से उसे हर दिन महज 17 रूपए रोजाना मिलेंगे। जाहिर है कि इतनी कम रकम में उसका क्या भला होगा ?, खुद ही अंदाजा लगाया जा सकता है। दूसरी अहम बात, योजना का फायदा लघु एवं सीमांत श्रेणी के किसान को ही मिलेगा। जबकि हमारे देश में बड़ी संख्या में कृषि श्रमिक, भूमिहीन किसान, बंटाईदार और किराए पर खेती करने वाले भी हैं। जिनको इस योजना का कोई फायदा नहीं मिलेगा।
बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले लोकसभा चुनाव में किसानों से वादा किया था कि वह सत्ता में आये, तो सुनिश्चित करेंगे कि किसानों का बकाया कर्ज माफ हो और उन्हें उनकी पैदावार का लागत से डेढ़ गुना दाम मिले। बीजेपी को केंद्र की सत्ता में पांच साल पूरे होने को आए, लेकिन प्रधानमंत्री ने किसानों से किए वादे पूरे करने की दिशा में कोई काम नहीं किया है। ना ही इस दिशा में आगे उनकी कोई इच्छाशक्ति दिखाई देती है। जबकि उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों को दिलवाना और सीमांत एवं लघु किसानों के कर्ज माफ करना कोई ज्यादा मुश्किल काम नहीं है। पंजाब, कर्नाटक आदि कुछ राज्य सरकारों ने अपने यहां किसानों का कर्ज माफ किया भी है। बस जरूरत मजबूत इच्छाशक्ति की है। बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, जिन मनमोहन सिंह को देश का सबसे कमजोर प्रधानमंत्री करार देते नहीं थकते, उन्हीं का यह करिश्मा था कि संप्रग प्रथम सरकार के दौरान साल 2008 में किसानों का एक साथ साठ हजार करोड़ रूपए का कर्ज माफ हुआ।
ज्यादातर किसान आत्महत्या कर्ज में डूबने की वजह से करते हंै। कर्ज चुकाने का उनके ऊपर इस कदर दवाब होता है कि वे परेशानी में आत्महत्या कर लेते हैं। किसान आत्महत्या सिर्फ फसलों के खराब होने और कर्ज न चुका पाने की वजह से ही नहीं करता, बल्कि कई बार सरकार की कृषि संबंधी गलत नीतियों की वजह से भी उसे और उसके परिवार को परेशानियां झेलना पड़ती हैं। मसलन पिछले चार-पांच सालों में खाद, बीज, कीटनाशक और डीजल की कीमतें बढ़ने से कृषि उत्पादों के लागत मूल्य में जिस औसत से वृद्धि हुई है, उसके अनुपात में उन्हें फसलों के दाम नहीं मिल पा रहे हैं। किसानों की सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि उन्हें अपनी फसल का वाजिब दाम नहीं मिलता। फसल की लागत यदि सौ रुपये है, तो उसे बेचकर सिर्फ 70 रुपये मिलते हैं।
किसानों की आर्थिक और सामाजिक हालत सुधारने के लिए गठित ह्यएम.एस. स्वामीनाथन किसान आयोगह्ण ने साल 2007 में अपनी रिपोर्ट तत्कालीन सरकार को सौंपते हुए, उसे 32 सुझाव दिए थे। जिसमें सबसे अहम सिफारिश यह थी कि फसल उत्पादन मूल्य से पचास प्रतिशत ज्यादा दाम किसानों को मिले। आयोग की रिपोर्ट को आए हुए बारह साल हो गए, लेकिन यह सिफारिश अभी तलक अमल में नहीं आईं हैं। किसानों की हालत तभी सुधर सकती है, जब सरकार का इरादा उन्हें कुछ देने का हो, झूठी वाहवाही लूटने का नहीं।
हालांकि सिर्फ कर्जमाफी, ही किसानों की समस्या का एक मात्र हल नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं। यही वजह है कि वे कर्जमाफी के साथ-साथ किसानों के लिए आधारभूत संरचना का निर्माण, जोतों को जोड़ना, फसल बीमा योजना का सही लाभ और खाद्य प्रसंस्करण इकाई स्थापित करने की भी बात करते हैं। यह सोच सही भी है। किसानों को आर्थिक दुष्चक्र से बाहर निकालने के लिए काफी कुछ करने की दरकार है। मसलन सबसे पहले उसकी आमदनी बढ़ाई जाए। खेती घाटे का सौदा न हो, इसके लिए सरकार छोटे और सीमांत किसानों को खाद, बीज और कृषि उपकरणों पर पर्याप्त सब्सिडी दे।
मंडियों में पारदर्शिता बढ़ाई जाए और किसानों को फसल का उचित मूल्य मिलना तय किया जाए। आलू, प्याज समेत सभी प्रकार की फसलों का समर्थन मूल्य घोषित किया जाए। मनरेगा को खेती से जोड़ा जाए। फसलीय कृषि ऋण की सीमा 10 लाख रुपए तक हो। खाद, बीज और कीटनाशकों की कीमतें नियंत्रण में रहें। भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 जो कि पूरी तरह से किसानों के हक में आया था, उसे यथावत रखा जाए। राज्य सरकारें, पिछले दरवाजे से इस कानून में जो संशोधन करने की कोशिशें कर रही हैं, इन कोशिशों पर लगाम हो। अधिनियम के मुताबिक किसानों को अपनी जमीन का ग्रामीण क्षेत्र में गाइडलाइन का चार गुना और शहरी क्षेत्र में दो गुना मुआवजा मिले।
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